Nag River

  • अपने अस्तित्व की तलाश में बह रही नाग नदी
  • नाग नदी को पुनर्जीवित करने कई स्तर पर चल रही प्लानिंग

Loading

नागपुर. नागपुर की पहचान नाग नदी आज अपने अस्तित्व की तलाश में बह रही है. जिस नाग नदी को यहां के लोग गंगा नदी का दर्जा देते थे, गंगा नदी की तरह पूजा-अर्चना करते थे. उस नाग नदी को लोगों ने आज मैला कर दिया है. एक समय हुआ करता था कि नदीं के किनारे श्रद्धालु डुबकी लगाकार देव दर्शन करते थे. महाशिवरात्री के समय मेले लगते थे. इस मेले में शामिल होने के लिए दूर-दूर से हजारों श्रद्धालु नागपुर आते थे. लेकिन आज ये नदी खुद की पहचान की मोहताज हो गई है. लोगों ने अपने निज स्वार्थ के लिए इस नदी को नाले के रूप में बदल दिया है. इसे सुधारने के लिए जहां शासन-प्रशासन स्तर पर कई प्लानिंग की जा रही है, करोड़ों रुपए के प्रोजेक्ट बनाए जा रहे हैं. लेकिन इसके उलट आम आदमी इस नदी को खराब करने पर तुला हुआ है.

नागपुर की पहचान है नाग नदी

आज की नई पीढ़ी शायद इस नदी के महत्व को नहीं जानती है. नागपुर का नाम ही नाग नदी के नाम से ही पड़ा है. यह नदी नागपुर के पुराने हिस्से से गुजरती है. जो शहर के बीचों-बीच होकर वैनगंगा नदी में जाकर मिलती है. नागपुर महानगर पालिका के चिह्न पर नदी और एक नाग है. यहां 6 प्राचीन मंदिर हैं. पहले यहां दूर-दूर से आने वाले श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता था. अब यहां के मंदिर भी सूने रहते हैं. लोग अब इसे नदी के नजर से नहीं एक नाले की नजर से देखने लगे हैं.

करोड़ों रुपए से किया जाएगा इसे पुनर्जीवित 

केंद्र सरकार, राज्य सरकार और महानगर पालिका की संयुक्त भागीदारी से नाग नदी को दोबारा पुनर्जीवित करने की तैयारी की जा रही है. इस योजना पर 2117.71 करोड़ रुपए लगात की संभावाना है. इसके लिए केंद्र सरकार 60 प्रतिशत यानी 1323.51 करोड़ रुपए, राज्य सरकार 25 प्रतिशत यानी 496.38 करोड़ रुपए और मनपा 15 प्रतिशत यानी 297.82 करोड़ रुपए खर्च वहन करेगी.

जिका से 1864.3 करोड़ की सहायता 

नाग नदी को वापस उसकी सही पहचान दिलाने के लिए केंद्रीय मंत्री नितिन गड़करी द्वारा लगातार प्रयास किए जा रहे हैं. इस योजना के लिए केंद्र सरकार जापानी वित्तीय संस्था जिका से 1864.3 करोड़ रुपए वित्तीय सहायता लेगी. गंगा पुनर्जीवन प्रकल्प के लिए नियुक्त पीएमसी की तर्ज पर नाग नदी प्रकल्प के लिए पीएमसी की नियुक्ति करने की भी प्लानिंग की जा रही है. इसके लिए नीरी के अधिकारियों से भी सहयोग लेने की चर्चा है. 

गडकरी का है ड्रीम प्रोजेक्ट

नाग नदी पुनर्जीवन प्रकल्प गडकरी का ड्रीम प्रोजेक्ट है. केंद्र सरकार और जापानी वित्तीय संस्था जिका (जापान इंटरनेशनल को-ऑपरेशन एजेंसी) के बीच फरवरी 2020 में इसे लेकर चर्चा भी हुई थी. लेकिन इसके बाद किन्हीं कारणों से काम आगे नहीं बढ़ पाया है. इस कार्य को गति देने के लिए गडकरी की पहल पर जनवरी 2021 में भी बैठकें हुई. जल्द ही नदी को पुनर्जीवन प्रकल्प पर कार्य शुरू हो जाएगा.

कब्जों के साथ गंदगी बनी पहचान

नाग नदी के उद्गम से अंबाझरी तालाब तक कई जगह अतिक्रमण हो चुके हैं. मल व गंदे पानी का प्रवाह अब तेजी से बढ़ने लगा है. जिससे नदी केवल नाला बन कर रह गई है. सम्राट अशोक चौक से होते हुए जगनाड़े चौक और उसके बाद जय भीम हिरवीनगर चौक तक अगर नाग नदी की स्थिति देखें तो सच में हैरानी होती है. घरों से निकलने वाला गंदा पानी नदी में मिल रहा है. दूकानदार अपनी दूकान से निकलने वाला कचरा नदी में ही डाल रहा है. जिसे न तो कोई रोकने वाला है न कोई समझाने वाला. 

अस्थाई रूप से हो रहा कचरा डंप

मनपा इस नदी को स्वच्छ बनाने के बजाय इसे और गंदा करने पर लगी है. रेश्मबाग चौक के पास बने पुलिया पर अस्थाई कचरा डंप किया जाता है. यहां डंप होने वाला कचरा सड़क से नीचे गिरकर नदी तक जाता है. मनपा की गाड़ियां हालांकि कचरा वहां से उठा रही है, लेकिन जब तक आधे से ज्यादा कचरा ओवरफ्लो होकर नदी में जा रहा है. जिससे नदी और ज्यादा गंदी होते जा रही है.

अधिसूचना जारी होने के बाद बढ़ा प्रदूषण

नाग नदी प्रदेश की 20 अधिसूचित नदियों में शामिल है. जिसे अ (।।) श्रेणी प्रदान की गई है. इसके साथ ही इसमें प्रदूषित जल व मल निस्सरण, इसके किनारे एक तय हद तक कोई भी निर्माण कार्य करना गैरकानूनी है. इसके लिए अधिसूचना 15 जुलाई 2000 में जारी हुई थी, लेकिन इस अधिसूचना के जारी होने के बाद ही नाग नदी सबसे ज्यादा गंदी हुई है. इसके साथ ही नदी किनारे अतिक्रमण बढ़े हैं. कानून के नजर से देखा जाए तो इसे सुधारा जा सकता था. लेकिन किसी भी जिम्मेदार अधिकारियों ने इस पहचान को बचाने की जहमत नहीं उठाई. नतीजा आज नाग नदी अपनी पहचान की तलाश में मैली होकर बह रही है.