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मुंबई. फिल्म एक्ट्रेस कंगना राणावत की लड़ाई राजभवन से होते हुए अब मुंबई महापौर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव तक पहुंच गई है. बीएमसी में बीजेपी महापौर किशोरी पेडणेकर के खिलाफ अविश्वास लाएगी. बीएमसी में भारतीय जनता पार्टी के गुट नेता  प्रभाकर शिंदे ने भाजपा प्रदेश कार्यालय में पत्रकार सम्मेलन में इसकी जानकारी दी. शिंदे ने बताया कि उन्होंने तत्काल बीएमसी सभागृह की बैठक बुलाने की मांग की है जिसमें अविश्वास प्रस्ताव पेश किया जा सके. 

 राज्य में महाविकास आघाड़ी सरकार बनने के बाद बीएमसी में 25  वर्षों से चल रहा शिवसेना -बीजेपी का साथ बीएमसी में छूट गया था. बीजेपी प्रत्यक्ष रूप से  शिवसेना के साथ मनपा की सत्ता में शामिल नहीं थी लेकिन बाहर से समर्थन दे रही थी. महापौर चुनाव में  शिवसेना को रांका और कांग्रेस के साथ जाने के कारण बीजेपी, शिवसेना से एकदम अलग हो गई. उसके बाद से ही बीजेपी, शिवसेना को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर लगातार घेर रही है. कोविड अस्पतालों में भ्रष्टाचार का मुद्दा हो या कंगना का ऑफिस तोड़ने का बीजेपी खुलकर शिवसेना का विरोध कर रही है. 

कोविड अस्पतालों में मानव बल सप्लाई करने का ठेका महापौर के बेटे की कंपनी को दिया गया था, इससे बीजेपी और मुखर होकर शिवसेना पर प्रहार कर रही है. शिंदे ने कहा कि वे महापौर के खिलाफ बीएमसी अधिनियम 2888 के नियम 36 के तहत अविश्वास प्रस्ताव ला रहे हैं. बीजेपी को उम्मीद है कि अन्य विपक्षी दल भी उसका साथ दे सकते हैं. सितंबर में ही ऑनलाइन हुई  बीएमसी सभागृह की बैठक में  नगरसेवकों को फंड वितरण में भेदभाव किए जाने के कारण शिवसेना से कांग्रेस और समाजवादी पार्टी भी नाराज है. राकां और कांग्रेस राज्य सरकार में शामिल हैं जबकि सपा बाहर से सरकार को समर्थन दे रही है. इन पार्टियों का बीजेपी के अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन करने की संभावना कम ही है लेकिन भ्रष्टाचार और फंड वितरण में भेदभाव के मुद्दे पर बीजेपी समर्थन की उम्मीद कर रही है. 

बीएमसी की 227  सीटों में से शिवसेना के पास इस समय निर्दलीय नगरसेवकों  को मिलाकर 94 नगरसेवक हैं. बीजेपी के पास 83, कांग्रेस के 27, राकां के 8,  सपा के 6  मनसे का 1 नगरसेवक है. मनसे ने 7 सीटें जीती थीं लेकिन उसके 6 नगरसेवक शिवसेना में शामिल हो गए थे. 

 महापौर ने 28 सितंबर को सभागृह की बैठक बुलाई है. नियमतः सभागृह की  एक महीने में 5 बैठक होनी चाहिए लेकिन कोविड संक्रमण के कारण पांच महीने में एक भी बैठक नहीं ली गई है. बजट मंजूर करने के लिए  वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से एक बैठक बुलाई गई थी उसमें भी फंड वितरण को लेकर हंगामा हो गया था. 

महापौर ने 70% फंड शिवसेना नगरसेवकों को दे दिया, 30 प्रतिशत में बीजेपी, कांग्रेस, राकां, सपा में बांट दिया था. सबसे कम फंड बीजेपी नगरसेवकों को मिला था. महापौर के इस कृत्य से सभी दलों में नाराजगी है, महापौर का विरोध सभी ने किया था  लेकिन मविआ में शामिल होने के कारण बीजेपी का साथ देने की संभावना कम ही है.