- कुछ अस्पतालों में चल रही हेराफेरी
नागपुर. कोरोना ने कुछ निजी अस्पतालों को ‘डकैत’ बना दिया है. उन्हें अपने अस्पताल में लगीं भारी मशीनों, करोड़ों की इमारत के बैंक लोन को चुकाने का सुनहरा अवसर इस महामारी ने दिया है. मजबूर व डरे-सहमे मरीजों और उनके परिजनों को और अधिक डराकर कुछ अस्पताल उन्हें लूटने-खसोटने का काम कर रहे हैं. कोरोना के मरीजों को ऐसी-ऐसी महंगी दवाएं और इंजेक्शन ठोके जा रहे हैं जिनका नाम भी पहले कभी नहीं सुना गया था. कुछ तो अपना बिल बढ़ाने के लिए ही ऐसा कर रहे हैं. अब तो जो इंजेक्शन नहीं भी लगाए गए उसका बिल भी लगाकर लूटने का काम कुछ अस्पतालों में किया जा रहा है.
धंतोली स्थित एक चार अक्षर के नाम वाले हॉस्पिटल में एक कोरोना मरीज को भर्ती किया गया. पहले ही दिन उनके परिजनों को बताया गया कि रेमडेसिविर इंजेक्शन लगेगा लेकिन उनके पास स्टाक नहीं है. जब स्टाक आएगा तब लगाया जाएगा अन्यथा कहीं बाहर से व्यवस्था हो तो करें. बाहरगांव से आए परिजन व्यवस्था नहीं कर पाए. दूसरे दिन भी उन्हें इलाज रहे डॉक्टर ने बताया कि जिला प्रशासन से रेमडेसिविर नहीं मिला है. हॉस्पिटल में स्थित उनकी ही फार्मेसी से तीसरे दिन परिजनों को दवाइयों का बिल दिया गया. बिल की जांच की तो उसमें 2 रेमडेसिविर की रकम भी एमआरपी रेट से जोड़ी नजर आई. जब पूछा तो फार्मेसी वाले ने बताया कि उसने अस्पताल को आपके मरीज से नाम से इंजेक्शन दिए थे.
एक ने कहा लगाया, दूसरे ने नहीं
परिजनों ने जब उपचार कर रहे डॉक्टर से पूछा कि जब रेमडेसिविर का स्टाक ही नहीं होना बताया गया तो वह बिल में कैसे जोड़ा गया. उस डॉक्टर ने कहा कि मरीज को रेमडेसिविर लगने की कोई जानकारी उन्हें नहीं है. इन्हीं डॉक्टर ने परिजनों को रेमडेसिविर नहीं होने की जानकारी दो दिनों तक दी थी. जब उनसे बड़े डॉक्टर से संपर्क किया गया तो उनका कहना था कि मरीज को इंजेक्शन लगाए गए हैं. मरीज के परिजनों को संदेह है कि कुछ गड़बड़ जरूर है लेकिन उनका मरीज अस्पताल में भर्ती होने के कारण वे चुप रह गए. फार्मेसी वाले ने अपना बिल उनसे वसूल लिया. परिजनों ने बताया कि उनके मरीज का स्वास्थ्य अच्छा हो रहा है इसलिए अस्पताल प्रबंधन से वे नहीं उलझे. उनका उद्देश्य अपने घर के सदस्य को स्वस्थ लेकर घर लौटना है. किसी भी तरह की शिकायत भी उन्होंने नहीं की.
मौकापरस्त बन गए कुछ अस्पताल
कोरोना संकटकाल में कुछ अस्पताल पूरी तरह से मौकापरस्त बन गए हैं. उनका काम किसी भी तरह से मरीज का बिल 3 से 5 लाख रुपयों तक पहुंचाना है. पहले एडवांस में लाख-दो लाख जमा करवाया जा रहा है. फिर हजारों रुपयों की दवाएं व इंजेक्शन लिखे जा रहे हैं. ये दवा व इंजेक्शन मरीज को वास्तव में लगाए जा रहे हैं या नहीं यह भी देखने वाला कोई नहीं है. कुछ तो अत्यंत गंभीर मरीज को अंतिम प्रयास के रूप में लगने वाले इंजेक्शन को पहले ही लगा रहे हैं. वहीं डॉक्टरों का एक बड़ा तबका भी इसे गलत बता रहा है. अनेक डॉक्टर्स कह रहे हैं कि रेमडेसिविर, टोशी या इनके समकक्ष जैसे इंजेक्शन सभी मरीजों को लगाने की बिल्कुल जरूरत नहीं है लेकिन कुछ अस्पतालों में इसे मध्यम संक्रमितों को भी लगाया जा रहा है जिसका बेहद गंभीर साइड इफेक्ट्स भी मरीजों में देखने को मिल रहे हैं. लेकिन मौकापरस्तों को इससे कोई लेना-देना नहीं है. उन्हें तो अपने करोड़ों की इमारत में खड़े किए अस्पताल के बैंक लोन की रकम इस आपातकाल में मिले अवसर पर ही कमा लेना है.
नकद जमा करने को करते हैं बाध्य
ऐसे लुटेरे अस्पतालों में मरीज को बड़ी रकम नकद ही जमा करने के लिए बाध्य किया जा रहा है. बैंक ट्रांसफर इन्हें मंजूर नहीं है. एडवांस में पैसे जमा करने के बाद ही इलाज शुरू किया जाता है और फिर मरीज को भर्ती करने के बाद कमाई के सारे हथकंडे अपनाये जा रहे हैं. पीपीई किट, नर्स, डॉक्टर फीस, फिजियोथैरेपिस्ट के नाम पर मनमानी फीस बिल में जोड़ा जा रहा है. डर के कारण मरीज और उसके परिजन प्रशासन से शिकायत नहीं कर रहे हैं. प्रशासन ने ऑडिटर्स नियुक्त कर दिए हैं लेकिन वे भी शिकायत करने वालों के मामले ही देख रहे हैं. लुटेरे बन चुके अस्पतालों पर प्रशासन का कोई नियंत्रण ही नजर नहीं आ रहा है.