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  • मानसिक रूप हो रहे बीमार 

नागपुर. कोरोना के कारण हुए लॉकडाउन ने बच्चों की मानसिकता पर गंभीर प्रभाव डाला है. पिछले चार महीनों से बच्चों का ज्यादातर समय मोबाइल में ही बीता. इसके बाद जुलाई में स्कूल शुरू होने की उम्मीद थी पर वैसा नहीं होने से बच्चे अब मानसिक रूप से हताहत हो गए हैं. इस गंभीर परिस्थति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कुछ दिन पूर्व शहर के एक बच्चे ने पिता द्वारा समोसा नहीं लाकर देने से फांसी लगा ली. वहीं एक बच्चे ने मोबाइल छीनने से आत्महत्या कर ली. इससे पूर्व नागपुर शहर और जिले में कई बच्चे बोरियत के कारण खेलते हुए, किसी ने पबजी गेम से अवसादग्रस्त होकर, किसी ने अज्ञात कारण से मौत को चुन लिया. यह गिनती थमने का नाम नहीं ले रही है. 

ज्ञात हो कि इस वर्ष लॉकडाउन के दौरान 25 मार्च से 1 जुलाई के बीच 66 बच्चे आत्महत्या कर चुके हैं. वहीं यही स्थति विश्व भर में चिंताजनक है. ब्रिटेन में 56 दिन के लॉकडाउन के दौरान 25 बच्चों ने आत्महत्या की है. कहने की जरूरत नहीं है कि यह स्थिति कितनी भयावह है. यह दृश्य बाल मनोचिकित्सकों के लिए भी सोचनीय बना हुआ है. शहर के मानसिक समुपदेशकों के अनुसार पिछले कई वर्षों में आए बदलाव के चलते शहरों के बच्चे अपने आम जीवन में मानसिक रूप से अकेलापन महसूस कर रहे हैं. वहीं यह लॉकडाउन बच्चों के लिए गंभीर त्रासदी लेकर आया है. 

पालक-बच्चों के बीच कम्युनिकेशन गैप
बच्चों की हालत को लेकर माता-पिता चिंतित हैं लेकिन उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर वे करें तो क्या करें. लॉकडाउन के दौरान बच्चों और पालकों के बीच मुख्य रूप से परस्पर संवाद की समस्या (कम्युनिकेशन गैप) पैदा हो गई है. शहर की साइकोथैरेपिस्ट एंड काउंसिलर कविता चांडक ने कहा कि बच्चे मोबाइल में जो खेल रहे हैं या टीवी में जो देख रहे हैं उसे माता-पिता के साथ बांट नहीं सकते क्योंकि यह सब फिजूल होने के कारण वे बच्चों की बात पर सिर्फ चिढ़ते या उस बात को अनसुना कर देते हैं.

इस ‘अनशेयरिंग’ के कारण बच्चे के मन पर बुरा असर पड़ रहा है क्योंकि वह जो किसी से कहना चाहता है उसे सुनने के लिए कोई तैयार नहीं है. माता-पिता जो भी नौकरी या व्यवसाय करते हैं उसकी बातें बच्चों के साथ नहीं बांट सकते क्योंकि बच्चा उसके विषय में नहीं जानता. इस प्रकार परस्पर संवादहीनता की स्थिति बन रही है. इस स्थिति में बच्चा अकेलापन महसूस करता है और अपने-आप अकेला रहता है. उसका एकमात्र मानसिक सहारा मोबाइल और टीवी जैसी मशीनें हैं. ऐसे में माता-पिता बच्चे को पढ़ाई करने या कोई दूसरी एक्टिविटी करने की नसीहत देते हैं तो बच्चे बिना किसी साथी के कुछ भी नहीं कर पाते क्योंकि आखिर उन्हें एक मानसिक हिस्सेदार भी तो चाहिए.

क्या करें अभिभावक 
– बच्चों को सिर्फ उपदेश, नसीहत, सलाह या डांट न दें, बल्कि उन्हें हर गतिविधि में उनके साथ शामिल (इनवॉल्व) भी हों ताकि बच्चा जिस गतिविधि में जुटा है चाहे वह मोबाइल गेम हो या टीवी सीरियल या कुछ और उसकी बातें पालक के साथ शेयर कर सके.

– जब बच्चों को मोबाइल देना आवश्यक हो तब ठोस कारण होने तक व सीमित समय के लिए मोबाइल दिया जाए और वापस लिया जाए.

– बच्चों की हर गतिविधि में माता या पिता जो भी उपलब्ध हों, वे उनके साथ समय बिताएं और हर गतिविधि में उनके सहभागी बनें. इसे बच्चों के प्रशिक्षण का एक हिस्सा समझें. भले ही उनकी चीजें बोर लगें पर उनका हाथ जरूर बटाएं.

– बच्चों के साथ बातचीत, जानकारियों का आदान-प्रदान, परिस्थतियों के बारे में चर्चा, आसपड़ोस की चर्चा  के रूप में निरंतर संवाद कायम रखें.