File Photo : PTI
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  • 70 दिनों से 24/7 मोर्चे पर डटे हैं जवान

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नागपुर. कोरोना की इस जंग में यदि असली लड़ाई किसी ने लड़ी है तो वो है पुलिस. इस बीमारी का संक्रमण रोकने में पुलिस की अहम भूमिका रही है. 18 मार्च से शहर में लॉकडाउन घोषित किया गया. तब से अब तक फील्ड वर्क में पुलिस ने अपनी जान झोक दी है. यदि कोरोना रुका है तो वो केवल पुलिस की सख्ती की वजह से. पुलिस न होती तो इस बीमारी को रोकना प्रशासन के लिए असंभव हो जाता. 70 दिनों से 24/7 पुलिस के जवान मोर्चे पर डटे हैं.

इस संकट के दौरान पुलिस का एक मानवीय चेहरा भी देखने को मिला है. नागरिकों में पुलिस के प्रति विश्वसनीयता बढ़ी है. ऐसे में किसी एक विभाग को इसका श्रेय नहीं दिया जा सकता. यदि पुलिस इस लड़ाई में शामिल नहीं होती तो प्रशासन को इसे काबू करने में दांतों तले उंगलियां चबानी पड़ जाती. इन कोविड योद्धाओं के बगैर कोरोना संक्रमण रोकना लगभग असंभव था.

प्रशासन का चेहरा बनी पुलिस
18 मार्च से पहला लॉकडाउन शहर में शुरू हुआ था. तब से लेकर अब तक पुलिस विभाग ने मोर्चा संभाला हुआ है. इस दौरान यदि नागरिकों से किसी को सबसे ज्यादा रूबरू होना पड़ा है तो वो है पुलिस विभाग. खाकी वर्दी ही प्रशासन का चेहरा बनकर सामने आई. अब तक 450 कोरोना मरीज शहर में भर्ती हो चुके हैं. इन सभी को अस्पताल तक पहुंचाने का काम पुलिस की निगरानी में हुआ. 8000 से ज्यादा लोगों को क्वारंटाइन करने का काम पुलिस के बंदोबस्त में हुआ.

नागरिकों को समझाने से लेकर कानून व्यवस्था संभालने तक सारी जिम्मेदारी पुलिस पर ही थी. मेडिकल अस्पताल, मेयो अस्पताल और एम्स अस्पताल में पुलिस ने मोर्चा संभाला है. सभी क्वारंटाइन सेंटर में पुलिस बंदोबस्त कर रही है. सुरक्षा उपायों का पूरा ध्यान रखा जा रहा है, लेकिन स्वास्थ्य विभाग की तरह प्रशिक्षित न होने के बावजूद पुलिस अपनी जान जोखिम में डालकर काम कर रही है.

बिना बंदोबस्त के अतिक्रमण नहीं हटता
पुलिस के बंदोबस्त के बगैर महानगर पालिका की अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई नहीं होती. ऐसे में इतने बड़े पैमाने पर लोगों को क्वारंटाइन मनपा नहीं कर सकती थी. यह कहना गलत नहीं होगा कि पुलिस नहीं होती तो यह सब किसी भी तरह से संभव नहीं हो पाता. इस महामारी के काल में पुलिस का योगदान बहुत बड़ा है. सतरंजीपुरा और मोमिनपुरा इलाके की पूरी जिम्मेदारी पुलिस पर ही डाली गई थी. इस दौरान पुलिस विभाग के 9 जवान खुद कोरोना पॉजीटिव हो गए. बावजूद इसके पुलिस जवान मोर्चे पर डटे हुए हैं. कंटेनमेंट जोन में काम करने वाले कर्मचारी कई हफ्तों से अपने घर तक नहीं गए. अपने माता-पिता और बीवी-बच्चों का चेहरा उन्हें देखने नहीं मिला है. बाधित क्षेत्रों में पुलिस के बंदोबस्त के चलते ही बीमारी ज्यादा नहीं फैली.

शहर का नागरिक ही योद्धा
शहर के कई इलाके ऐसे हैं जहां प्रशासन चाहकर भी स्थिति को काबू में नहीं कर सकता था. सीआरपीएफ की जगह सेना भी आ जाती तो इतने शांतिप्रिय ढंग से यह काम करवाना मुश्किल होता. लेकिन सीपी भूषणकुमार उपाध्याय ‘जहां चाह, वहां राह’ के सिद्धांतों पर काम करते हैं. इसके लिए प्रशासन का नागरिकों के साथ सीधा संबंध जरूरी है. उनकी एक अपील पर सभी धर्म के लोग एकजुट हो गए. धर्मगुरुओं ने अपने क्षेत्र में मोर्चा संभाल लिया. हर थाने में 25 से 30 कोविड योद्धा पुलिस की मदद करने रास्ते पर उतर गए. कंधे से कंधा मिलाकर न सिर्फ जनजागृति की बल्कि बंदोबस्त में भी पुलिस का पूरा साथ दिया. केवल यही नहीं जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए कई सामाजिक संगठन सामने आए. रोजाना हजारों परिवारों को भोजन मिला.

टीमवर्क के बिना यह सब संभव नहीं : सीपी उपाध्याय
इस संबंध में चर्चा के दौरान सीपी उपाध्याय ने कहा कि टीमवर्क के बगैर यह सब कार्य करना संभव नहीं है. सीपी से लेकर पुलिस कांस्टेबल पिछले 70 दिनों से कार्य में जुटे हैं. यदि पुलिस लॉकडाउन और कंटेनमेंट जोन में मोर्चा नहीं संभालती तो इस बीमारी को रोक पाना संभव नहीं था, लेकिन यह कहना कि पुलिस की वजह से ही सब हो रहा है, यह सरासर गलत होगा. यह किसी एक विभाग का यश नहीं है. दिन-रात डाक्टरों की टीम मरीजों की सेवा में जुटी है. अच्छे उपचार के कारण हमारे यहां मृत्यु दर बहुत कम है और अधिकांश लोग ठीक होकर घर लौट रहे हैं. महसूल विभाग के अधिकारी-कर्मचारी भी कड़ी मेहनत कर रहे हैं. पुलिस, स्वास्थ्य, मनपा और राजस्व विभाग ने मिलकर यह काम किया है.