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  • टाकलीकर और सुशिर अधिसंख्य पद पर डाला

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नागपुर. जिला परिषद में जलापूर्ति विभाग में कार्यकारी अभियंता पद पर पदस्थ वी.के. टाकलीकर और महाराष्ट्र जलापूर्ति व जलनि:सारण मंडल नागपुर में अधीक्षक अभियंता पद पर कार्यरत सतीशचंद्र श्रावण सुशिर का ‘हलबा’ अनुसूचित जमाति के प्रमाण पत्र अवैध ठहरा दिये जाने के बाद महाराष्ट्र जीवन प्राधिकरण ने दोनों अधिकारियों को इसी वर्ष नवंबर महीने तक अधिसंख्य पद पर डाल दिया है.

विभाग की मुख्य प्रशासकीय अधिकारी दीपाली देशपांडे-सावडेकर ने 6 अक्टूबर को दोनों अधिकारियों को नवंबर 2020 तक अधिसंख्य पद पर बने रहने का आदेश जारी किया है. जिसके चलते उन्हें वेतनवृद्धि आदि नहीं मिलेगी. दोनों ही अधिकारियों का हलबा प्रमाण पत्र अनुसूचित जमाति प्रमाण पत्र जांच समिति ने अवैध ठहरा दिया था और उसके बाद दोनों ने ‘कोष्टि’ जो विशेष मागास प्रवर्ग में आता है, का जाति वैधता प्रमाण पत्र सादर किया था.

आरक्षित पद पर हुई थी नियुक्ति
टाकलीकर की विभाग में नियुक्ति वर्ष 1989 में हुई थी और जनवरी 1990 में अभियंता श्रेणी-2 में अनुसूचित जमाति प्रवर्ग के जाति प्रमाण पत्र के आधार पर आरक्षित जगह पर पदस्थापना दी गई थी. वहीं सुशिर को दिसंबर 1989 में नियुक्त किया गया था. टाकलीकर का अजा प्रमाण पत्र जुलाई 2012 में अवैध साबित हुआ और सुशिर का जुलाई 2004 में अवैध साबित हुआ था. उसके बाद दोनों ने कोष्टी विशेष पिछड़ा प्रवर्ग का प्रमाण पत्र सादर किया था. बताते चलें कि जिला परिषद में पदस्थ टाकलीकर एक ठेकेदार से 2 लाख रुपये की रिश्वत लेने के आरोप में निलंबित है.

सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को लिया आधार
विभाग ने दोनों मामले में सुप्रीम कोर्ट के 6 जुलाई 2017 के निर्णय को आधार बनाकर कार्रवाई की है. उक्त मामला चेयरमेन एंड मैनेजिंग डायरेक्टर, एफसीआई और अन्य विरूद्ध जगदीश बालाराम बहिरा व अन्य का था जिसमें सुको ने जाति प्रमाण पत्र अवैध साबित होने के बाद संबंधित अधिकारी-कर्मचारी को सेवा में संरक्षण नहीं दिया जा सकता, यह फैसला दिया था.

टाकलीकर और सुशिर का जाति प्रमाण पत्र अवैध साबित होने के बाद विभाग ने 31 दिसंबर 2019 को दोनों को अधिसंख्य पद पर डाल दिया और 1 जनवरी 2020 से 11 महीने तक यानि इस वर्ष नवंबर महीने तक या सेवानिवृत्ति की तारीख में से जो पहले आए, तब तक ही मासिक वेतन व भत्ते दिए जाने का आदेश दिया है.

एक अधिकारी ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर किस तरह राज्य में अमल में लाया जाए इसके तात्कालीन सरकार ने एक समिति बनाई थी. उस समिति का निर्णय आने तक सरकार ऐसे मामलों को अधिसंख्य पद पर रखने की व्यवस्था की थी क्योंकि ऐसा नहीं करने पर हजारों की नौकरी खतरे में आ गई थी.