मुंबई. मुंबई की (Mumbai) इमारतों में रहने वालों की अपेक्षा स्लम के निवासियों में शरीर रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक पाई गई है। मुंबई में किए गए तीसरे सीरो सर्वे (Sero Survey) की रिपोर्ट (Report) से इसका खुलासा हुआ है। इमारतों के निवासियों में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने के कारण कोरोना के अधिक शिकार हो रहे हैं।
रिपोर्ट में बताया गया है कि स्लम (Slum) में रहने वाले लोगों के अपेक्षा इमारत के निवासी जंक फूड और होटल के बने खाने का सेवन अधिक करते हैं, जबकि स्लम में रहने वाले लोग घर का बना खाते हैं जिसमें मोटे अनाज की रोटी, सब्जी और चावल का सेवन ज्यादा करते हैं। घर का बना खाना खाने के कारण स्लम के निवासियों में प्रतिरोधक क्षमता अधिक पाई गई है।
क्या कहती है रिपोर्ट?
बीएमसी (BMC) और टाटा फाउंडेशन (Tata Foundation) की तरफ से किए गए सिरो सर्वे के तहत लिए गए नमूने की रिपोर्ट के अनुसार, मुंबई की घनी आबादी वाले इलाके चाल और झोपडपट्टियों में एंटीबॉडी तैयार होने की दर 45 से 57 प्रतिशत है। जबकि इमारतों में रहने वाले निवासियों यह औसत 16 से 21 प्रतिशत पाई गई है। कोरोना प्रसार और प्रतिरोधक शक्ति जांचने के लिए सिरो सर्वे कराया गया था। इससे पहले दो चरण पूरे किए गए थे। मुंबई के उन वॉर्डों में यह सर्वे किए गए थे जहां स्लम और इमारत दोनों हैं।
तीसरे चरण का सर्वें
मुंबई के चार वॉर्डों में तीसरे चरण का सर्वे शुरु है। जिसमें पता चला है कि लोगों में शरीर प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि हुई है। तीसरे चरण के पहले भाग की रिपोर्ट बताती है कि चाल और झोपडियों के निवासियों में प्रतिरोधक क्षमता बेहतर हो रही है। बीएमसी के अतिरिक्त आयुक्त सुरेश काकानी ने कहा कि तीसरे चरण के सर्वे में अब तक 12000 लोगों के सेंपल जमा किए गए हैं। जिसमें से पहले हिस्से में 6 हजार नमूनों की रिपोर्ट से पता चलता है कि लोगों में अपने आप एंटीबॉडी विकसित हो रही है।