- पहला कोच किया रवाना
नागपुर. दक्षिण-पूर्व-मध्य रेल नागपुर मंडल द्वारा संचालित मोतीबाग वर्कशाप में अब नैरोगेज के कोचेस की बजाय नये एलएचबी कोचेस का मेंटेनेंस किया जा रहा है. इसी तहत 36 महीनों तक सेवायें देने के बाद मेंटेंनेस के पहुंचे एलएचबी कोच को पूरी तरह से सुधारकर दोबारा उपयोग के लिए बिलासपुर रवाना किया गया. रेलवे की तकनीकी भाषा में इसे एसएस-2 शेड्यूल कहा जाता है.
इस दौरान अगले माह सेवानिवृत्त होने वाले 3 रेलकर्मियों द्वारा हरी झंडी दिखवाई गई. इनमें आर. नायर, एसके धींगरा तथा विनोद मेश्राम शामिल रहे. वहीं प्रधान मुख्य यांत्रिक अभियंता एस. श्रीनिवास, मुख्य कारखाना प्रबंधक ललित कुमार धुरंधर, वरिष्ठ मंडल यांत्रिक अभियंता गुंजन वासनिक, उप मुख्य यांत्रिक अभियंता निखिलेश पवार, वरिष्ठ सामग्री प्रबंधक (जीएसडी) प्रफुल्ल पोखरा, सहायक कर्मशाला प्रबंधक आकाश पाटिल, सहायक कार्मिक अधिकारी अमरेश कुमार शुक्ला व वर्कशाप के सेक्शन प्रभारी एवं कर्मचारी मौजूद रहे. इस मौके पर बिलासपुर हेडक्वार्टर द्वारा 10,000 रुपये का पुरस्कार प्रदान कर कर्मचारियों का हौसला भी बढ़ाया गया.
क्या होता है एसएस-2 शेड्यूल
ज्ञात हो कि एलएचबी पैसेंजर कोच 36 महीने चलने के उपरांत कार्यशाला में एसएस-2 शेड्यूल के लिए भेजा जाता है. इस शेड्यूल में सवारी डिब्बे की पूर्ण रूप से मरम्मत की जाती है. डिब्बे के पहिये से लेकर छत तक की जांची जाती है और मरम्मत की जाती है. वहीं, कोच में यदि को सामग्री खराब हो जाये तो उसके तुरंत बदल दिया जाता है. इस तरह, सवारी डिब्बे का नवीनीकरण करके वापस उसे कोचिंग डिपो में भेजा जाता है. जहां इस सवारी डिब्बे को ट्रेन के साथ जोड़कर यातायात के लिए जारी किया जाता है.
पहले बंगाल भेजे जाते थे
उल्लेखनीय है कि इससे पहले दक्षिण-पूर्व-मध्य रेलवे जोन को अपने एलएचबी कोचे पूर्व रेलवे की लिलुआ (बंगाल) स्थित कार्यशाला में भेजा जाता था. इस पूरी प्रक्रिया में लगभग 50-60 दिन का समय लगता था. लिलुआ कार्यशाला एसएस-2 मरम्मत के बदले में दक्षिण- पूर्व-मध्य रेलवे से 13 लाख रुपये प्रति डिब्बे की राशि वहन की जाती थी. इन्हीं समस्याओं को देखते हुए मोतीबाग कारखाने ने यह पहल की. मोतीबाग कारखाने की इस उपलब्धि से दक्षिण- पूर्व-मध्य रेलवे अब नॉन एसी एलएचबी सवारी डिब्बे के रखरखाव में आत्मनिर्भर हो जायेगा. इससे समय एवं पैसा दोनों की बचत होगी.