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    नागपुर: जिला परिषद की आय बढ़ाने के लिए उसकी मालिकी की जमीन पर महिला बचत गटों के लिए शॉपिंग कॉम्प्लेक्स, तहसील मुख्यालय में कमर्शियल कॉम्प्लेक्स और किसानों के उत्पादों को बाजार दिलाने के लिए मॉल्स आदि बनाने की योजना पर वर्षों से पदाधिकारी, मंत्री, पूर्व सीएम, केन्द्रीय मंत्री सभी घोषणाएं तो करते रहे हैं लेकिन अब तक उसे साकार नहीं किया गया है.

    हजारों करोड़ की योजनाएं पूरी कर दी गईं लेकिन ग्रामीण महिलाओं और किसानों के आर्थिक विकास के लिए महिला बचत गट मॉल्स और किसान के लिए मॉल्स बनाने की घोषणा खटाई में पड़ी हुई है. कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद उपाध्यक्ष व बांधकाम समिति के सभापित मनोहर कुंभारे ने फिर एक बार जिप की जमीनों पर मॉल्स व कमर्शियल कॉम्प्लेक्स तैयार करने की पहल की.

    उन्होंने विभाग के कार्यकारी अभियंता को प्रस्ताव तैयार करने का निर्देश भी दिया था. 6 महीने से अधिक बीत गए, लेकिन विभाग के कर्णधारों ने अब तक कागजी कार्य तक शुरू नहीं किया है. ओबीसी आरक्षण रद्द किये जाने के चलते कुंभारे की सदस्यता भी रद्द हो गई इसलिए वे भी फालोअप नहीं कर पा रहे हैं. 

    साईं मंदिर के समीप किसानों के लिए कॉम्प्लेक्स

    वर्धा रोड पर साई मंदिर के समीप जिला परिषद की मालिकी की 22,000 वर्ग फीट की जमीन है. इस जमीन पर पूर्व में एक बिल्डर ने अवैध कब्जा कर लिया था. कोर्ट में मामला गया और फैसला जिप के पक्ष में आया. उसके बाद इस जमीन पर जिले के किसान गटों के लिए मॉल्स निर्माण करने की योजना बनाई. विभाग के कार्यकारी अभियंता को जगह का निरीक्षण कर प्रस्ताव तैयार करने का निर्देश दिया गया. ताकि प्रस्ताव सरकार को भेजकर निधि की मांग की जा सके.

    इस कॉम्प्लेक्स में किसान गटों को जगह देने की योजना है ताकि वे फल, सब्जियां व अन्य उत्पादों की बिक्री सिटी में कर सकें. उनके उत्पादों को सीधा ग्राहकों तक पहुंचाया जा सके और उन्हें लाभ मिले. इस जमीन को जिप की आय का स्रोत बनाने का निर्णय लिया गया लेकिन हालत यह है कि विभाग के अधिकारी ध्यान नहीं दे रहे हैं. अब बांधकाम विभाग सभापति की जिम्मेदारी भी अध्यक्ष के हाथों हैं लेकिन लगता है उनका ध्यान भी इस योजना को आगे बढ़ाने में नहीं है. 

    बड़कस चौक मॉल्स का रिवाइज प्रपोजल भी नहीं

    जिप की बड़कस चौक महल स्थित जमीन पर महिला बचत गटों के लिए मल्टीस्टोरी मॉल्स बनाने की घोषणा तो वर्षों से हो रही है. तात्कालीन उपाध्यक्ष नितिन राठी ने अपने कार्यकाल में इस पर काफी मेहनत की थी. बाद में बीओटी तत्व पर इसे साकार करने की योजना भी बनी लेकिन बात नहीं बनी. तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस ने इस मॉल्स के निर्माण के लिए 25 करोड़ रुपये देने की घोषणा की थी लेकिन वह निधि नहीं मिली. इस प्रोजेक्ट की तो पूरी डिजाइन तैयार हो गई थी.

    अब इसकी लागत 35-40 करोड़ रुपये हो गई है. जब जिप में कांग्रेस सत्तासीन हुई तो कुंभारे ने दोबारा कार्यकारी अभियंता को इसके लिए लिए रिवाइज प्रपोजल तैयार कर सरकार को भेजने का निर्देश दिया. जानकारी मिली है कि अधिकारियों ने यह प्रपोजल तक तैयार नहीं किया है. इस प्रोजेक्ट में महिला बचत गटों को जगह देने की घोषणा पर घोषणा हर नेता-मंत्री करते रहे हैं लेकिन अब तक निधि तक नहीं दिलाई गई.

    तहसील मुख्यालयों में भरपूर जमीन

    जिला परिषद की जिले की सभी तहसीलों में भरपूर जमीन है. जो जमीन तहसील मुख्यालयों में हैं उनमें जरूरत के हिसाब से कमर्शियल कॉम्प्लेक्स साकार करने की योजना कुंभारे ने बनाई थी लेकिन ओबीसी आरक्षण रद्द होने के चलते उनकी सदस्यता भी रद्द हो गई और उनका यह सपना भी अधूरा रह गया है. योजना के अनुसार जिप की मालिकी की जमीन पर सभी तहसीलों के महिला बचत गट की महिलाओं, किसान गटों को उनके गांव के समीप ही शहरी क्षेत्र में अपने उत्पाद व उपज को बेचने के लिए जगह उपलब्ध होगी.

    बीच में बिचौलिये नहीं रहेंगे तो उन्हें पूरा लाभ भी मिलेगा. इससे उनकी समृद्धि बढ़ेगी. नागपुर सिटी में तो बड़कस चौक और साई मंदिर की जमीन बेशकीमती है. बड़कस चौक वाली जमीन तो बाजार क्षेत्र में हैं. अगर यहां बचत गटों के लिए मॉल्स जल्द साकार किया गया तो सच में उन्हें आर्थिक समृद्ध करने में मदद मिलेगी लेकिन सारी योजना खटाई में नजर आ रही है. 

    करोड़ों की जमीन पर पार्किंग

    महल जैसे बाजार इलाके में जिप की करोड़ों की जमीन का सदुपयोग करने की बजाय जिला परिषद प्रशासन उस जमीन को पार्किंग के लिए ठेके पर देने का काम कर रहा है, जिससे उसे ऊंट के मुंह में जीरा की तरह कमाई हो रही है. मॉल्स साकार करने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की बजाय हर वर्ष पार्किंग का टेंडर निकालकर जमीन को ठेकेदार की कमाई का जरिया बना दिया गया है. राजनीतिक पार्टी से जुड़े व्यक्ति द्वारा ही इसका ठेका लिया जाता है.

    इस वर्ष भी जिप प्रशासन ने इस जमीन को ठेका देने के लिए 3.50 लाख रुपये की कीमत रखी थी. टेंडर 4.05 लाख रुपये में दिया गया है. जिस तरह वर्षों से अपनी करोड़ों की जमीन को 2-4 लाख रुपये वार्षिक कमाई भर के लिए उपयोग किया जा रहा है उससे तो लगता है कि सत्ता में बैठने वालों को महिला बचत गटों के लिए मॉल्स बनाने में कोई दिलचस्पी नहीं है.