- प्रजा फाउंडेशन ने जारी किया श्वेत पत्र
- स्वास्थ्य बजट का पूरा उपयोग नहीं
- हेल्थ स्टाफ की उपेक्षा का स्वास्थ्य सेवाओं पर असर
- कोरोना से लड़ाई में संघर्ष कर रही मुंबई मनपा
मुंबई. मुंबई महानगरपालिका ने प्रशासनिक स्तर पर स्वास्थ्यकर्मियों की उपेक्षा की है, जिसका नकारात्मक असर शहर की स्वास्थ्य सेवाओं पर पड़ा है. इसी की वजह से कोरोना संकट से लड़ने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. मंगलवार को प्रजा फाउंडेशन ने मुंबई की स्वास्थ्य सेवाओं पर श्वेत पत्र जारी किया, जिसमें कहा गया है कि वर्ष 2019 में बीएमसी के मेडिकल स्टाफ में 47 प्रतिशत पोस्ट खाली थे, जबकि पैरा-मेडिकल स्टाफ के 43 प्रतिशत पद खाली थे.
स्वास्थ्य समिति सदस्यों का नाम बदलने पर रहा जोर
यही नहीं, मनपा के पास पर्याप्त पैसे होने के बावजूद 2018-19 में कुल हेल्थ बजट का 54 प्रतिशत और 2016-17 में 73 प्रतिशत का उपयोग नहीं किया गया था. मनपा स्वास्थ्य समिति के सदस्यों की पहली प्राथमिकता, अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों का नाम बदलना था. प्रजा ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि 2019-20 में सबसे ज्यादा 17 सवाल नाम बदलने पर उठाए गए थे, जबकि मधुमेह या टीबी जैसी बीमारियों पर कोई सवाल नहीं उठाए गए थे.
बीएमसी के पास व्यापक नीति नहीं
रिपोर्ट को जारी करते हुए प्रजा फाउंडेशन के ट्रस्टी निताई मेहता ने कहा कि मुंबई में 2018 में प्रतिदिन 28 लोगों की मौत कैंसर, 29 की मधुमेह और 22 लोगों की सांस की बीमारियों से मौत हुई. मुंबई में नॉन कम्युनिकेबल डिजीज (एनसीडी) की बढ़ती संख्या के बावजूद इससे निपटने के लिए कोई व्यापक नीति बीएमसी के पास नहीं है. स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे में सुधार और बेहतर स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली की निगरानी की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि अपर्याप्त मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर और सुविधाओं में कमी, स्वास्थ्यकर्मियों की कमी और शहर के लोगों को प्रभावित करने वाली किसी भी बीमारी से निपटने के लिए बजट का सही उपयोग न होना, एक तरह से विपत्ति को न्यौता देना है.