30 दिनों में तीन ग्रहण, 6 ग्रहों का वक्री भ्रमण

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– प्राकृतिक आपदा से जनधन की हानि संभव

– राहु दे रहा राजनीतिक उथल पुथल का संकेत

– मिथुन राशि का सूर्य ग्रहण, बना रहा राजभंग योग

मुंबई. 5 जून को ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा पर चंद्रग्रहण लगने जा रहा है. इसके बाद 21 जून को आषाढ़ माह की आमवस्या पर सूर्यग्रहण लगेगा जिसका मानव जीवन पर व्यापक असर पड़ने जा रहा है. जबकि 5 जुलाई को आषाढ़ मास की पूर्णिमा पर पुनः चंद्रग्रहण लगेगा. इस तरह से 30 दिनों में लगने वाले 3 ग्रहण देश और विदेश में अपना असर अवश्य दिखाएंगे. ज्योतिष शास्त्र में ग्रहण 3 प्रकार के होते हैं. पूर्ण ग्रहण, आंशिक या खग्रास ग्रहण एवं उपछाया ग्रहण.

5 जून की रात को लगने वाला चंद्रग्रहण उपछाया ग्रहण होगा जो भारत में आंशिक दिखाई देगा, लेकिन अपना प्रभाव अवश्य देगा. यह ग्रहण 5 जून को रात 11.15 बजे शुरू होगा और 6 जून को सुबह 2.34 बजे तक रहेगा. ज्योतिष विद्वानों के अनुसार एक माह में 3 ग्रहण शुभ फल नहीं देते. कई तरह की समस्याएं उत्पन्न हो सकती है, किसी बड़े राजनेता का वियोग हो सकता है. ग्रहण के दौरान शुक्र वक्री होकर अस्त रहेगा. गुरु शनि भी वक्री समेत तीन ग्रह वक्री रहेंगे, जिसका प्रभाव अर्थव्यवस्था पर हो सकता है.

चांडाल योग में सूर्य ग्रहण, आपदा को आमंत्रण

30 दिन में पड़ने वाले 5 जून और 5 जुलाई के दो चंद्रग्रहण उपछाया ग्रहण होंगे जो भारत में दृश्य नहीं होंगे जिससे इनका यहां अल्प प्रभाव पड़ेगा. लेकिन 21 जून को सुबह 9:15 बजे लगने जा रहा सूर्यग्रहण मिथुन राशि में होगा, दोपहर 3:03 बजे तक रहने वाले ग्रहण में त्रिकोण के नवम स्थान का स्वगृही शनि व गुरू चांडाल योग का निर्माण कर रहे हैं. इसके अलावा मंगल को छोड़कर एक साथ सभी 6 ग्रह वक्री रहेंगे. नौ ग्रहों में सूर्य और चंद्र हमेशा मार्गी गति से गोचर करते हैं. जबकि राहु और केतु हमेशा टेढ़ी (वक्री) चाल चलते हैं. 21 जून को बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु, केतु वक्री रहेंगे. इसके चलते वैश्विक परिदृश्य में अनर्थ होने के संकेत मिल रहे हैं. कुछ देशों के बीच युद्ध जैसे हालात उत्पन्न हो सकते हैं, लेकिन मंगल के कारण युद्ध टल सकता है. लेकिन राहु की उल्टी चाल राजनीतिक उथल-पुथल के संकेत दे रही है. ग्रह स्थितियां समाजिक विद्वेष, आर्थिक  मंदी, प्राकृतिक आपदा, भूकंप, विमान अथवा रेल दुर्घटना, अतिवृष्टि की ओर इशारा कर रही है. राहु कुछ राज्यों में अचानक सत्ता परिवर्तन करा सकते हैं.

