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नागपुर. मनपा में सामान्य प्रशासन विभाग के माध्यम से कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए जाते है. विभाग की ओर से मनपा सम्पत्तियों की सुरक्षा के लिए एजेन्सी की नियुक्ति की गई. किंतु आलम यह है कि एजेन्सी की नियुक्ति फर्जी दस्तावेजों के आधार पर की गई है. जिसका सदन में खुलासा करने के बाद तत्कालीन महापौर नंदा जिचकार द्वारा मामले की जांच करने तथा एफआईआर करने के निर्देश दिए थे.

इसी तरह अन्य मामलों में भी जीएडी (सामान्य प्रशासन विभाग) की कई कारगुजारी उजागर हुई है. किंतु इस तमाम आर्थिक अपराध गिरोह के सरगना सहायक आयुक्त महेश धामेचा होने से मामला ठंडे बस्ते में होने का आरोप मनपा के विधि एवं सामान्य प्रशासन विभाग समिति सभापति धर्मपाल मेश्राम ने पत्र परिषद में लगाया. उन्होंने कहा कि लंबे समय से इस विभाग की ओर से किसी का भी ध्यान नहीं रहा है. यहीं कारण है कि हमेशा आर्थिक धांधली चलती रही. किंतु किसी भी पदाधिकारी या सदस्य द्वारा संज्ञान नहीं लिया गया.

7.50 करोड़ रु. का होता है भुगतान

उन्होंने कहा कि वर्ष 2019 तक इस विभाग पर किसी तरह का नियंत्रण ही नहीं था. जिससे विभाग ने फर्जी दस्तावेज होने के बावजूद किशोर एजेन्सी और युनिटी सिक्युरीटी एजेन्सी को इसका ठेका आवंटित कर दिया. विशेषत: झेराक्स के दस्तावेजों पर टेंडर का आवंटन आश्चर्यजनक है. हालांकि तत्कालीन महापौर द्वारा आयुक्त को 15 दिनों के भीतर जांच कर एफआईआर करने के आदेश तो दिए गए थे, किंतु इसका पालन तो दूर, उलटे दोनों एजेन्सियों को पुन: ठेका आवंटित कर दिया गया.

मनपा में सुरक्षा एजेन्सियों को 7.50 करोड़ का भुगतान किया जाता है. जिससे इनके पीएफ की जानकारी मांगी गई थी. लेकिन विभाग ने इसे निजी जानकारी करार देकर जानकारी देने से इंकार कर दिया. जबकि यदि मनपा भुगतान कर रही है, तो नियमों के अनुसार यह निजी जानकारी नहीं है. 

स्टेशनरी पर 50 लाख का खर्च

धामेचा और अन्य कर्मचारी शिवणकर पर गंभीर आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि प्रत्येक सुरक्षा कर्मचारी के लिए मनपा 21,124 रु. प्रति माह का भुगतान करती है. किंतु उन्हें एजेन्सी द्वारा केवल 7 से 8 हजार का ही भुगतान होता है. इसके अलावा जीएडी द्वारा प्रति वर्ष 50 लाख रु. की स्टेशनरी खरीदी जाती है. इस संदर्भ में पूछे जाने पर विभाग ने 215 तरह की सामग्री खरीदी होने की जानकारी दी.

जबकि विस्तृत जानकारी नहीं है. नियमों को ताक पर रखकर किसी को पदोन्नति दी जाती है. जबकि अन्य को पदोन्नति नकारी जाती है. भंगार घोटाले में गंभीर आरोप लगने के बाद जांच पूरी नहीं होने के बाद भी राजेश भूतकर नामक अधिकारी को पदोन्नति प्रदान कर दी. केवल प्रशासकीय स्तर पर नोटशिट के आधार पर इसे अंजाम देने का गंभीर आरोप भी उन्होंने लगाया.