School closed
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  • पैरेंट्स का बढ़ा टेंशन, छात्र भी परेशान
  • 50 फीसदी भी पूरा नहीं हुआ पाठ्यक्रम
  • 75 प्रश पाठ्यक्रम में भी कटौती की मांग
  • 21 तक बंद रहेगा स्कूल

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नागपुर. महाराष्ट्र माध्यमिक व उच्च माध्यमिक शिक्षा मंडल द्वारा अगले महीने से 10वीं और 12वीं स्टेट बोर्ड की परीक्षा ली जाएगी. लेकिन अब भी राज्यभर में कई जगह स्कूलें बंद हैं. इतना ही नहीं मुंबई जैसे महानगर में तो गिनती के दिन ही स्कूल लगे. विभाग में भी 21 मार्च तक स्कूल बंद रहेंगे. ग्रामीण भागों में 30-40 फीसदी तक भी पाठ्यक्रम पूर्ण नहीं हुआ है. वहीं, शहरी भागों में भी यही स्थिति बनी हुई है. इन विपरीत परिस्थितियों के बावजूद सरकार द्वारा अब तक यह स्पष्ट नहीं किया जा रहा है कि परीक्षा कितने पाठ्यक्रम पर आधारित होगी.

बोर्ड का वर्ष होने और अधूरी पढ़ाई की वजह से पैरेंट्स की चिंता बढ़ती जा रही है. वहीं, छात्र भी परेशान हो गये हैं. पहले ही ऑनलाइन क्लासेस से ऊब चुके थे. अब फिर से वहीं मुसीबत ने छात्रों को निराश कर दिया है. कोरोना के कारण एक बार फिर महाराष्ट्र में हालात बिगड़ने लगे हैं. अनेक जिलों में मार्चभर के लिए स्कूल बंद कर दिये गये हैं. यदि मार्च के अंतिम सप्ताह या फिर अप्रैल से स्कूल शुरू भी हुये तो कितना पाठ्यक्रम पूर्ण हो पाएगा, यह भी निश्चित नहीं है. शिक्षकों का कहना है कि शहरी भागों के कुछ स्कूलों में 50 फीसदी ही पाठ्यक्रम पूरा हो सका है. जबकि ग्रामीण भागों के स्कूलों में अब भी 30-40 फीसदी पाठ्यक्रम ही पूरा हो सका है.

अब तो ऑनलाइन क्लासेस भी बंद

सरकार ने पहले ही पाठ्यक्रम में 25 फीसदी की कटौती की थी. यानी अब बचे हुये 75 फीसदी हिस्से के आधार पर ही बोर्ड की परीक्षा ली जाएगी. जैसे-जैसे दिन गुजर रहे हैं, वैसे-वैसे पालकों सहित छात्रों की चिंता बढ़ती जा रही है. ग्रामीण भागों में स्थिति और भी खराब है. आधे से ज्यादा छात्र ऑनलाइन शिक्षा से वंचित है. इसमें जरा भी संदेह नहीं है कि सरकार भी परीक्षा को लेकर स्पष्ट नहीं है. मार्च का पूरा महीना लॉकडाउन में चला जाएगा. पालकों का कहना है कि सरकार को परीक्षा के पैटर्न में बदलाव करना पड़ेगा. इसके बिना बोर्ड की परीक्षा लेना मुश्किल हो जाएगा. अब तो स्थिति यह है कि छात्र निराश हो गये हैं क्योंकि पाठ्यक्रम पूरा नहीं हो सका है. ऑनलाइन के भरोसे हर विषय को नहीं समझा जा सकता. 

अस्थायी व्यवस्था में भविष्य से खिलवाड़

सरकार ने पिछले वर्ष जब ऑनलाइन का विकल्प दिया था, तब ही स्पष्ट कर दिया था कि यह अस्थायी व्यवस्था है. फिर अस्थायी भरोसे भविष्य का फैसला कैसे किया जा सकता है. पुराने निर्णय के अनुसार 75 फीसदी पाठ्यक्रम के आधार पर ही परीक्षा ली जाएगी. इस हालत में छात्र कैसे तैयारी करेंगे. यही वजह है कि छात्रों के साथ पालकों की भी चिंता बढ़ने लगी है. बोर्ड का वर्ष विद्यार्थी जीवन का टर्निंग प्वाइंट होता है. इसके बावजूद सरकार द्वारा स्थिति स्पष्ट नहीं किया जा रहा है. केवल परीक्षा लेने की तिथि ही घोषित की जा रही है. अप्रैल के महीने में क्या हालात होंगे, यह कोई नहीं जानता. यदि हालात बिगड़े तो क्या परीक्षा लेना संभव होगा. इस तरह के तमाम सवाल है जो अब परेशान करने लगे हैं. 

विजुक्टा ने की तिथि बढ़ाने की मांग

इस बीच विदर्भ जूनियर कॉलेज टीचर्स एसोसिएशन (विजुक्टा) ने परीक्षा की तिथि बढ़ाने की मांग की है. प्रांतीय उपाध्यक्ष विलास केरडे ने बताया कि अब भी पाठ्यक्रम पूरा नहीं हुआ है. समूची व्यवस्था तहस-नहस हो गई है. बच्चों के भविष्य को लेकर पालकों की चिंता बढ़ती जा रही है. वहीं, दूसरी ओर सरकार कोई निर्णय नहीं ले रही हैं. जब पाठ्यक्रम ही पूरा नहीं हुआ तो फिर अप्रैल से परीक्षा कैसे ली जा सकती है.यह तो छात्रों के साथ अन्याय ही होगा. उन्होंने परीक्षा की तिथि को बढ़ाने की मांग की है. इस संबंध में शिक्षा मंत्री को पत्र भेजकर मांग की जाएगी.