35 गांव करेंगे VVMC चुनाव का बहिष्कार

  • 10 वर्ष से चल रही गांवों को अलग करने की लड़ाई
  • मामला मुंबई हाईकोर्ट में विचाराधीन

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राधा कृष्णन सिंह

नालासोपारा. वसई- विरार महानगरपालिका से 35 गांवों को अलग किए जाने का मुद्दा एक बार फिर तूल पकड़ लिया है. आगामी चुनाव के बाद ही मनपा से गांवों को अलग किए जाने की सम्भावना को देखते हुए गांव वालों ने चुनाव बहिष्कार का निर्णय लिया है. इस मुद्दे को लेकर ग्रामीण जल्द ही बैठक करेंगे.

वसई-विरार मनपा से 35 गांवों को अलग करने की लड़ाई बीते 10 वर्षों से चल रही है. इस लड़ाई में हिंसक आंदोलन के दौरान पुलिस लाठीचार्ज,आंसू गैस के गोले भी दागे गए हैं. गांव को अलग करने के लिए न्यायालय में लड़ाई शुरू है. उसके बाद भी यह गांव मनपा से अलग नहीं हुए. आज भी आगाशी, कोफराड, बापाणे, ससुनवघर, भुईगांव, गास, गिरीज, कौलार, मर्देस, नवाले, निर्मल, नाले, वाघोली, दहिसर, राजोडी, उमराले, वटार, चांदीप, कशिदकोपर, कसराली, कोशिंबे, चिंचोटी, देवदल, कामण, कणेर, कोल्ही, मांडवी, शिरसाड, चोबारे, किरवली, मुलगांव, सालोली और वडवली के लोग मनपा से अलग होने की प्रतीक्षा कर रहे हैं. इस मामले में दखल देते हुए महापौर राजीव पाटील ने गांव को अलग करने के निर्णय पर उच्च न्यायालय से स्थगन आदेश लिया. आज भी इन गांवों को अलग करने का मुद्दा न्यायालय में विचाराधीन है. 

सरकार ने कोर्ट में रखा अपना पक्ष

 पिछले सप्ताह 29 गांव मनपा से अलग करने को लेकर अपना मत राज्य सरकार की ओर से न्यायालय में प्रस्तुत किया गया. सरकार ने अदालत को बताया कि मनपा से अलग किए जाने के बाद इन गांवों के लिए एक स्वतंत्र ग्राम पंचायत या नगरपालिका स्थापित करने के लिए ग्रामीणों के विचार प्राप्त करने में 3 महीने लगेंगे. ऐसी स्थिति में अगले 3 माह तक इन गांवों को अलग करने की संभावना अधर में लटक गई है.

जल्द बैठक कर रणनीति बनाएंगे ग्रामीण

 कोरोना के चलते स्थगित मनपा चुनाव जल्द ही होने की सम्भावना है. गांव अलग होने के पूर्व ही चुनाव हो सकता है. गांवों को अलग कराने के लिए इस बार चुनाव का बहिष्कार करने का निर्णय ग्रामीणों ने लिया है. बहिष्कार की रूपरेखा को लेकर चर्चा शुरू है. जिसमें कई संगठन भी हिस्सा लेंगे. इस बाबत गांव में बैठक होने की जानकारी दी गई है.

गांवों के अस्तित्व को बचाने बहिष्कार जरूरी

मनपा से गांव को अलग करने के लिए मतदान का बहिष्कार करने का निर्णय कड़वा है, लेकिन इन गांवों के अस्तित्व को बचाने के लिए बहिष्कार करना होगा. प्रक्रिया शुरू है.ग्रामीणों के सुझावों पर भी विचार किया जा रहा है. – मिलिंद खानोलकर,संस्थापक अध्यक्ष, मी वसईकर अभियान