पंडित-पुरोहितों पर आजीविका का संकट, कोरोना के कारण धार्मिक आयोजनों पर रोक से हैं परेशान

    Loading

    नागपुर. गत 1 वर्ष से कोरोना काल में मंदिर बंद रहने व धार्मिक आयोजनों पर रोक के कारण पंडित और पुरोहितों की आजीविका ही बंद हो गई, जिससे उनके सामने परिवार का खर्चा कैसे चलाना, यह समस्या खड़ी हुई है. दिवाली के बाद कुछ माह तक कोरोना कम होने से मंदिर खुल गए थे. शादी-ब्याह भी शुरू हो गए थे.  प्रतिकूल परिस्थितियों के बीच गत वर्ष 9 महीने किसी तरह दिन काट रहे पंडित और पुरोहितों को शादी-ब्याह की तारीखों से उम्मीद थी कि यजमानों की संख्या बढ़ेगी पर यह अब टूट चुकी है.

    क्योंकि फिर कोरोना का कहर बढ़ने लगा है. लाकडाउन लगा है. मंदिर फिर से बंद हो गए हैं. शादी-ब्याह 50 लोगों की उपस्थिति में घर में ही कोरोना नियमों का पालन कर करने के प्रशासन ने निर्देश दिए हैं. शादियों की तारीखें आगे बढ़ाई जाने लगी हैं तो कहीं रिश्ते तय करके सामान्य दिनों के इंतजार का फैसला लिया जा रहा है. ऐसे में शुभ मुहूर्त से भी ज्यादा उम्मीद नहीं है. श्रीमद्भागवत महापुराण, प्रवचन आदि कार्यक्रमों से आस लगी थी है लेकिन स्थितियां पंडितों और पुरोहितों के विपरीत ही जाती दिखाई दे रही हैं.

    सभी धर्मों के आयोजन प्रभावित 

    केवल हिंदुओं  के ही नहीं, मुस्लिम, जैन, बौद्ध, ईसाई धर्मावलंबियों के आयोजन भी कोरोना काल में नहीं हो पाए. रमजान, बकरी ईद, आंबेडकर, जयंती, बुद्ध पौर्णिमा, महावीर जयंती, क्रिसमस, आंबेडकर परिनिर्वाण दिवस के आयोजन घर में ही मनाने पड़े. 

    संकट में बीते दिन

    गत वर्ष कोराना के साए में महाशिवरात्रि, चैत्र नवरात्र, राम जन्मोत्सव, हनुमान जयंती, रक्षाबंधन, गणेशोत्सव, दुर्गोत्सव, विजयादशमी, दीपावली भी चली गई. उस दौरान पंडितों और पुरोहितों में यजमानों की प्रतीक्षा की जाती रही लेकिन कोरोना से बचाव के लिए जारी गाइडलाइन बाधा बनती रही. धार्मिक आयोजनों पर अब कड़ा पहरा लगा हुआ है.

    मंदिरों या घरों में धार्मिक अनुष्ठान-पूजा पाठ से इनकी आजीविका चलती है. पंडिताई का कार्य करने वाले ब्राह्मणों को कोई अन्य विकल्प भी नजर नहीं आ रहा है. इनके लिए परेशानी की बात यह है कि यह न तो मजदूरों की श्रेणी में आता है और न ही निर्धनों की श्रेणी में. यह वर्ग समाज में सम्मानित और प्रणम्य वर्ग है, ऐसे में इनकी तरफ न तो सामाजिक संगठनों का न ही शासन प्रशासन का ध्यान जा रहा है. 

    धार्मिक आयोजनों पर ब्रेक, मदिरालयों को छूट 

    केवल यजमानी के भरोसे परिवार चलाने वाले पंडित और पुरोहितों की संख्या भी अच्छी खासी है. परेशानी और अर्थ संकट से जूझता यह वर्ग बेहद दुखी है. दुख इसलिए क्योंकि एक तरफ मंदिर और देवालयों में धार्मिक आयोजन नहीं होने दिए जा रहे हैं तो दूसरी तरफ मदिरालयों को छूट मिली हुई है. यजमानी पर ही जीवन चलाने वाले पंडित और पुरोहितों का बड़ा वर्ग यह प्रश्न उठा रहा है कि संस्कार देने वाले केंद्र व धार्मिक आयोजनों पर रोक और कुसंस्कार देने वाली गतिविधियों को खुली छूट, यह कैसी व्यवस्था है? जब संस्कार केंद्र और संस्कार देने वाले आयोजन ही नहीं होंगे तो अच्छा परिवेश और अच्छा समाज कैसे बनाया जा सकेगा.