NO Lessons learned from Prince's death

  • मुंबई के मनपा और सरकारी अस्पतालों का भी बुरा हाल
  • सेफ्टी का नहीं है इंतजाम

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मुंबई. 2 वर्ष पहले मुंबई (Mumbai) के केईएम (KEM) अस्पताल में प्रिंस (Prince) की मौत से यदि सबक लिया गया होता तो भंडारा (Bhandara) में 10 बच्चों की दर्दनाक मौत से बचाया जा सकता था। यह घटना बताती है कि राज्य के सरकारी अस्पतालों (Government Hospitals) की स्थिति बेहद दयनीय है। मुंबई के मनपा (BMC) और सरकारी अस्पताल भी इससे अछूते नहीं हैं। 

किसी भी घटना के बाद राजनीतिक बयान और कुछ लाख रुपए मुआवजा देकर भूलने की आदत नेताओं को रही है, लेकिन उन माताओं का दर्द क्या उससे कम हो जाएगा जो 9 माह गर्भ में पालने के कुछ घंटे के बाद उसके बच्चे की मौत देखनी पड़े। मुंबई के मनपा और सरकारी अस्पतालों का भी सुरक्षा के लिहाज से बुरा हाल है।  केईएम अस्पताल के आयसीयू में भर्ती 2 महीने के बच्चे प्रिंस राजभर का ईसीजी करते समय शार्ट सर्किट के कारण आग लग गई। एक महीने के बाद उसकी मौत हो गई। प्रिंस को दिल की बीमारी के इलाज के लिए वाराणसी से मुंबई लाया गया था।  बीएमसी ने प्रिंस के परिवार को 10 लाख रुपए मुआवजे का मुआवजा दिया था, लेकिन इस घटना के दोषियों पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई।

सभी बच्चे वेंटिलेटर पर थे

भंडारा के जिला अस्पताल में जिन 10 नवजात बच्चों की मौत हुई उनकी आयु 1 से 3 महीने के बीच थी। सभी बच्चे वेंटिलेटर पर थे। इस संदर्भ में हेल्थ एक्सपर्ट का कहना है कि अस्पतालों की लापरवाही के कारण ऐसी घटनाएं होती हैं।  

सुरक्षा मानकों का पालन नहीं किया गया

ऑल इंडिया फूड एंड ड्रग लायसेंस होल्डर के अध्यक्ष अभय पांडे का कहना है कि अस्पतालों में लगी मशीनरी का समय से मेंटिनेंस नहीं करने पर इस तरह के हादसे होते हैं। पांडे का कहना है कि अस्पतालों में लगे उपकरण और सुरक्षा के मानक तय होते हैं। प्रिंस अथवा भंडारा की घटना इसलिए घटी क्योंकि सुरक्षा मानकों का पालन नहीं किया गया। न्यूबॉर्न केयर यूनिट के मेंटिनेस का एसओपी बनी हुई है। उसी नियमों के तहत पालन करके चलाया जाता है। नर्स कैसे उसे ऑपरेट करेंगी यह एसओपी में निर्धारित रहता है। सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एसएनसीयू अलमारी और भारी उपकरण और वस्तुएं कहीं लटकी हुई तो नहीं है। इसका ध्यान देना पड़ता है। पांडे का कहना है कि मशीनरी की खरीद के बाद उसकी मरम्मत पर ध्यान नहीं देने से यह हादसा हुआ है।

  •  एनआईसीयू के लिए स्विच बोर्ड, पैनल , वायरिंग सहित अन्य विद्युत उपकरण अलग होते हैं।
  •  उपकरणों की तय अवधि में  जांच / परीक्षण के लिए एक तंत्र होता है जो समय समय पर जांच करते रहता है।
  •  यह भी देखना पड़ता है कि समर्पित  प्रणाली सही से कार्य कर रही है या नहीं।
  •  बोर्ड में लगी अर्थिंग को वर्ष में दो बार जांच कर उसको लॉग बुक में दर्ज करना पड़ता है।
  •  मैनुअल का पालन कराने और रख रखाव की  जिम्मेदारी विभागीय प्रमुख की रहती।
  • विभाग प्रमुख को हमेशा उपकरणों को ट्रैक कर उसका भी रिकॉर्ड रखना पड़ता है।

भंडारा की घटना बहुत दर्दनाक है। ऐसी घटनाओं से बीएमसी अस्पतालों को सबक लेकर मेंटिनिंस पर ध्यान देना होगा। मैं जल्द ही अस्पतालों के न्यूबॉर्न केयर यूनिट का विजिट कर सभी को सतर्क रहने का निर्देश दूंगी। जिससे इस तरह के हादसे से बचा जा सके। -

प्रविणा मोरजकर, अध्यक्ष, स्वास्थ्य समिति बीएमसी

फायर ब्रिगेड समय समय पर अस्पतालों की जांच करता रहता रहता है। अभी हमने सभी मॉल की जांच की है। अब अस्पतालों में फायर सिस्टम की जांच होगी। अस्पताल के भीतर शार्ट सर्किट से फायर ब्रिगेड का सीधे संबंध नहीं होता है। हम अपनी तरफ से आग से सुरक्षा के उपकारणों की संतुष्ट होने तक जांच करते रहते हैं।

-कैलाश हिरवले, प्रमुख, मुंबई फायर ब्रिगेड