नागपुर. जिला परिषद में सत्तापक्ष में भी लगता है अंदरूनी गड़बड़ चल रही है. विषय समितियों की बैठकों में भी सत्तापक्ष के सदस्यों की सुनवाई नहीं हो रही है. इससे सदस्यों में नाराजी देखी जा रही है. ताजा मामला स्थायी समिति की बैठक का है जिसमें सत्तापक्ष के सदस्यों द्वारा कुछ विषयों पर लिये गए आक्षेप की अनदेखी की गई और उसे प्रोसिडिंग में शामिल ही नहीं किया गया.
महिला व बाल कल्याण विभाग की ओर से पिछली स्थायी समिति की बैठक में खनिज निधि से आंगनवाड़ियों को डिजिटल व आदर्श बनाने के लिए टीवी सहित सॉफ्टवेयर की खरीदी का प्रस्ताव मंजूरी के लिए रखा गया था. सत्तापक्ष के ही सदस्यों ने इस पर यह कहकर आक्षेप लिया था कि आंगनवाड़ी में बच्चे ही नहीं आते इसलिए फिलहाल इस खर्च की जरूरत नहीं है. लेकिन अगली सभा की प्रोसिडिंग में सदस्यों के आक्षेप का उल्लेख ही नहीं किया गया. इससे सदस्यों में नाराजी देखी जा रही है. कुछ ने तो आरोप लगाया कि पदाधिकारी अपनी मनमर्जी कर रहे हैं.
अधिकारियों की मनमानी
दरअसल, खनिज निधि के तहत आंगनवाड़ी को आदर्श व डिजिटल बनाने के लिए 46 लाख रुपये निधि मिली है. इस निधि से डिजिटल टीवी व सॉफ्टवेयर की खरीदी होनी है. एक ठेकेदार को इसका ठेका भी दे दिया गया है. स्थायी समिति की बैठक में इसका विरोध किया गया क्योंकि जिस आंगनवाड़ी के लिए यह खर्च किया जाना है वहां फिलहाल बच्चे ही नहीं आते हैं. ऐसे में डिजिटलीकरण में वर्तमान में खर्च करना फजूल होगा. लेकिन सदस्यों की सुनी नहीं गई और न ही प्रोसिडिंग में उनका आक्षेप लिखा गया.
सदस्यों का आरोप है कि प्रोसिडिंग लिखने की जिम्मेदारी सामान्य प्रशासन विभाग की है और सभा में सदस्यों के सवालों, आक्षेप और उनका पदाधिकारी व अधिकारियों के जवाब का उल्लेख होना चाहिए. लेकिन ऐसा नहीं किया जा रहा है. आमसभा, स्थायी समिति की सभा और विषय समितियों की सभा की प्रोसिडिंग लिखने में कोताही बरती जा रही है. यह या तो पदाधिकारियों के इशारे पर हो रहा है या मनमानी चल रही है.
प्रोसिडिंग बदली जा सकती
इधर, इस संदर्भ में सीईओ योगेश कुंभेजकर ने कहा कि पिछली बैठक की प्रोसिडिंग अगली बैठक में कायम होना चाहिए. अगर वह कायम है तो उसमें बदल भी किया जा सकता है. अगर आक्षेप शामिल नहीं किये गए हैं तो उसे अभी भी शामिल किया जा सकता है.