Sunil Kedar

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नागपुर. हाईकोर्ट ने सोमवार को अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की नामित अदालत को निर्देश देते हुए 152 करोड़ के सरकारी सुरक्षा (गिल्ट) घोटाले की सुनवाई रिपोर्ट मांगी है. इसे एनडीसीसीबी घोटाले के तौर पर भी जाना जाता है. करीब 18 वर्ष पूराने इस घोटाले में वर्तमान के क्रीड़ा व युवक कल्याण मंत्री सुनील केदार मुख्य अभियुक्त हैं. 18 वर्ष बाद बाहर निकले एनडीसीसीबी घोटाले के इस जिन्न से केदार की मुश्किलें बढ़ना तय माना जा रहा है.

हाईकोर्ट ने अपने निर्देश में उल्लेख किया कि जारी किए गए नए एसओपी के बाद अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट न्यायाधीश एसआर तोतला की नामित अदालत ने 19 सितंबर को गवाही दर्ज करनी शुरू की और 24 सितंबर को जिरह की गई. नवंबर 2019 में उच्च न्यायालय द्वारा 17 वर्ष की बेवजह की गई अनुचित और अनुचित देरी के बारे में दिए गए सख्त आदेश के बाद मुकदमे की सुनवाई शुरू हुई.

कोरोना ने बढ़ाई सुनवाई में देरी
न्यायमूर्ति अतुल चंदुरकर और न्यायमूर्ति एनबी सूर्यवंशी की खंडपीठ ने एक आवेदन पर सुनवाई की, जिसमें मूल याचिकाकर्ता ओमप्रकाश कामड़ी और अन्य ने दोबारा सुनवाई की मांग की थी. जिसे कोरोना महामारी के कारण रोक दिया गया था. साथ ही पशुपालन मंत्री सुनील केदार सहित उत्तरदाताओं को अपनी प्रतिक्रिया दर्ज करने की अनुमति दी.

याचिककर्ता के वकील श्रीरंग भांडारकर ने कहा कि चूंकि अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीजेएम) एसआर तोतला की अदालत को नामित न्यायालय के रूप में नामित किया गया है और अभियोजन पक्ष के अधिकांश गवाहों को हटा दिया गया है. जो सामाजिक सुरक्षा मानदंडों का उपयोग कर रहे हैं और उचित स्वच्छता सुनिश्चित कर रहे हैं. ऐसे में सुनवाई दोबारा शुरू करके पूरी भी की जा सकती है. उन्होंने दावा किया कि चूंकि यह एकल मामले के लिए नामित न्यायालय है, इसलिए इसे सभी एसओपी को सुना जा सकता है.

नवंबर 2019 में तय हुए आरोप
नवंबर 2019 में ट्रायल कोर्ट ने उक्त घोटाले में आपराधिक विश्वासघात, दुराचार, जालसाजी, आपराधिक षड्यंत्र के आरोप तय किये थे. तत्कालीन सावनेर विधायक सुनील केदान जो वर्तमान में कैबिनेट मंत्री है, उनके और अन्य 8 लोगों क खिलाफ आईपीसी की धारा 406, 409, 468, 471, 120-बी और 34 के तहत आरोप तय किए गए. वर्ष 2002 में हुए इस एनडीसीसीबी घोटाले के दौरान सुनील केदार संस्था के सभापति थे.  अन्य आरोपियों में स्टॉक ब्रोकर मुंबई के केतन सेठ, महेन्द्र अग्रवाल, श्रीप्रकाश पोद्दार, संस्था के पूर्व महाप्रबंधक केडी चौधरी के अलावा तत्कालीन चीफ अकाउंटेंट सुरेश पेशकर, सुबोध भंडारी, कनन मेवावाला, नंदकिशोर त्रिवेदी और अमित वर्मा को भी आरोपी बनाया गया.

कई गरीबों के हित दांव पर
सीआईडी ने  22 नवंबर 2002 को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के वापस आने से पहले सभी आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया था. उच्च न्यायालय ने 2019 में सुनवाई को तेज कर दिया है. हाईकोर्ट ने सीजेएम कोर्ट को प्रतिदिन सुनवाई करने और 3 महीने के भीतर इसे खत्म करने का निर्देश देते हुए 17 वर्ष की बेवजह की देरी पर गहरा रोष व्यक्त किया. हाईकोर्ट ने नाराजगी के साथ कड़ी टिप्पणी की कि न्याय प्रशासन प्रणाली में इस तरह की असमान देरी के लिए समाज में बहुत गलत संदेश गया है.

खासतौर पर तब जब करीब 150 करोड़ का सार्वजनिक राशि से जुड़ा मामला है. इस राशि से सैकड़ों असहाय पीड़ितों, बड़े पैमाने पर गरीब कृषकों और जमाकर्ताओं के हित दांव पर लगे हैं. सोमवार को हाईकोर्ट ने अपर सरकारी वकील दीपक ठाकरे को निर्देश दिये कि उक्त आदेश को नामित कोर्ट के न्यायिक अधिकारी तक पहुंचाये और मामले की प्रगति रिपोर्ट प्राप्त करें.