- आचार संहिता खत्म, मनपा नहीं जागी
नागपुर. उपराजधानी होने के अलावा केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस की सिटी होने के बावजूद मनपा की कई योजनाओं पर एक तरह से अस्थायी रोक लगी हुई है. मनपा में भाजपा की सत्ता होने के बाद भी इस दिशा में न तो सत्तापक्ष की ओर से कोई ध्यान दिया जा रहा है और न ही प्रशासन के कानों में जूं रेंग रही है. पहले कोरोना और बाद में विधान परिषद के चुनावों को लेकर लगी आचार संहिता खत्म होने के बावजूद भी मनपा नींद से नहीं जागी है.
विकास की दृष्टि से मृतावस्था में पड़े शहर को देखते हुए अब जनता को तत्कालीन आयुक्त टी. चंद्रशेखर की याद आने लगी है. माना जा रहा है कि चंद्रशेखर के कार्यकाल में विपरीत परिस्थितियों और विरोध के बावजूद विकास की गति बरकरार रहती थी. भले ही कई योजनाओं को लेकर कड़ा विरोध रहता था, किंतु एक ओर विरोधियों से उनकी बैठकों का दौर चलता था, वहीं दूसरी ओर प्रशासन को अपना काम करने की कड़ी हिदायतें भी जारी रहती थीं.
बर्डी मेन रोड से कब हटेंगे हॉकर्स
सूत्रों के अनुसार बर्डी मेन रोड पर के हॉकर्स को लेकर भले ही हाई कोर्ट में याचिका लंबित हो, लेकिन कोर्ट के बाहर भी इस मसले का हल किया जा सकता है. आपसी तालमेल कर इसका समाधान निकाला जा सकता है. किंतु न्यायालय में मामला लंबित होने के कारण देकर इस मसले को ज्यों के त्यों ही रखा जा रहा है, जबकि हॉकर्स के कारण होनेवाली ट्रैफिक की समस्या से जनता को रूबरू होना पड़ रहा है. लोगों का मानना है कि हॉकर्स को लेकर लगभग एक वर्ष पूर्व मनपा ने टाउन वेंडिंग कमेटी का चुनाव कराया, किंतु अब तक इस कमेटी की एक बैठक तक नहीं हो पाई है जिससे शहर के हॉकर्स जोन का मसला हल नहीं हो पा रहा है. इसकी पूरी जिम्मेदारी महानगरपालिका की है.
भंडारा रोड चौड़ाईकरण का नहीं मिल रहा मुहूर्त
पुराना भंडारा रोड के चौड़ाईकरण में वित्तीय व्यवधान होने से केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के प्रयासों से इस समस्या का हल निकाला गया. वित्तीय प्रावधान करने को लेकर डेढ़ वर्ष से अधिक का समय बीत गया है. यहां तक कि चौड़ाईकरण को लेकर जिन लोगों की सम्पत्तियों के मसले थे, उन्हें भी हल करने के बाद नापजोख कर दिया गया. इसके अनुसार तोड़ू कार्रवाई शुरू कर चौड़ाईकरण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाना था. किंतु आलम यह है कि प्रशासन को इसका मुहूर्त ही नहीं मिल रहा है. कभी न्यायिक लड़ाई तो कभी आर्थिक परेशानी के धक्के खाने के बाद किसी तरह मामला पटरी पर तो लाया गया, किंतु प्रशासन और सत्तापक्ष में इच्छाशक्ति के अभाव के चलते मसला ठंडे बस्ते में ही है.
अब तो बनवा लो महाराजबाग पुल
बताया जाता है कि महाराजबाग पुल को लेकर जितनी वित्तीय मान्यता प्रदान की गई थी, उसके अनुसार ठेकेदार द्वारा खर्च किया जा चुका है. अब पुल को पूरा करने के लिए और निधि की आवश्यकता है. इसे लेकर प्रशासन द्वारा प्रस्ताव ही तैयार नहीं किया गया. नियमों के अनुसार प्रशासन की ओर से प्रस्ताव तैयार करने के बाद उसे मंजूरी के लिए स्थायी समिति के समक्ष रखना होगा जिसमें मंजूरी मिलते ही पुल का निर्माण आगे बढ़ सकेगा. एक ओर प्रशासन के पास अधूरे पुल को पूरा करने के लिए समय नहीं है, वहीं दूसरी ओर शहर के प्रति सत्तापक्ष की बेरुखी चर्चा का विषय बनी है. अब चूंकि आचार संहिता खत्म हो गई है, अत: वित्तीय मंजूरी लेकर पुल का काम किया जा सकता है.
केलीबाग रोड की कछुआ चाल
हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक चली केलीबाग रोड की न्यायिक लड़ाई के बाद किसी तरह मसला तो हल हो गया, किंतु अधिग्रहण की प्रक्रिया तथा आपत्तिकर्ताओं की शिकायतों का निपटारा करने में मनपा प्रशासन को एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ रहा है, जबकि अधिग्रहण के लिए निधि की पूर्तता भी की जा चुकी है. प्रशासकीय कामकाज और दस्तावेजी खानापूर्ति तक मनपा द्वारा नहीं हो पा रही है, जिससे केलीबाग रोड की अब तक कछुआ चाल ही दिखाई दे रही है. केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का महत्वाकांक्षी प्रकल्प होने के बाद भी इसकी यह हालत होना, सभी के लिए किसी आश्चर्य से कम नहीं है.