ठाकरे सरकार के भविष्य पर लग सकता है ग्रहण

28 नवम्बर 19 गुरुवार को सायंकाल 06 बजकर 44 मिनट पर शपथ लेने वाली महाराष्ट्र की ठाकरे सरकार पर भी सूर्यग्रहण का प्रभाव पड़ना तय है. राहु के कारण ही मित्र दल का त्याग कर विरोधियों के साथ सरकार का गठन किया गया है. और अब यही राहु षडयंत्र करने जा रहा है. यद्यपि अमृत के चौघड़िये में ठाकरे सरकार ने शपथ प्रक्रिया अपनायी है जो अच्छा है, किन्तु लग्न सवाल उत्पन्न कर रहा है. मिथुन के आरम्भिक अंशों में होने से अस्थिर मानसिकता वाले मिथुन लग्न में राहु उच्च का बैठकर उसे और अधिक अस्थिर कर रहा है. लग्नेश बुध भी त्रिकोण में बैठ कर षष्ठेश मंगल से युति कर दुर्बल हो गया है. सूर्य वृश्चिक राशि का छठे भाव में तथा कुंडली के सातवें भाव में 5 विपरीत प्रकृति के ग्रह, शनि, बृहस्पति, शुक्र केतु और चन्द्रमा बैठे हैं. यहां केतु उच्च का है, किन्तु उसकी विस्फोटक दृष्टि लग्न, पराक्रम एवं एकादश भाव को निर्बल करती है.

एकादशेश मंगल अपने भाव को देखता है अत: जब तक मंगल तुला राशि का, त्रिकोण में रहेगा सरकार को आर्थिक दृष्टि से कोई संकट नहीं रहेगा. राहु केतु राजनीति में उच्च के प्रभावी होते हैं किन्तु विस्फोटक भी. कब आकाश से गिरा कर धूल चटा दें, कह नहीं सकते. देवेन्द्र फडणवीस ने भी केतु वाले धनु लग्न में ही मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. तब अष्टमेश चन्द्रमा दसवें भाव में बैठा था. तीसरे दिन चन्द्रमा ने राशि बदली और परिणाम सबके सामने था. उद्धव ठाकरे के शपथ ग्रहण के समय केतु की महादशा में राहु अंतर में शनि प्रत्यंतर दशा चल रही थी. अभी पराक्रमेश सूर्य छठे भाव में बैठा है जो शत्रुओं को ताप देता प्रतीत होता है. यह अगले 2 माह में सातवें और आठवें भाव में रहेगा तब बृहस्पति, शुक्र और शनि को निर्बल करता हुआ आगे बढे़गा जहां स्वयं राहु केतु से ग्रसित होगा. सरक की अस्थिरता का सबसे बड़ा कारण उद्धव ठाकरे की कमजोर कुंडली है. यदि सरकार के मुखिया की कुंडली प्रबल होती है तो अन्य गोचर को नियंत्रित कर लेती हैं, किन्तु यहां मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का यह राजयोग अल्पकालिक दिखता है.

उद्धव ठाकरे की कुंडली

उद्धव ठाकरे की कन्या लग्न वाली कुंडली में निर्बल बुध दसवें, राज्य भाव में स्वगृही बैठा है. वह चतुर्थ भाव में बैठे शनि एवं बृहस्पति से दृष्ट है. शनि तीसरी दृष्टि से अपने शत्रु स्थान को सुदृढ़ कर रहा है वहीं सातवीं एवं दसवीं दृष्टि से क्रमशः दशम भाव एवं लग्न को दुर्बल बना रहा है. बृहस्पति भी यहां बुध को भटकाव देने का कार्य ही कर रहा है. कुंडली का पराक्रमेश मंगल भाग्य भाव में बैठ कर अपना पराक्रम तो बढ़ा रहा है, किन्तु वह यहां बैठ कर भाग्य को पलीता भी लगा रहा है. निर्बल भाग्येश शुक्र एकादश स्थान में सूर्य के साथ अस्त होकर बैठा है. एकादशेश चंद्रमा राहु के साथ बारहवें भाव में है. यह युति इच्छाओं को जागृत तो करती है, किन्तु उनकी सम्पूर्ण पूर्ति नहीं होने देती.

अजीत पवार की कुंडली

अजित पवार जी की कुम्भ राशि है. कुम्भ राशि में इस समय शनि की साढ़ेसाती चल रही है जो कि अचानक राजभंग योग का निर्माण करती है. जैसा कि पहले भी हो चुका है. गोचर में सूर्य, बुध, राहु का योग इनके पंचम भाव मे हो रहा है. यह गोचर इनके लिए अशुभ फल दे सकता है.

देवेंद्र फडणवीस की कुंडली

देवेन्द्र फडणवीस की भी कुम्भ राशि है. कुम्भ राशि में शनि की साढ़ेसाती के कारण ही इनका राजभंग योग बना था. इनकी जन्म कुंडली में शनि सातवें भाव में नीच का है, लेकिन यह योग वर्तमान में इन्हें  शुभ फल तो देगा. नीच का शनि इन्हें सत्ता के लिए विशेष संघर्ष कराएगा.

