15 साल बाद भी जस की तस मीठी नदी

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  • सैकड़ों करोड़ रुपये खर्च करने के बावजूद नहीं बदला स्वरुप

मुंबई. 26 जुलाई 2005 का वह मंजर याद करने मात्र से शरीर में सिहरन पैदा हो जाती है. मुंबई में एक ही दिन हुई 944 मिमी बारिश की वजह से मीठी नदी ने विकराल रुप अपनाया और सैकड़ों जिंदगियां पानी के आगोश में खत्म हो गईं.मुंबई में आयी प्रलयंकारी बाढ़ के बाद मीठी नदी चर्चा में आयी. 

बाढ़ की विभीषिका के बाद सरकार ने आपदा की वजह को जानने एवं भविष्य में इस तरह की विपत्ति से बचने को लेकर एक फैक्ट फाइंडिंग कमिटी बनायी.कमिटी की जांच में यह तय पाया गया कि मीठी की कम चौड़ाई बाढ़ के लिए काफी हद तक जिम्मेदार थी. कमिटी की सिफारिश के तहत ही मीठी नदी के विकास एवं सौंदर्यीकरण की योजना तैयार की गई.

पिछले 15 सालों से पुनरोत्थान का कार्य शुरु

  पिछले 15 सालों से पुनरोत्थान का कार्य शुरु है, सैकड़ों करोड़ रुपये खर्च किए जाने के बावजूद नदी की सांस घुट रही है. बताया गया कि मीठी नदी को पुनर्जीवित करने को लेकर 2136.89 करोड़ रुपए की परियोजना तैयार की गयी है. इस रकम का अधिकतर हिस्सा नदी को गहरा और चौड़ा करने में खर्च हो चुका है. महाराष्ट्र सरकार के ताजा आंकड़े के मुताबिक, मीठी नदी को पुनर्जीवित करने के नाम पर  लगभग 1156.75 करोड़ रुपये 12 पुलों के निर्माण. नदी को चौड़ा करने, दीवारें खड़ी करने, अतिक्रमण हटाने, सर्विस रोड बनाने और सील्ट हटाने में खर्च किया जा चुका है. यही नहीं नदी पर मौजूद पांच पुलों, माहिम कॉजवे, तानसा, तुलसी, धारावी और माहिम रेलवे ब्रिज को चौड़ा करने पर 600 करोड़ रुपये खर्च किया जाना है. 

 मीठी नदी को कभी जीवनदायिनी भी कहा जाता था

 मीठी नदी को कभी जीवनदायिनी भी कहा जाता था.संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान में विहार जलाशय के निर्माण के बाद अस्तित्व में आयी मीठी नदी कभी लोगों की प्यास भी बुझाती थी, लेकिन औद्योगिक इकाइयों के स्थापित होने के बाद मुंबई में आबादी बढ़ी.धीरे-धीरे मीठी नदी गंदे नाले का स्वरुप लेने लगी.बाढ़ की विभीषिका के पहले वर्ष 2004 में मीठी नदी के प्रदूषण पर महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में एक रिपोर्ट दाखिल की गई थी,जिसमें कहा गया था कि यह नदी अपने उद्गम पर ही प्रदूषित हो जाती है. रिपोर्ट के मुताबिक,नदी घनी आबादी से होकर बहती है और इस आबादी का सीवेज इस नदी को मुंबई के सबसे बड़े नाले में बदल देता है.

काम केवल कागजों तक ही सीमित 

वर्ष 2005 की बाढ़ के बाद नदी के विकास को लेकर हर स्तर पर कार्य शुरु हुआ.लेकिन काम केवल कागजों तक ही सीमित है.जिसकी वजह से मीठी नदी में बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) सुरक्षित स्तर से पांच गुना अधिक है. बीओडी पानी में जलीय जीवन के जीवित रहने के लिए जरूरी ऑक्सीजन की मात्रा होती है. आईआईटी मुंबई और एनईईआरआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक औद्योगिक अपशिष्ट और ठोस कचरे ने मीठी नदी को एक खुले नाले में बदल दिया है.इस नदी को साफ करना कोई आसान काम नहीं है. इसके दोनों किनारों पर बसी झोपड़पट्टियों में लाखों लोग रहते हैं. 

मीठी नदी में 93 प्रतिशत घरेलू अपशिष्ट 

एक रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि मीठी नदी में 93 प्रतिशत घरेलू अपशिष्ट है, जबकि बाकी का 7 प्रतिशत ही औद्योगिक कचरा है. लेकिन सच्चाई यह है कि इस नदी के किनारे लगभग 1500 से अधिक औद्योगिक इकाईयां हैं और उनमें से अधिकतर अपना अपशिष्ट सीधे इसी नदी में बहाते हैं. नदी के किनारे की झोपड़पट्टियों में कचरा निस्तारण की व्यवस्था ठीक नहीं है. ऐसे में लोग अपने घरों का कचरा सीधे नदी में ही डाल देते हैं.  पिछली फड़णवीस सरकार ने मीठी को बचाने के लिए एक रिवर एंदेम बनाया था. पर, नदी को बचाने के लिए घाट, सड़क-पुल-दीवार बनाना झुंझला देने वाली बात है. वर्तमान सरकार भी मीठी नदी के विकास को लेकर दावे कर रही है.पर्यटन मंत्री आदित्य ठाकरे का दावा है कि भविष्य में यह नदी पर्यटन का केंद्र बनेगी और लोगों को रोजगार भी उपलब्ध कराएगी.लेकिन मीठी नदी के आस पास रहने वाले पर्यटन मंत्री के दावों को दिवा स्वप्न बताने से गुरेज नहीं करते हैं.

पुख्ता इंतजाम नहीं

 राकां नेता एवं कुर्ला के नगरसेवक कप्तान मलिक कहते हैं कि कुर्ला एवं आस पास के लोगों में बाढ़ को लेकर डर बना हुआ है.मुंबई में जब भी मूसलाधार बारिश होती है तब 26 जुलाई 2005 की याद सताने लगती है.बाढ़ का खतरा टालने को लेकर मुंबई मनपा एवं एमएमआरडीए की तरफ से पुख्ता इंतजाम नहीं हो पाया है. 26 जुलाई 2005 की बाढ़ ने क्रांतिनगर, शास्त्रीनगर, बैलबाजार सहित अन्य इलाकों में कहर बरपाया था.इलाके के नगरसेवक एवं मनसे पदाधिकारी संजय तुर्डे का कहना है कि भ्रष्टाचार की वजह से मीठी नदी का विकास पूरी तरह से नहीं हो पाया है.इस साल अभी तक पानी नहीं भरा है, लेकिन भारी बारिश में बाढ़ की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है.

अब तक किया गया काम

  • 16.2 किमी तक नदी को 7 फुट तक गहरा किया गया. खर्च 330 करोड़ रुपये.
  • 16.2 किमी तक नदी को चौड़ा किया गया. खर्च 173 करोड़ रुपये.
  • 24 किमी लंबी सुरक्षा दीवार का निर्माण. खर्च 569 करोड़ रुपये.
  • 4 हजार 388 झोपड़े हटाए गए.खर्च 1156.75 करोड़.