Gosikhurd Dam
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  • केंद्र सरकार से हाई कोर्ट ने मांगा जवाब

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नागपुर. सिंचाई परियोजनाओं में निर्मित होनेवाले बांध के रखरखाव तथा बड़ी सिंचाई परियोजनाओं में निचले स्तर पर के गांवों की सुरक्षा को नजरअंदाज किए जाने से हो रही परेशानी को लेकर मानिक चौधरी एवं अन्य की ओर से हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई. याचिका पर सुनवाई के बाद न्यायाधीश सुनील शुक्रे और न्यायाधीश अविनाश घारोटे ने जहां केंद्रीय जल स्रोत एवं नदी विकास मंत्रालय के सचिव को नोटिस जारी किया, वहीं राज्य सरकार के सिंचाई विभाग को भी नोटिस जारी कर 6 सप्ताह के भीतर जवाब दायर करने के आदेश दिए. याचिकाकर्ता की ओर से अधि.ए. देशपांडे, केंद्र सरकार की ओर से अधि. उल्हास औरंगाबादकर और राज्य सरकार की ओर से अधि. निवेदिता मेहता ने पैरवी की.

केंद्र सरकार ने जारी की है एसओपी

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे अधि. देशपांडे ने कहा कि विभागों की ओर से निर्मित किए जानेवाले जलस्रोतों के रखरखाव के लिए केंद्र सरकार की ओर से स्टैन्डर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर जारी की गई है. जिसमें विस्तृत रूप से जानकारी देकर दिशा-निर्देश दिए गए हैं. यहां तक कि किसी समय बांधों से पानी छोड़ने जाने के बाद आनेवाली बाढ़ की स्थिति से कैसे निपटा जाए, इसे लेकर भी पुख्ता जानकारी दी गई है. किंतु इसे विभाग के अधिकारियों द्वारा गंभीरता से नहीं लिया जाता है. यहीं कारण है कि बांध के निचले स्तर पर रहनेवाले गांववासियों को हर समय त्रासदी झेलनी पड़ती है. इस समस्या को लेकर संबंधित विभागों को कई बार ज्ञापन दिया गया. किंतु अधिकारियों ने इस ओर ध्यान ही नहीं दिया है.

जानमाल का हो रहा नुकसान

सुनवाई के दौरान अदालत का ध्यानाकर्षित करते हुए बताया गया कि गोसीखुर्द इंदिरा सागर डैम के निचले हिस्से में रहनेवाले लगभग 1 लाख लोग इस समस्या से जूझ रहे हैं. यहां तक कि बाढ़ के कारण इन लोगों को न केवल अचल सम्पत्ति का नुकसान उठाना पड़ता है, बल्कि खाद्य सामग्री से भी हाथ धोना पड़ता है. अदालत को बताया गया कि कई बार लोगों को जान से भी हाथ धोना पड़ा है. एसओपी का पालन नहीं किए जाने तथा जलस्रोत विभाग के अधीक्षक अभियंता की ओर से भी 28 अगस्त 2020 को जारी सुझावों को भी विभाग के मुख्य अभियंता की ओर से नजरअंदाज किया गया. जिसे गंभीरता से लेते हुए अदालत ने उक्त आदेश जारी किए.