वायरस का पीछा कर धारावी में कंट्रोल हुआ कोरोना

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मुंबई. एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी बस्ती धारावी में कोरोना संक्रमण फैलने के बावजूद उसे जिस तरह से काबू में किया गया, उसकी तारीफ विश्व स्वास्थ्य संगठन और विदेशी मीडिया लगातार किये जा रहा है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हाल ही में धारावी मॉडल को कोरोना से लड़ने का ‘सक्सेस मॉडल’ बताया है और इसकी तुलना न्यूजीलैंड जैसे विकसित देश से की है. 

बन चुका था हॉटस्पॉट

धारावी जैसी घनी आबादी वाले एरिया को लेकर अप्रैल और मई के महीने में कहा जा रहा था कि यहां ‘कोरोना विस्फोट’ की आशंका पैदा हो गई है.क्योंकि लॉकडाउन के कुछ दिनों बाद ही प्रति वर्ग किलोमीटर 3.54 लाख आबादी के घनत्व वाला धारावी एक कोविड हॉटस्पॉट बन चुका था. पर जब बीएमसी कमिश्नर आई एस चहल अपनी टीम के साथ पूरे दम ख़म से यहां कोरोना को कंट्रोल करने उतरी तो कुछ ही दिनों में परिदृश्य ही बदल गया. अब इस एरिया से कोरोना के सबसे कम मामले आ रहे हैं और मौतों पर तो जैसे पूर्ण विराम लग गया है.  

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खूब सुर्खियां बटोरी 

जिस ‘धारावी मॉडल’ ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खूब सुर्खियां बटोरी हैं और जिसकी चारों तरफ चर्चा हो रही है, उसे अमली जामा पहनाने  वाले मनपा आयुक्त चहल को शायद इसका अंदाजा नहीं रहा होगा. उन्हें बीएमसी की कमान संभाले चंद दिन ही हुए थे और उनके सामने एक सक्षम टीम को खड़ा करना एक बड़ी चुनौती थी.   

बीएमसी कमिश्नर का ‘चेस द वायरस’ फार्मूला असरदार साबित हुआ 

चहल की टीम में काम कर रहे उनके अधीनस्थ अधिकारी ने बताया कि कोरोना को कंट्रोल करने में लगी टीम की सबसे बड़ी दुश्वारी संक्रमित लोगों को ट्रेस करने की थी और साथ ही साथ इसके प्रसार को रोकना भी था. इसके लिए चेस द वायरस (वायरस का पीछा करो) और ट्रिपल-टी एक्शन प्लान यानी ‘ट्रेस-टेस्ट-ट्रीटमेंट’ का फंडा अपनाया गया जिससे धारावी में कोरोना पर काबू पाने में कामयाबी मिली. काबिल ए गौर है कि इसका इस्तेमाल कर दक्षिण कोरिया लगभग पूरी तरह से कोरोना मुक्त हो चुका है.

2,450 लोगों की एक टीम तैनात थी

अधिकारी ने बताया कि धारावी में कोरोना कंट्रोल के लिए बीएमसी के 2,450 लोगों की एक टीम तैनात थी, जो लोगों को ट्रेस करने, टेस्ट करने और ट्रीटमेंट करने का काम कर रही थी। इसमें डॉक्टर, नर्स के साथ-साथ सैनिटाइजेशनवाले और सफाईकर्मी भी शामिल थे। इसके साथ 1250 लोगों की कॉन्ट्रेक्ट मेडिकल टीम भी यहां जुटी हुई थी जो ज्यादातर लोगों की स्क्रीनिंग का काम करती थी.

रोल मॉडल बन चुका है धारावी

उन्होंने बताया  कि सभी स्कूल, नर्सिंग होम और होटल्स को सैनिटाइज कर उसे कोरोना वायरस ट्रीटमेंट और आइसोलेशन सेंटर में तब्दील कर दिया गया. धारावी की सबसे बड़ी समस्या वहां के कम्युनिटी टॉयलेट्स हैं जिसके बारे में कहा जाता है कि एक टॉयलेट को दिन में कम से कम ढाई सौ लोगों द्वारा 700 से 800 बार इस्तेमाल में लाया जाता है. अतः सभी कम्युनिटी टॉयलेट को बार बार सैनीटाईज करना बीएमसी के टीम की सबसे बड़ी जिम्मेदारी थी और चुनौती भी थी. टीम ने सभी लोगों से आगे आकर अपना टेस्ट करवाने को प्रोत्साहित किया जिसमें टेंपरेचर और ऑक्सीजन लेवल चेक किया जाता था. जिसके बारे में थोड़ा भी शक होता था, उसे आइसोलेशन सेंटर में शिफ्ट कर दिया जाता था. इस तरह धीरे-धीरे चहल की टीम मेहनत रंग लाई और इसकी ख्याति न सिर्फ भारत में बल्कि विदेशी मीडिया और यहां तक कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की मीटिंग तक पहुंच गई.  बीएमसी की इन्हीं कोशिशों से कोरोना को मात देकर अस्पताल से बाहर आए समीर भाटकर बताते हैं कि जब कोरोना का आउटब्रेक धारावी में हुआ तो उन्हें और सभी बस्ती वालों को लगा कि कुछ दिनों में पूरी धारावी ध्वस्त हो जाएगी, क्योंकि यहां 10×15 फ़ीट के रूम में 10 से 15 लोग रहते हैं, परंतु उनकी यह चिंता बेकार निकली और आज धारावी कोरोना के मामले में सबसे अच्छा प्रदर्शन कर रहा है और बाकी लोगों के लिए रोल मॉडल बन चुका है.