फुटपाथ पर आ गई किताबों की दूकानें, व्यापारियों की बढ़ी परेशानी

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    मेट्रो स्टेशन बनने से हटाए जाने का सता रहा डर

    नागपुर. गरीबों और जरूरतमंदों को आधी कीमत में मिलने वाली किताब का बाजार अब फुटपाथ पर आ गया है. इसका कारण यह है कि जीरो माइल मेट्रो स्टेशन का काम तेजी से चल रहा है. जिस जगह सेकंड हैंड किताबों का बाजार लगता है. वहीं पर ही मेट्रो स्टेशन बनाने का काम चल रहा है. कार्य के चलते पूरी दूकानें सड़कों के फुटपाथ तक पहुंच गई हैं. जिसके कारण दूकानदारों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. वहीं काम करने वाले अधिकारी बार-बार उन्हें दूकान हटाने के लिए भी परेशान कर रहे हैं.

    व्यापारियों का कहना हैं कि हम यहां करीब 30 सालों से दूकानें लगा रहे हैं. यहां पर हम आधी कीमत में गरीब और जरूरतमंद छात्रों के लिए किताबें उपलब्ध कराई जाती हैं. लेकिन यहां पर मेट्रो स्टेशन बनाने का कारण हमें यहां से हटा दिया गया है. जिससे हमारी दूकानें फुटपाथ पर आ गई है. उन्होंने मांग की है कि हमें अपनी पुरानी जगह पर ही दूकानें लगाने दें. 

    दूर गांव के लोग आते हैं किताब खरीदने

    दूकानदारों ने बताया कि यहां हम 25 से 30 सालों से दूकान लगा रहे हैं.  मार्केट में किताबों की कीमत हजारों रुपए है. ऐसे में गरीब और कमजोर वर्ग के छात्रों को नई किताबें खरीदने में परेशानी होती हैं. ऐसे में उनके लिए यहां पर आधी कीमत पर किताबें उपलब्ध हो जाती है. यहां पर किताब लेने नागपुर समेत आस-पास के गांव के छात्र भी आते हैं. अगर यहां से दूकानें हट गईं तो छात्रों के साथ-साथ हमें भी काफी परेशानी होगी.

    चल रहा मेट्रो स्टेशन का काम

    जहां पर पुरानी किताबों की दूकानें लग रही हैं. वहीं, पर मेट्रो के रेलवे स्टेशन का काम चल रहा है. कामों में बाधा न पहुंचे इसलिए दूकानदारों को उनकी जगह से हटाया गया है. जिसकी वजह से दूकानदार पहले अंदर दूकाने लगाते थे लेकिन अब वे फुटपाथ पर दूकान लगाने के लिए मजबूर हो गए हैं. वहीं निर्माण कार्य के दौरान मेट्रो स्टेशन के अधिकारी भी बार-बार उन्हें हटने के लिए परेशान करते हैं. इस दौर में किताब विक्रेताओं में काफी डर का भी माहौल है. 

    पुरानी जगह पर दें स्थाई दूकानें

    स्थानीय दूकानदारों ने मांग है कि मेट्रो स्टेशन बनने के बाद भी किताब की दूकानें वहीं पर लगाने की अनुमति दी जाए. ताकि बाहर गांव से आने वाले छात्रों को भी परेशानी न हो. 50 प्रतिशत कम मूल्य में छात्रों को किताब उपलब्ध हो जाती है. वहीं पासआउट छात्र यहां पर अपनी किताबें बेचते भी हैं, ताकि दूसरे छात्रों को इसका लाभ मिल सकें. स्टेशन बनने के बाद भी अगर प्रशासन उन्हें यहीं पर स्थाई दूकानें दें तो वे सभी नियमों का पालन कर यहां पर छात्रों के लिए किताबें उपलब्ध कराने का काम करेंगे.