Auto Rickshaw, Pollution
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  • शहर में गाड़ियों की जांच जरूरी, जिला प्रशासन नहीं दे रहा ध्यान

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नागपुर. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने प्रदूषण का स्तर घटाने के लिए सभी प्रकार के वाहनों की जांच के निर्देश दिए थे. आदेश की पालन का जिम्मा जिला प्रशासन, परिवहन, पॉल्यूशन कंट्रोल मंडल और यातायात पुलिस को सौंपा गया था लेकिन इस पर ध्यान नहीं दिया गया. महानगर में प्रदूषण कम करने के लिए काफी रुपए खर्च किए जा रहे हैं. लेकिन जो गाड़ियां प्रदूषण फैलाती हैं, उनकी जांच करने में किसी की दिलचस्पी नहीं है. शहर में ऐसे कई वाहन हैं जो प्रदूषण फैला रहे हैं लेकिन ट्रैफिक पुलिस या आरटीओ द्वारा ऐसे वाहनों के खिलाफ कोई विशेष अभियान नहीं चला रही है. न ही प्रदूषण के नाम पर वाहनों का चालान काटा जा रहा है. शहर में  पहले कई पेट्रोल पंपों के साथ कई जगहों पर प्रदूषण जांच की सुविधा होती थी. लेकिन धीरे-धीरे समय के साथ वो अब बंद हो गए. महानगर में प्रदूषण जांच करने के लिए कोई अच्छा सेंटर नहीं है. कुछ लोग पीयूसी सेंटर से प्रदूषण की जांच कर अस्थाई सर्टिफिकेट ले रहे हैं. ताकि कभी पुलिस पकड़े तो चालानी कार्रवाई से बच सके. 

बंद होते जा रहे हैं PUC सेंटर

महानगर में कई पेट्रोल पंप पर खुले पीयूसी सेंटर धीरे-धीरे बंद होते जा रहे हैं. चलित मशीनें भी बंद हैं. नियम यह है कि पेट्रोल पंप पर मशीन लगाकर गाड़ियों का फ्री में पीयूसी कार्ड बनाना था लेकिन ऐसा नहीं हुआ. पंप पर पीयूसी सेंटर बंद होते ही प्राइवेट मोबाइल वैन पीयूसी सेंटर के नाम पर मनमर्जी से काम कर रहे हैं. वे सिर्फ तीन महीने के लिए कार्ड बना रहे हैं, जबकि इसे छह महीने के लिए भी बनाया जा सकता है. इस कारण जनता पर दोहरी मार पड़ रही है. 

वैकल्पिक व्यवस्था के तहत बना रहे थे कार्ड

कुछ पेट्रोल पंप के संचालकों की मानें तो फ्री कार्ड बनाना वैकल्पिक व्यवस्था थी. कार्ड बनाने के लिए चार्ज भी ले सकते थे. कई पंप मालिकों ने मशीन इसलिए बंद कर दी कि उसका खर्च भी नहीं निकल पा रहा था. मशीन की कीमत करीब 3.50 लाख रुपए है और लेबर व मेंटेनेंस पर रोजाना का खर्च एक हजार रुपए था. पूरे दिन में पांच ग्राहक भी नहीं आते. ऐसे में मशीनों को बंद करना ही उचित समझा.

पुलिस का फोकस सिर्फ सीट बेल्ट और हेलमेट तक

चलित पीयूसी सेंटर वालों का कहना हैं कि तीन महीने का कार्ड बनाना मजबूरी है, ताकि लोग इसे दोबारा बनवाने दोबार आएं. यदि छह महीने के लिए कार्ड बनाएंगे तो दोबारा कौन आएगा. गाड़ियों के पीयूसी कार्ड को लेकर न पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड सख्त है और न ही आरटीओ का ध्यान है. ट्रैफिक पुलिस का फोकस सीट बेल्ट और हेलमेट चैकिंग तक सीमित है. एक तरफ वाहनों से होने वाले प्रदूषण को कम करने कई योजनाएं बनाई जा रही है, तो दूसरी ओर पीयूसी कार्ड को लेकर किसी का ध्यान हीं है.  

कई वाहनों की नहीं हुई है जांच

जिले में लाखों गाड़ियां पंजीकृत है लेकिन उनमें कई गाड़ियों का पॉल्यूशन चेक नहीं हुआ है. न ही इस पर किसी का ध्यान है. मोबाइल पीयूसी को सहयोग नहीं मिलने के कारण वाहनों की जांच कम हो पा रही है. मोबाइल यूनिट को जांच के लिए अधिकृत तो किया गया है, मगर आरटीओ या पुलिस की तरह वाहनों को रोककर जांच करने का अधिकार नहीं है. चालक स्वेच्छा से अपनी वाहनों का जांच नहीं कराते और जब उन्हें रोका जाता है तो विवाद हो जाता है. महानगर में 35 प्रतिशत प्रदूषण वाहनों से निकलने वाले धुएं से होता है. एक्सपर्ट की मानें तो धूल के साथ केमिकल भी वायुमंडल में मौजूद हैं, जो लोगों के लिए खतरनाक साबित होते हैं. इनमें खासकर नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फर डाइ ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड का स्तर भी दोगुना से ज्यादा बढ़ गया है.

पेट्रोल पंपों में लगाने थे पीयूसी

महानगर व जिले में सैकड़ों पेट्रोल पंप संचालित हो रहे हैं. अगर इन पंपों में पीयूसी अनिवार्य कर दिया जाएगा तो जिले के सभी वाहनों का भी जांच हो सकती है. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश पर प्रदेश के साथ-साथ देश के अन्य राज्यों में यह आदेश जारी हुआ है लेकिन स्थानीय जिला प्रशासन द्वारा इस ओर ध्यान नहीं दिया गया. इसके लिए न तो कभी आदेश जारी किया गया न ही पंप संचालकों की बैठक ली गई. केवल प्रदूषण जांच केंद्र खोल कर अपने कर्तव्य से इतिश्री कर लिया.

खर्च बचाने फैला रहे प्रदूषण

छोटे व बड़े वाहनों का प्रदूषण रिपोर्ट दो कारण से फेल होता है. बड़े वाहनों पर ही गौर करें तो इसमें में पहला कारण यदि पंप में खराबी आने से होती है. इसके सुधार में 3 हजार रुपए का खर्च आता है. वहीं दूसरा कारण इंजन में खराबी होने के बाद वाहनों से अधिक प्रदूषण फैलता है. इंजन में खराब आने का मतलब संबंधित वाहन मालिक 25 से 50 हजार रुपए तक खर्च करना पड़ता है. ऐसे में वाहन मालिक अपनी रुपए बचाने के लिए प्रदूषण फैलाने से नहीं चुकते.