Court approves sacking of 12 Manpa employees, High Court validates Munde's decision
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    नागपुर. राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय में पीजीडीटी के प्रभारी अधिकारी की अतिरिक्त जिम्मेदारी अस्वीकार करने पर उपकुलपति ने राजनीति शास्त्र विभाग प्रमुख मोहन काशीकर को नोटिस जारी किया. नोटिस के अनुसार उनका न केवल यह पद निकाल दिया गया, बल्कि एक वर्ष तक वृद्धि पर रोक भी लगा दी गई. इसे चुनौती देते हुए काशीकर की ओर से हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई.

    याचिका पर बुधवार को सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे अधि. फिरदौस मिर्जी ने कहा कि निकट भविष्य में 2 विश्वविद्यालयों में उपकुलपति बनने के अवसर मिल सकते हैं. ऐसे में यदि विवि की ओर से एनओसी देने में आनाकानी की गई, तो वीसी बनने के अवसर प्रभावित हो सकते हैं. अत: इस संदर्भ में विवि को आदेश देने का अनुरोध किया गया.

    दोनों पक्षों की दलीलों के बाद न्यायाधीश सुनील शुक्रे और न्यायाधीश अनिल किल्लोर ने मौखिक रूप से कहा कि शैक्षणिक दृष्टि से इस तरह किसी प्रतिभावान को रोकना उचित नहीं होगा. अत: सकारात्मक रुख रखा जाना चाहिए. विवि की ओर से अधि. सुधीर पुराणिक ने पैरवी की.

    पुनर्विचार के लिए 3 दिन में करें आवेदन

    दोनों पक्षों की दलीलों के बाद अदालत ने मौखिक रूप से नरम रुख अपनाने को तो कहा, किंतु अदालत ने विवि द्वारा जारी इस आदेश पर पुनर्विचार करने के लिए 3 दिन के भीतर सक्षम अधिकारी के पास आवेदन करने के आदेश याचिकाकर्ता को दिए. आवेदन प्राप्त होने के बाद 3 सप्ताह के भीतर ही नियम कानून के अंतर्गत इसका निपटारा करने के आदेश विवि अधिकारी को दिए. यदि किसी तरह की समस्या होती है, तो जल्द सुनवाई के लिए याचिकाकर्ता को पुन: अदालत का दरवाजा खटखटाने की स्वतंत्रता भी प्रदान की.

    सुनवाई के दौरान अधि. मिर्जा ने कहा कि पीजीटीडी के प्रभारी अधिकारी का कोई पद विवि में नहीं है. जिससे इस पद के अंतर्गत कार्य और अधिकारों का कहीं उल्लेख भी नहीं है. ऐसे में जो पद ही नहीं है, उसे अस्वीकार करने को गैरवर्तन करार देना न्यायोचित नहीं है. 

    HOD पद से हटाने का अधिकार नहीं

    अधि. मिर्जा ने कहा कि नियमों के अनुसार विवि में एचओडी का पद पदोन्नति की श्रेणी का नहीं है. जिससे उसे कम करने की सजा देने का भी कोई सवाल ही नहीं है. इस पद पर नियुक्ति की समयावधि तय है. कुछ समय पहले तक 3 वर्ष का कार्यकाल होता था. जबकि नए नियमों के अनुसार इसे 5 वर्ष कर दिया गया है. जिससे इस पद पर से किसी भी कार्रवाई के तहत हटाने का वीसी को अधिकारी नहीं है. नियमों के विपरीत अलग-अलग 2 आरोप लगाकर कार्रवाई क्यों न की जाए, इस संदर्भ में कारण बताओ नोटिस जारी किया गया.