Nagpur High Court
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    नागपुर. राज्य सरकार की ओर से फ्रीशिप को लेकर 19 अगस्त 1995 को अध्यादेश जारी किया गया था जिसके अनुसार छात्रों द्वारा भरी जानेवाली फीस का वापस भुगतान करना अनिवार्य था. किंतु अब सरकार द्वारा दी जानेवाली फ्रीशिप और पाठ्यक्रम की कुल फीस के बीच बची निधि की वसूली को लेकर कार्रवाई होने के भय से मेडिकल छात्रों द्वारा हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया.

    इस पर सुनवाई के बाद न्यायाधीश सुनील शुक्रे और न्यायाधीश अनिल किल्लोर ने सरकारी मेडिकल कॉलेज और इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज के विभिन्न सत्रों में पढ़ रहे छात्रों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई नहीं करने के आदेश प्रशासन को दिए. साथ ही अदालत ने इस याचिका पर फैसला होने के बाद यदि छात्रों के विरोध में फैसला आता है तो शुल्क अदा करने का शपथपत्र देने के आदेश छात्रों को दिए. याचिकाकर्ता पंकज पटले की ओर से अधि. आनंद परचुरे और सरकार की ओर से अति. सरकारी वकील आनंद फुलझेले ने पैरवी की.

    अदालत पहले भी दे चुकी है फैसला

    सुनवाई के दौरान अधि. परचुरे ने कहा कि शुल्क अदा नहीं करने पर कड़ी कार्रवाई करने की चेतावनी छात्रों को दी गई है जिससे उनके खिलाफ कार्रवाई होने से इनकार नहीं किया जा सकता है. अत: प्रशासन को कार्रवाई से रोकना जरूरी है. एक ओर जहां सरकार द्वारा अध्यादेश जारी किया गया था.

    वहीं दूसरी ओर हाई कोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने 11 अप्रैल 2018 को इसी तरह के एक मामले में फैसला सुनाया है. अधि. परचुरे ने कहा कि फ्रीशिप की नीति में परिवर्तन कर 16 मार्च 2021 को सरकार की ओर से नया अध्यादेश जारी किया गया है. यदि नये अध्यादेश की वैधता पर मुहर भी लगती है तो इस स्थिति में भी अध्यादेश की शर्तें भविष्य में छात्रों की नई बैच पर लागू होंगी. 

    राहत देने का सरकारी पक्ष ने किया विरोध

    • सरकार की ओर से पैरवी कर रहे अधि. फुलझेले ने कहा कि याचिका पर सरकार की ओर से अपना पक्ष रखने के लिए एक सप्ताह का समय दिया जाना चाहिए. तब तक याचिकाकर्ताओं को किसी तरह राहत नहीं दी जानी चाहिए. 
    • इस पर अदालत ने कहा कि अब तक सरकार की ओर से हलफनामा दायर नहीं किया गया है. इसके अलावा औरंगाबाद की बेंच द्वारा दिए फैसले के अनुसार वर्तमान में छात्रों को सुरक्षा मिलनी चाहिए. 
    • अत: मेडिकल और मेयो में किसी भी मेडिकल कोर्स में पढ़ रहे किसी भी वर्ष के छात्रों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई नहीं करने के आदेश दिए. अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि याचिका का फैसला छात्रों के विपरीत आता है तो ऐसी अवस्था में छात्रों को शुल्क जमा करना होगा. 
    • हाई कोर्ट का फैसला आने के 4 सप्ताह के भीतर शुल्क जमा करने की स्वीकृति के साथ रजिस्ट्रार के पास शपथपत्र जमा करना होगा. एक सप्ताह के भीतर शपथपत्र दायर करने होंगे. यदि समय के भीतर शपथपत्र दायर नहीं किए गए तो दी गई राहत निरस्त कर दी जाएगी.