Irrigation by bringing water from bucket, the couple's struggle to save paddy crop
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  • नहीं हुआ है विदर्भ का बैकलाग खत्म

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नागपुर. यह विदर्भ और यहां के किसानों का दुर्भाग्य ही है कि जबसे से महाराष्ट्र राज्य में इस अंचल का समावेश हुआ है, तभी से इसके संसाधनों का शोषण भी शुरू हुआ. आज हालत यह है कि विदर्भ के संसाधनों के दम पर पश्चिम महाराष्ट्र सम्पन्न हो गया है और विदर्भ को जानबूझकर पिछड़ा रखा गया. नागपुर करार में यह तय हुआ था कि विदर्भ को सरकार की तिजोरी से 23 फीसदी हक हर बजट में मिला करेगा, लेकिन दशकों से इस करार का उल्लंघन ही होता रहा है.

आज विदर्भ के किसानों की आय बढ़ाकर उन्हें समृद्ध बनाने के प्रयासों का दावा केन्द्र व राज्य सरकारें कर रही हैं, लेकिन हकीकत यह है कि जब तक किसानों को सिंचाई के लिए भरपूर पानी उपलब्ध नहीं कराया जाता तब तक ऐसा संभव नहीं है. विदर्भ के सिंचाई प्रकल्पों को पूरा करने के लिए 60,000 करोड़ रुपयों की जरूरत है, लेकिन अभी भी सरकार इस ओर ध्यान नहीं दे रही है. बताते चलें कि विदर्भ के 131 सिंचाई प्रकल्प मंजूर हुए थे. इनमें से कुछ काम हुए लेकिन फिर निधि के अभाव में सारे के सारे लटके पड़े हुए हैं. आज इन प्रकल्पों को पूरा करने के लिए 60,000 करोड़ रुपयों की जरूरत है.

5,000 करोड़ चाहिए गोसीखुर्द को

एक गोसीखुर्द प्रकल्प ही पूरा कर दिया गया तो उससे ही 2.50 लाख हेक्टेयर खेत सिंचित हो जाएंगे. तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने जब इस प्रकल्प का भूमिपूजन किया था तब इसकी लागत महज 485 करोड़ रुपये थी. आज 4 दशकों में यह पूरा नहीं किया जा सका है और लागत बढ़कर 18,000 करोड़ रुपयों से भी अधिक हो गई है. इस प्रकल्प में पानी तो भरपूर स्टाक कर लिया गया है, लेकिन खेतों तक पहुंचाने के लिए नहरों का निर्माण ही नहीं हो पाया.

अब महाविकास आघाड़ी सरकार में सीएम बने उद्धव ठाकरे हाल ही इस प्रकल्प का जायजा लेकर कह गए हैं कि 3 वर्षों में इसे पूरा कर लिया जाएगा. सवाल यह उठ रहा है कि इसे पूरा करने के लिए लगने वाले 5,000 करोड़ सरकार कहां देगी, जबकि वह खुद तिजोरी खाली होने का रोना रोती है. इस प्रकल्प की हर वर्ष लागत 10 फीसदी बढ़ती ही जा रही है. वर्तमान में प्रकल्प को पूरा करने के लिए 5,000  करोड़ रुपये चाहिए और राज्य सरकार की तिजोरी खाली है. केन्द्र एक साथ इतनी निधि देगी नहीं, मतलब प्रकल्प और लंबा लटकेगा, यह तय है.

मनमानी पर नहीं लगाई रोक

ऐसे आरोप लगते रहे हैं कि विदर्भ को लूटने, उसके साथ दशकों से भेदभाव व अत्याचार करने वाले पश्चिम महाराष्ट्रवादी नेताओं की करतूतों का विरोध विदर्भ के तत्कालीन व वजनदार नेताओं ने भी नहीं किया. जिसने आवाज उठाई उसे पद देकर शांत कर दिया गया. राज्यपाल को विकास महामंडलों पर नियंत्रण का अधिकार होता है लेकिन किसी तत्कालीन राज्यपाल ने भी पश्चिम महाराष्ट्रवादी सरकारों की मनमानी पर नियंत्रण नहीं लगाया. आज उसी का परिणाम है कि विदर्भ की हालत पिछड़ी हुई है.

सिंचाई के अभाव और प्राकृतिक आपदाओं के चलते आर्थिक रूप से टूट चुके करीब 40,000 विदर्भ के किसान अब तक आत्महत्या तक कर चुके हैं, लेकिन इन सरकारों का दिल नहीं पसीजा. विदर्भ की खनिज सम्पदा, वनोपज, बिजली का उपयोग पश्चिम महाराष्ट्र में अधिक हो रहा है और विदर्भ के किसानों को 8 घंटे भी बिजली नहीं दी जा रही है.