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  • 60 प्रश गंभीर होने पर हो रहे भर्ती
  • 80 प्रश मरीजों को ऑक्सीजन की जरूरत

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नागपुर. कोरोना का प्रकोप कम होने की बजाय दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है. शुरुआत में लोगों को लगा था कि होम आइसोलेशन में रहकर उपचार करने से तबीयत में सुधार हो सकता है. बिना लक्षण वाले मरीज ठीक भी हुये, लेकिन माह के पहले सप्ताह से ही नये स्ट्रेन का आतंक शुरू हो गया. अस्पताल में भर्ती होने की झंझट से लोगों ने गंभीर बीमारियों से ग्रस्त होने के बाद होम आइसोलेशन को प्राथमिकता दी. लेकिन जब मामला बिगड़ने लगा और परिवार के बाकी सदस्य भी एक के बाद पॉजिटिव आने लगे तो मरीजों को अस्पतालों में भर्ती किया जाने लगा. इनदिनों जितनी भी मौत हो रही है, उनमें अस्पताल में भर्ती और मौत के बीच अधिकतम सप्ताहभर का समय है. डॉक्टरों का अनुमान है कि गंभीर मरीजों के होम आइसोलेशन में रहने की वजह से ही मृत्यु दर बढ़ रही है.

60 फीसदी मरीज गंभीर अवस्था में आ रहे हैं. कोरोना का फ्लो अप्रैल के तीसरे सप्ताह तक बना रहेगा. इसके बाद मरीजों की संख्या कम होने का अनुमान व्यक्त किया जा रहा है. मनपा द्वारा पॉजिटिव मरीजों को होम आइसोलेशन में रहने की छूट तो दी गई, लेकिन मरीजों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया. जबकि बिना लक्षण वालों के लिए होम आइसोलेशन भी छूट दी. बिना लक्षण वाले मरीज नियमित रूप से औषधोपचार करते रहे और सख्ती का पालन करते रहे तो उनकी हालत में सुधार भी आया. लेकिन कई गंभीर बीमारियों से ग्रसित मरीज भी होम आइसोलेशन में रहे. जबकि मनपा द्वारा शासकीय स्तर पर पांचपावली कोविड केयर सेंटर शुरू था. इतना नहीं बाद में वीएनआईटी और एमएलए होस्टल को भी सीसीसी बनाया गया.

प्रशासनिक लापरवाही भी जिम्मेदारी

डॉक्टरों का कहना है कि जिन मरीजों की मौत हो रही है वे अस्पताल में गंभीर अवस्था में आए हैं. उन्हें ऑक्सीजन की ज्यादा जरूरत पड़ रही हैं. वहीं, अस्पताल में भर्ती होने से लेकर मरने तक के बीच अधिकतम सप्ताहभर का ही अंतर है. इसका साफ मतलब है कि मरीज पहले से ही गंभीर होकर अस्पतालों में भर्ती होने आ रहे हैं. इनमें तो कई मरीज ऐसे है, जिन्हें लंबे समय से हदय, दमा, कैंसर, टीबी, किडनी जैसी गंभीर बीमारी भी है. मार्च के शुरुआत में मेयो और मेडिकल में कोरोना मरीजों की संख्या थी. तब अनेक बेड खाली थे. लेकिन गंभीर मरीज नहीं आ रहे थे. इसका मतलब साफ है कि लोगों ने बीमारी को लेकर गंभीरता नहीं बरती. घर पर रहकर इलाज कराते रहे.

डॉक्टर यह भी मानते हैं कि जिन डॉक्टरों के पास इलाज चल रहा था,उन डॉक्टरों की जिम्मेदारी थी कि मरीजों को अस्पतालों में भर्ती होने की सलाह दे. यदि इसके बाद भी गंभीर मरीज भर्ती नहीं हो रहे थे, तो इसकी जानकारी मनपा प्रशासन को दी जानी चाहिए थी. यदि सभी स्तर पर बरती गई लापरवाही का ही नतीजा है कि एक वर्ष बाद भी सिटी की हालत जस की तस ही बनी हुई है. जानकार इसे कुछ हद तक प्रशासनिक लापरवाही भी मान रहे हैं. होम आइसोलेशन की छूट देने के बाद मनपा प्रशासन की ओर से मरीजों के बारे में समय-समय पर जानकारी हासिल नहीं की गई. मनपा प्रशासन केवल कागजों पर पॉजिटिव मरीजों की हिस्ट्री लिखता रहा.