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  • उद्योगों ने फिर मांगा विकल्प

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नागपुर. लॉकडाउन में केवल आवश्यक वस्तुओं के प्रोडक्शन को छोड़ शेष सभी यूनिट्स बंद रहेंगी. पिछले वर्ष बंद यूनिट्स को अपनी डिमांड को ऑनलाइन कम करने का विकल्प एमईआरसी की ओर से दिया गया था. इससे उद्योग फिक्स्ड चार्ज के तौर पर काफी रकम बचा पाए. इस बार भी यह विकल्प देने की मांग उद्योग संगठनों की ओर से की गई है. जलगांव के इडस्ट्रीज एसोसिएशन की ओर से इस बारे में एमईआरसी में पिटिशन भी दायर की गई है. विदर्भ इंडस्ट्रीज एसोसिएशन ने भी इस बारे में एमईआरसी को पत्र लिखा है. ग्राहक द्वारा इस्तेमाल की गई बिजली के आधार पर अलग-अलग श्रेणी के ग्राहकों पर अलग-अलग दरों से फिक्स्ड चार्ज वसूला जाता है.

पिछले वर्ष लॉकडाउन के दौरान एमईआरसी की ओर से उद्योगों को अपनी बिजली की डिमांड को ऑनलाइन कम करने की सुविधा दी गई थी. डिमांड कम होने से फिक्स्ड चार्ज भी कम हो गया. 31 मार्च 2021 तक यह सुविधा मिलती रही, बाद भी इसे बंद कर दिया गया. राज्य सरकार द्वारा अब तक लगाए गए लॉकडाउन में उद्योगों को शुरू रखने की अनुमति दी गई थी लेकिन बुधवार रात से लागू नई बंदिशों में जीवनावश्यक वस्तुओं के उत्पादन को छोड़ शेष औद्योगिक गतिविधियों को बंद रखने के निर्देश दिए गए.

हालांकि कुछ शर्तों के साथ बाकी उद्योगों को भी प्रोडक्शन शुरू रखने की अनुमति है. वीआईए एनर्जी विंग के आर.बी. गोयनका ने बताया कि डिमांड पर फिक्स्ड चार्ज लगते हैं. यूनिट्स बंद होने से डिमांड अपने आप कम हो जाएगी. इसे देखते हुए ऑनलाइन एप्लीकेशन कर डिमांड कर करने की सुविधा फिर देने की हमने मांग की है. बड़े पैमाने पर बिजली की खपत करने वाली यूनिट्स को इससे काफी राहत मिलेगी. मसलन यदि कोई यूनिट 10 मेगावाट बिजली की खपत करता है तो फिक्स्ड चार्ज के 40 लाख रुपए तक वह बचा सकेगी.

उद्योगों से भी मजदूरों का पलायन शुरू

इस बीच उद्योगों से भी मजदूरों का बड़े पैमाने पर पलायन शुरू हो गया है. पहले कयास लगाए जा रहे थे कि इडस्ट्रीज को इससे राहत दी जा सकती है. पर कई यूनिट्स के बंद होने के बाद यहां के भी मजदूरों का पलायन शुरू हो चुका है. मजदूर पैदल, ऑटो या टैक्सियों में अपने घरों को लौटने लगे हैं. इससे पिछले वर्ष मार्च में लगे देशव्यापी लॉकडाउन के बाद उपजी स्थिति जैसे हालात पैदा हो गए है.

वीआईए अध्यक्ष सुरेश राठी ने कहा कि हमने अपने सदस्यों से कहा है कि श्रमिकों की रहने, खाने की व्यवस्था कर उन्हें 15 दिन रोकने की कोशिश करें. लेकिन यहां संक्रमण के बढ़ते मामलों और आगे रोजी-रोटी छिनने डर से काफी लोग पलायन करने में ही भलाई समझ रहे हैं. उनकी सोच है कि अपने घरों में जाकर वे ज्यादा सुरक्षित रहेंगे.