Nagpur High Court
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    नागपुर. पत्नी को तलाक और मुआवजे के लिए पारिवारिक न्यायालय के साथ ही हाई कोर्ट में दायर की गई याचिका पर लंबी सुनवाई के बाद न्यायाधीश अतुल चांदुरकर और नितिन सूर्यवंशी ने पूर्व पार्षद राजेश माटे को झटका देते हुए इसे खारिज कर दिया. इससे अब पूर्व पार्षद पत्नी को तलाक तो नहीं दे पाएंगे, उलटे मुआवजे की राशि भी बढ़ाकर देनी होगी. पूर्व पार्षद राजेश माटे का मानना था कि 19 दिसंबर 2010 को उनका विवाह हुआ था. किंतु एक वर्ष बाद ही 1 सितंबर 2011 से उनकी पत्नी ससुराल छोड़कर मायके चली गई थी. यहां तक कि आत्महत्या कर उन्हें जेल भेजने की धमकी पत्नी द्वारा दी गई. पूर्व पार्षद के सभी आरोपों को झुठलाते हुए पत्नी ने उनके साथ रहने की तैयारी कोर्ट में दिखाई. इसके बाद अदालत ने उक्त आदेश जारी किए.

    1,500 रु. में महिला का जीवनयापन संभव नहीं

    पत्नी को मुआवजे के संदर्भ में पूर्व पार्षद का मानना था कि वह 2 बार पार्षद तो रहा है, लेकिन वर्तमान में बिल्डिंग मटेरियल सप्लायर के पास बतौर कर्मचारी काम कर रहा है. पत्नी की ओर से इस खुलासे पर आपत्ति जताते हुए कहा गया कि उनके पति के पास केरोसिन का व्यापार है, जिससे उनकी आमदनी नियमित है. प्रतिमाह 75,000 रु. के करीब उनकी आय है. इससे कम से कम 30,000 रु. का मुआवजा दिया जाना चाहिए. पारिवारिक न्यायालय में इस पर हुई सुनवाई में 1,500 रु. का मुआवजा निर्धारित किया गया था जिसे हाई कोर्ट में भी चुनौती दी गई. हाई कोर्ट में हुई सुनवाई के दौरान अदालत का मानना था कि 1,500 रु. में जीवनयापन करना महिला के लिए संभव नहीं है. अत: प्रतिमाह कम से कम 5,000 रु. का मुआवजा देने के आदेश भी अदालत ने दिए. 

    8 सप्ताह में करना होगा भुगतान

    दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद अदालत का मानना था कि ऐसे मामलों को लेकर हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया है, जिसके अनुसार अब न्यायालय के आदेश के दिन से नहीं बल्कि जिस दिन मुआवजे के लिए अर्जी दायर की जाए, उसी दिन से मुआवजा देना होता है. इस संदर्भ में पारिवारिक न्यायालय की ओर से सुको के आदेश को नजरअंदाज कर दिया है. अत: अर्जी दायर किए जाने के दिन 13 अप्रैल 2012 से 5,000 रु. प्रतिमाह के अनुसार 8 सप्ताह के भीतर मुआवजे का भुगतान करने के आदेश भी दिए. याचिकाकर्ता पत्नी की ओर से अधि. योगेश मंडपे और पूर्व पार्षद की ओर से अधि. सी.जी. बारापात्रे ने पैरवी की.