Nagpur High Court
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नागपुर. निचली अदालत द्वारा कुकर्म और मारपीट के मामले में दोषी करार देते हुए भले ही सजा सुनाई हो, किंतु इसे चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता बिनाय दत्ता की ओर से हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया. याचिका पर लंबी बहस के बाद न्यायाधीश पुष्पा गनेडीवाला ने निचली अदालत के आदेश को रद्द कर मामले से निर्दोष बरी करने के आदेश जारी किए.

याचिकाकर्ता की ओर से अधि. रमेश रावलानी, अधि. अतुल रावलानी और अधि. निखलेश अधिकारी ने पैरवी की. अभियोजन पक्ष के अनुसार 21 वर्षीय महिला ने 9 फरवरी 2014 में याचिकाकर्ता के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी. जिसमें उसने कहा कि 2 फरवरी को उसकी ननद का देवर परीक्षा खत्म होने के बाद घर में रहने आया था. दूसरे दिन जब उसका पति बाहर गया था. उसी शाम अकेले पाकर जबरन कुकर्म करने का प्रयास किया.

वारदात के दौरान ही पहुंचा पति

अभियोजन पक्ष के अनुसार किसी तरह महिला याचिकाकर्ता से बचकर बाहर भागने लगी थी कि अचानक उसका पति घर पहुंच गया, पीड़िता ने घटना की जानकारी पति को दी. जिसके बाद पुलिस में पहले तो 354, 323 और 506 के तहत मामला दर्ज किया गया. किंतु 10 फरवरी 2014 को दिए गए बयान में पीड़िता ने उसके साथ बलात्कार होने का आरोप लगाया. जिसके बाद पुलिस ने धारा 376 के तहत भी मामला दर्ज किया. निचली अदालत में चली सुनवाई के बाद 14 दिसंबर 2015 को अदालत ने याचिकाकर्ता को 7 वर्ष और 3 माह की सजा सुना दी. जिसे हाई कोर्ट में चुनौती देते हुए याचिका दायर की गई है.

केवल बयान के आधार पर सजा

सुनवाई के दौरान बचाव पक्ष की ओर से पैरवी कर रहे अधि. रावलानी ने कहा कि निचली अदालत में केवल पीड़िता के बयान के आधार पर याचिकाकर्ता को सजा सुनाई गई है. 3 फरवरी को याचिकाकर्ता पर केवल छेड़खानी का आरोप लगाया गया था. जबकि 6 दिन बाद रिपोर्ट दर्ज कराई गई थी. घटना के बाद उस रात को भी याचिकाकर्ता पीड़ित के घर में ही रुका था. दूसरे दिन पीड़िता के पति ने उसे गाड़ी पर दूसरे गांव छोड़कर दिया. पीड़िता ने रिपोर्ट दर्ज करने में 6 दिन का विलंब क्यों लगाया, इसका कोई खुलासा नहीं किया गया. इसके बाद में दिए गए बयान में कुकर्म का आरोप लगाया गया. गवाहों में कई तरह की विसंगतियां पाई जाने पर अदालत ने राहत प्रदान की.