सूर्यग्रहण से उथल पुथल का स्पष्ट संकेत

21 जून को नवम स्थान में स्वगृही शनि व गुरू के बीच चांडाल योग का निर्माण कर रहा है. मिथुन राशि में एक साथ 6 ग्रह, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु, केतु वक्री रहेंगें. यह संयोग बहुत बड़ा अनिष्टकारी हो सकता हैं. कोरोना संकट के बीच राजनैतिक अस्थिरता,  समाजिक विद्वेष, आर्थिक  एवं स्वास्थ्य संबंधित समस्या को बढाने वाला हो सकता है. – आचार्य पं. महेंद्र जोशी.

 

राजभंग योग से सत्ता परिवर्तन के संकेत

2020 का कुल जोड़ 4 आता है, जो कि राहु से संबंधित है. इसलिए 2020 में राहु का प्रभाव रहेगा. राहु महामारी रोग का कारक होता है.राहु, केतु के कारण ही सूर्य एवं चंद्र ग्रहण होता है. 21 जून को मिथुन राशि में होने जा रहे इस ग्रहण काल में मंगल मीन राशि में स्थित होकर सूर्य, बुध, चंद्रमा और राहु को देखेंगे जो कि राजभंग योग का संकेत है. ग्रहण के समय 6 ग्रहों की वक्री चाल पूरे विश्व में उथल पुथल मचाएगी. ग्रहण के समय ग्रहों के वक्री होने से प्राकृतिक आपदा, सत्ता परिवर्तन, विकसित राष्ट्रों के बीच तनातनी की स्थिति बन सकती है. -पं. आशीष तिवारी.

 

तीनों ग्रहण का भारत पर प्रभाव

ग्रहण और वक्री ग्रह भारतीय कुंडली के क्रमशः पहले, दूसरे और नौवें घर को सक्रिय कर रहे हैं. जैसा की नौवां घर निर्णय के लिए जाना जाता है, अतः आने वाले महीनों में नागरिकों की सुरक्षा और कल्याण के लिए न्यायिक प्रणाली और अधिक कार्यरत नज़र आ सकती है. पहला घर जनता के स्वास्थ्य के लिए जाना जाता है, इसलिए 26 जून से जब भारतीय कुंडली के लग्न के स्वामी लग्नेश शुक्र मार्गी हो जाएंगे, लोगों के स्वास्थ्य और जीवन में कुछ नए बदलाव और सकरात्मक सुधार देखने को मिल सकते हैं. 30 जून को धनु राशि में बृहस्पति की चाल के बाद इसमें कुछ और भी सकारात्मक बदलाव मिलने की उम्मीद है. दूसरा घर राजकोष के लिए जाना जाता है. इसलिए, इस दौरान शेयर बाज़ार में अस्थिरता देखी जा सकती है. सरकार अर्थव्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए वित्तीय संस्थानों को धन या कर नियमों में राहत दे सकती है. मिथुन राशि और राहु संचार प्रणाली से संबंधित हैं, ऐसे में इन क्षेत्रों से कुछ नई सफलताएं देखने को मिल सकती हैं. बुध और चंद्रमा दोनों नए विक्रम संवत के राजा और मंत्री है. दोनों ‘राहु’ और ‘केतु’ के अशुभ अक्ष में हैं. जो इशारा करता है कि सरकार को जनता के साथ जुड़ने के लिए कड़ी मेहनत और प्रयास करने होंगे. अन्यथा इस दौरान उनकी छवि को नुकसान उठाना पड़ सकता है. मिथुन राशि पुरुष प्रधान पितृसत्तात्मक व्यवस्था को दर्शाती है. मिथुन राशि में ग्रहों का एक समूह स्थित है, जो पश्चिम दिशा का प्रतिनिधित्व करता है. उग्र ग्रह मंगल की भी इस ग्रहचाल पर पूर्ण दृष्टि रहेगी. यह इंगित करता है कि देश के पश्चिमी हिस्से जैसे राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात आदि में राजनीतिक अशांति सामने आ सकती है. चूंकि सूर्य ‘दुर्गेश’ अर्थात युद्ध का ग्रह माना गया है. यह भी अन्य ग्रहों के साथ मिथुन राशि में है. यह दर्शाता है कि भारत अमेरिका जैसे देशों के साथ सैन्य गठबंधन या समझौता कर सकता है.