Nagpur High Court
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  • विकासक को प्रमाणपत्र नहीं देने पर HC के आदेश

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नागपुर. निर्माण उद्योग को लंबे समय से चल रहे संकट से इसे उबारने के लिए भले ही सरकारी स्तर पर कई तरह के उपाय कर शर्तों में भी शिथिलता लाई जा रही हो, लेकिन स्थानीय स्तर पर नियमों का हवाला देते हुए निर्माण उद्योग में रुकावटें लाए जाने का मामला उजागर हुआ है. आवासीय योजना तैयार करने के लिए आवश्यक पर्यावरण प्रमाणपत्र की प्राप्ति के लिए जरूरी प्रमाणपत्र उपलब्ध नहीं कराए जाने के कारण हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई.

इस पर सुनवाई के बाद न्यायाधीश सुनील शुक्रे और न्यायाधीश अविनाश घारोटे ने जहां एनएमआरडीए (नागपुर महानगर मेट्रोरीजन डेवलपमेंट अथॉरिटी) को आवश्यक प्रमाणपत्र उपलब्ध कराने का अनुरोध किया गया, वहीं अगली सुनवाई के दौरान विकास नियंत्रण नियमावली 2018 प्रस्तुत करने के आदेश भी एनएमआरडीए को दिए गए. याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एस.के. मिश्रा, अधि. कौस्तुभ देवगडे और एनएमआरडीए की ओर से अधि. कुंटे ने पैरवी की.

नियमों को भी कर रहे नजरअंदाज

सुनवाई के दौरान एनएमआरडीए की ओर से पैरवी कर रहे वकील ने कहा कि इस मामले में पैरवी के लिए विभाग द्वारा वरिष्ठ वकील की नियुक्ति की है, जिनके द्वारा कुछ समय देने का अनुरोध किया गया है. इस संदर्भ में समय देने का कोई विरोध तो नहीं है, लेकिन याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता मिश्रा ने कहा कि 2018 में जारी की विकास नियंत्रण नियमावली और एनएमआरडीए द्वारा दायर किए गए हलफनामा के अनुसार भी 47,965.15 वर्गमीटर पर विकास करने की अनुमति है, जिसका खुलासा 22 जुलाई और 29 सितंबर को दायर हलफनामा में किया गया है. यदि यह स्वीकृत स्थिति है तो एनएमआरडीए की ओर से कम से कम इसका प्रमाणपत्र देना चाहिए.

पर्यावरण प्रमाणपत्र के लिए है आवश्यक

याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे अधि. मिश्रा ने कहा कि कम से कम 47,965 वर्गमीटर जमीन पर विकास के लिए प्रमाणपत्र दिया जाना चाहिए. उक्त प्रमाणपत्र पर्यावरण प्रमाणपत्र प्राप्त करने के लिए आवश्यक है. इसे समिति के समक्ष रखा जाना है. नियमों के अनुसार भी स्वीकृत स्थिति होने के बावजूद प्रमाणपत्र नहीं दिया जा रहा है. अत: प्रतिवादियों को समय भले ही प्रदान किया जाए, किंतु उन्हें प्रमाणपत्र देने के आदेश देने का अनुरोध भी किया गया. दोनों पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने उक्त आदेश जारी किए.