लॉकडाउन की हवा में उड़े सैकड़ों गृह उद्योग, 1,000 से अधिक उद्योग हैं पूरे विदर्भ में

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    • मेहंदी, पापड़, अचार, शैम्पू सहित अन्य चीजें बनाने वालों पर आर्थिक संकट
    • 300 से अधिक चलते थे गृह उद्योग नागपुर
    • 75% से अधिक सुविधा नहीं होने से हो चुके हैं बंद
    • 500 से अधिक बुनकर के पास भी काम नहीं

    नागपुर. लॉकडाउन की हवा में अच्छे-अच्छे उद्योगों की जड़ें हिल गईं. इसमें जहां बड़े उद्योग एक बार फिर से उठाने की कोशिश में लगे हैं, वहीं लोगों के रोजगार के जरिया बने कई लघु उद्योगों का तो वजूद ही खत्म हो गया है. खादी ग्रामोद्योग भवन से जुड़े छोटे-छोटे गृह उद्योग वाले खाली बैठने के लिए मजबूर हैं.

    आज सावजी, चंद्रपुर, कामठी, अमरावती, गड़चिरोली सहित अन्य स्थानों पर स्थित खादी ग्रामोद्योग से कई छोटे-छोटे गृह उद्योजक जुड़े हुए हैं लेकिन अभी भी बहुत से जगह खादी ग्रामोद्योग के शटर नहीं खुले हैं. इसके चलते खादी ग्रामोद्योग से प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े लोगों को बेरोजगारी का सामना करना पड़ रहा है.

    इन खादी ग्रामोद्योग से जुड़कर महिलाएं अचार, पापड़, मेहंदी, अगरबत्ती, मसाला, शैम्पू सहित विविध प्रकार के उत्पाद तैयार कर अपना रोजगार चलाती हैं. लेकिन पिछले डेढ़ वर्ष से इन गृह उद्योगों पर कोरोना का ग्रहण लग गया है. विदर्भभर में देखा जाये, तो गृहोपयोगी चीजें बनाने वाले 1,000 से अधिक लघु उद्योग जुड़े हुए हैं. इसमें नागपुर में 300 से अधिक उद्योग चलते थे, जिसमें आज 75 प्रश से अधिक बंद पड़ चुके हैं.

    गरीबों का सहारा ही बना बेसहारा

    बर्डी स्थित खादी ग्रामोद्योग भवन के मैनेजर बबनराव पडोलिया बताते हैं कि खादी ग्रामोद्योग से कई छोटे-छोटे लोगों को काम मिला था. यह गरीबों के रोजगार का जरिया भी था. इसके मार्फत लोग पापड़, अचार, मसाला सहित बनाकर एक छोटे उद्योजक के रूप में काम कर रहे थे लेकिन लॉकडाउन में बंदिशों के चलते छोटे-छोटे उद्योग पूरी तरह से बंद हो गये.

    वहीं केंद्र सरकार की किसी तरह की सहायता नहीं मिलने से छोटे-छोटे घरेलू सामान बनाने वाली महिलाओं को सहारा देने वाले खुद खादी ग्रामोद्योग भवन के शटर ऊपर नहीं हो सके हैं. लघु व सूक्ष्म उद्योग के रूप में यह खादी ग्रामोद्योग ‘नो लॉस नो प्रॉफिट’ के ऊपर चलता है. यह गरीब लोगों के रोजगार माध्यम है. केंद्र सरकार में बैठे मंत्री इस पर ध्यान दें, तो इस खादी ग्रामोद्योग को संजीवनी मिले और लोग फिर से अपना काम शुरू कर सकें.

    नहीं मिला कच्चा माल

    वे बताते हैं कि गृह उद्योग की तरह कच्चा माल नहीं मिलने से 500 से अधिक बुनकरों को आर्थिक संकट से जुझना पड़ रहा है. धागा और पोली नहीं होने से कपड़ा नहीं बन पा रहा है. इसके लिए खादी ग्रामोद्योग आयोग को ऑर्डर भी दिया था लेकिन अब तक माल नहीं पहुंचा. लॉकडाउन में दूकानें बंद होने से काफी नुकसान हुआ है. पुराना माल पूरा डम्प हो गया है.

    जिस तरह रामदेव बाबा के लघु उद्योगों को लॉकडाउन में छूट दी गई थी उसी तरह की छूट हम लोगों को मिलनी चाहिए. इससे पूरा माल तो निकल गया होता. अभी नया माल बनाने के लिए धागा और पोली जैसा कच्चा माल ही नहीं है तो नया माल कैसे तैयार होगा. केंद्र सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए. सरकार ध्यान देगी, तो बंद लूम्स को संजीवनी मिलेगी और आर्थिक संकट से जूझ रहे बुनकरों को काम मिलेगा.