अपने साहित्य से समाज प्रबोधन करने वाले महाराष्ट्र के प्रसिद्ध संत नामदेव के जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें

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    नई दिल्ली : महाराष्ट्र को संत तुकाराम के रूप में एक अद्भुत देन मिली है। संत नामदेव न केवल एक आदर्श भक्त थे बल्कि एक समाज सुधारक भी थे। उन्होंने साहित्य की रचना की थी। इन साहित्यों के जरिये समाज को सुधारने का और सही दिशा दिखाने का काम किया। उन्होंने न सिर्फ आध्यात्मिक ज्ञान दिया बल्कि देश के प्रति उनका योगदान भी खास रहा। 

    आषाढ़ कृष्ण त्रयोदशी (13) दिन बाद संत नामदेव महाराज की पुण्यतिथि मनाई जाती है। आज उनके पुण्यतिथि के अवसर पर उनसे जुड़े खास बातें आपको बताने जा रहे है…… 

    संत नामदेव महाराज का जन्म 26 अक्टूबर 1270 को महाराष्ट्र में हुआ। उनका निवास गांव सतारा जिले में कृष्णा नदी के किनारे नरसीबामणी गांव में  था। महाराष्ट्र में जमने इस संत कवि के पिता का नाम दामाशेटी और मां का नाम गोनाई देवी था। उनका पूरा परिवार भगवान विट्ठल का भक्त था। 

    संत नामदेव महाराज ने महाराष्ट्र से लेकर पंजाब तक संपूर्ण उत्तर भारत में ‘हरिनाम’ का प्रसार किया। संत नामदेव के गुरु विसोबा खेचर थे। जिनका उल्लेख गुरुग्रंथ और कबीर के भजनों में भी किया गया है। 

    ऐसे हुए विट्ठल भक्ति में लीन 

    एक दिन संत नामदेव की मां ने उन्हें दूध दिया और कहा की इसे विट्ठल मंदिर में भगवान के सामने भोग लगा दे। तब नामदेव दूध लेकर सीधे मंदिर गए और मूर्ति के आगे दूध रखकर कहा, ‘ लो इसे पी लो’  तब उस मंदिर में उपस्थित लोगों ने उनसे कहा की यह मूर्ति है ये दूध कैसे पीयेगी? मूर्ति कभी दूध नहीं पीती। हम श्रद्धा की भावना से बस भोग चढ़ाते है। 

    परंतु 5 वर्ष के नन्हे बालक नामदेव नहीं जानते थे की विट्ठल की मूर्ति दूध  नहीं पीती। तब मंदिर के लोगों ने उनकी बल लीला समझ कर सब अपने घर चले गए। लेकिन नामदेव माने वाले कहां थे। जब मंदिर में कोई नहीं था तब नामदेव बेहद रोये जा रहे थे। और उन्होंने कहा, ‘ विठोबा यह दूध पी लो नहीं तो मैं यहीं, इसी मंदिर में रोकर प्राण त्याग दूंगा। 

    तब बालक की मासूमियत देखकर भगवान विट्ठल मोहित हो गए और तब वे जीवित व्यक्ति के रूप में प्रकट हुए और खुद दूध पिया और नामदेव को भी पिलाया। यह चमत्कार नन्हे बालक नामदेव ने अपनी आखों से देखा और तब से वे विट्ठल भक्ति में लीन हो गए।