मुंबई. शिवसेना (Shivsena) सासंद संजय राउत (Sanjay Raut) ने बुधवार को कहा कि राम जन्मभूमि विवाद मामले में 2019 में उच्चतम न्यायालय का फैसला आने के बाद बाबरी मस्जिद विध्वंस (Babri Demolition Case) मामले ने अपनी प्रासंगिकता खो दी थी। इसके साथ उन्होंने कहा कि, “अगर बाबरी का विध्वंस नहीं होता तो आज जो राम मंदिर का भूमिपूजन हुआ है वो दिन भी हमें देखने को नसीब नहीं होता।”
I and my party Shiv Sena, welcome the judgment and congratulate Advani ji, Murli Manohar ji, Uma Bharti ji & the people who have been acquitted in the case: Sanjay Raut, Shiv Sena, on the #BabriMasjidDemolitionVerdict https://t.co/WOQAtoYkXQ
— ANI (@ANI) September 30, 2020
शिवसेना ने बाबरी विध्वंस मामले में लखनऊ स्थित सीबीआई की स्पेशल कोर्ट द्वारा सुनाए गए फैसले में सभी आरोपियों को बरी करने का स्वागत करते हुए कहा कि निर्णय अपेक्षित था, हमें उस एपिसोड को भूल जाना चाहिए क्योंकि अब राम मंदिर बनने जा रहा है।
शिवसेना के सांसद संजय राउत ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि, “मैं और मेरी पार्टी शिवसेना, कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हैं और आडवाणी जी, मुरली मनोहर जोशी जी और उमा भारती जी समेत उन लोगों लोगों को बधाई देते हैं जो बरी हुए हैं।” उन्होंने कहा कि, “कोर्ट ने जो कहा है कि, ये कोई साजिश नहीं थी, ये ही निर्णय अपेक्षित था। हमें उस एपिसोड को भूल जाना चाहिए,अब अयोध्या में राम मंदिर बनने जा रहा है। अगर बाबरी का विध्वंस नहीं होता तो आज जो राम मंदिर का भूमिपूजन हुआ है वो दिन हमें देखने को नहीं मिलता।”
इसके साथ ही राउत ने संवाददाताओं से बातचीत में कहा, “राम मंदिर पर उच्चतम न्यायालय के पिछले साल आये फैसले और इस साल अगस्त में प्रधानमंत्री द्वारा (प्रस्तावित) मंदिर का भूमि पूजन किये जाने के बाद विशेष अदालत में इस मामले ने अपनी प्रासंगिकता खो दी थी।”
लखनऊ में विशेष सीबीआई अदालत ने भाजपा के वयोवृद्ध नेता लाल कृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी सहित मामले के सभी 32 आरोपियों को बरी करते हुए कहा कि आरोपियों के खिलाफ कोई पुख्ता सुबूत नहीं मिले। विशेष अदालत के न्यायाधीश एस के यादव ने अपने फैसले में कहा कि बाबरी मस्जिद ढहाए जाने की घटना पूर्व नियोजित नहीं थी, यह एक आकस्मिक घटना थी। उन्होंने कहा कि आरोपियों के खिलाफ कोई पुख्ता सुबूत नहीं मिले, बल्कि आरोपियों ने उन्मादी भीड़ को रोकने की कोशिश की थी। विशेष सीबीआई अदालत में चला यह मामला उत्तर प्रदेश के आयोध्या में छह दिसंबर 1992 को विवादित ढांचा गिराये जाने से संबंधित है।