कोरोना के कारण एचआईवी टेस्टिंग कम, 7 महीने में 68 % गिरावट

  • नए मामलों का गिरता ग्राफ
  • 5 वर्ष में 41 % घटी नए मरीजों की संख्या
  • कल विश्व एड्स दिवस

Loading

सूरज पांडे

मुंबई. मनपा के मुंबई जिला एड्स नियंत्रण संगठन (एमडैक्स) के निरंतर प्रयासों का अब सकारात्मक परिणाम देखने को मिल रहा है. मुंबईकरों के लिए अच्छी बात यह है कि शहर में एचआईवी जैसी गंभीर बीमारी का ग्राफ गिरता जा रहा है. अप्रैल 2015 से मार्च 2020 तक नए मरीजों की संख्या में 41 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है, लेकिन इस वर्ष अप्रैल से अक्टूबर तक कोरोना के कारण टेस्टिंग काफी प्रभावित हुई है. इन 7 महीनों में लगभग 2,24000 जांच होनी चाहिए थी, जबकि 83190 टेस्टिंग हुई और 803 लोगों में एचआईवी की पुष्टि हुई है.

आंकड़े साफ दर्शाते हैं कि टेस्टिंग में 62.86 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है. इस संदर्भ में एचआईवी कार्यकर्ता गणेश आचार्य ने कहा कि कोरोना के कारण टेस्टिंग प्रक्रिया काफी प्रभावित हुई है और इसमें मनपा का कोई दोष नहीं है. जब व्यक्ति को कोई स्वास्थ्य समस्या होती है तभी वह अस्पताल पहुंचता है. प्राथमिक जांच के बाद ही डॉक्टर तय करते है कि मरीज को एचआईवी टेस्ट की आवश्यकता है या नहीं. लॉकडाउन में लोग अस्पताल ही नहीं पहुंच पा रहे थे. कुछ संक्रमण के डर के कारण तो कई यातायात न होने के कारण. यही कारण है कि टेस्टिंग के आंकड़े कम है.

लॉकडाउन के कारण लोग अस्पताल ही नहीं पहुंच रहे थे

एमडैक्स की एडिशनल प्रोजेक्ट डायरेक्टर डॉ. श्रीकला आचार्य ने कहा कि लॉकडाउन के पहले 3 महीने अस्पताल के ओपीडी बंद थे. केवल फीवर ओपीडी और एचआईवी मरीजों के एआरटी केंद्र ही खुले थे. लॉकडाउन के कारण लोग अस्पताल ही नहीं पहुंच रहे थे, जिसके चलते जांच में गिरावट आई है. अब जब तक स्थिति सामान्य नहीं हो जाती तब तक टेस्टिंग बढ़ेगी या नहीं यह कहना मुश्किल होगा.

टेस्टिंग में बढ़ोत्तरी, मामलों में कमी

मुंबई में 2015-16 में 2.8 लाख लोगों की एचआईवी स्क्रीनिंग की गई थी, जबकि वर्ष 2019-20 में टेस्टिंग का आंकड़ा लगभग दोगुना यानी 4.8 लाख पहुंच गया है. जबकि पिछले 5 वर्ष में नए मरीज़ों की संख्या 7592 से घट कर 4473 तक पहुंच गई है. पॉजिटिव गर्भवती महिलाओं से बच्चों में संक्रमण का आंकड़ा भी 215 से घटकर 144 तक पहुंच गया है. वर्तमान में 36580 लोग एचआईवी/एड्स के साथ जी रहे हैं.

हाई रिस्क ग्रुप का गिरता ग्राफ

महिला सेक्स वर्कर (एफएसडब्ल्यू), पुरुष से पुरुष (एमएसएम) संबंध रखने वाले और तृतीय पंथियों में एचआईवी संक्रमण का खतरा आम लोगों की तुलना में सबसे अधिक होता है. वर्तमान में भी एचआईवी से संक्रमित होने का सबसे बड़ा 93.1 प्रतिशत कारण असुरक्षित यौन संबंध है, लेकिन अब इसमें भी गिरावट हो रही है. विगत 3 साल में एफएसडब्ल्यू (1.9%), एमएसएम (24.7%) और ट्रांसजेंडर (65%) की गिरावट दर्ज की गई है.

मनपा की ‘मितवा’ मुहिम

एचआईवी के साथ जी रहे 12 से 18 आयु वर्ग के किशोर, किशोरियों को एक बेहतर जिंदगी कैसे जी जाए. इसको लेकर एक वर्कशॉप का आयोजन किया जा रहा है. डॉ. आचार्य ने बताया कि एचआईवी वायरस से संक्रमित अभिभावकों से जन्म लेने वाले बच्चों में भी संक्रमण हो जाता है. ऐसे में बच्चों को बच्चपन से दवाइयां दी जाती है, लेकिन जब वे बड़े हो जाते है तो यह सवाल पूछते हैं कि आखिर उन्हें यह दवाइयां क्यों दी जा रही है. अक्सर अभिभावकों को यह उत्तर देना मुश्किल हो जाता है. किशोर अवस्था में जब उन्हें बीमारी के बारे में पता चलता है तो वह अभिभावकों को जिम्मेदार ठहराने लगते है, उनमें मनमुटाव रहता है. कई बार दवाइयां लेने से भी इंकार कर देते हैं तो कई मानसिक समस्याओं से ग्रसित हो जाते है. इसलिए हमने किशोर अवस्था में एचआईवी के साथ जी रहे लोगों के लिए हर एआरटी सेंटर में साप्ताह में एक बार एक वर्कशॉप रखने की योजना बना रहे हैं. 1 दिसंबर को हमने एचआईवी के साथ जी रहे 100 किशोर, किशोरियों को बुलाया है. पहले हम उनकी मन की बात जानेंगे उसके बाद हम योजना बनाएंगे की उनकी समस्याओं का निवारण कैसे करना है और उन्हें एक बेहतर जिंदगी जीने को लेकर मार्गदर्शन करेंगे.

एआरटी केंद्रों में वीडियो की ओस्क

कल मुंबई के 11 एआरटी केंद्रों में वीडियो कीओस्क स्थापित किए जाएंगे. इसमें कई प्रकार के वीडियो होंगे जो एचआईवी मरीजों को बीमारी को लेकर जागरूक करेंगे. इसके अलावा मरीज इसमें अपना फीडबैक या शिकायत भी दर्ज कर सकते हैं.