Strict action should be taken against those placing illegal banners
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    • हटाने की कार्रवाई में RPF का जोश पड़ा ठंडा

    नागपुर. ऐतिहासिक दर्जा प्राप्त नागपुर स्टेशन की सुंदरता बढ़ाने के लिए मंडल प्रबंधन द्वारा करोड़ों रुपये खर्च किए जा चुके हैं. कहीं लाखों की लागत से गार्डन बनाया गया तो परिसर के बीचोबीच बुलंद इंजन को लाकर रख दिया गया. लेकिन इन सबके बीच परिसर में ही बनी इमारतों पर यूनियन लीडरों के अवैध बैनर इस खूबसूरती को बिगाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे. इन बैनरों और होर्डिंग्स को लगाने के लिए न तो अनुमति ली गई है और न ही मंडल प्रबंधन के इसके लिए भुगतान किया जाता है. क

    रीब 4 महीने पहले मंडल प्रबंधक कार्यालय परिसर में लगे ऐसे ही अवैध होर्डिंग्स को लेकर रेलवे सुरक्षा बल द्वारा कार्रवाई की गई. इसके बाद जोश में भरे आरपीएफ ने कहा कि स्टेशन परिसर से भी अनधिकृत बैनरों को हटा दिया जाएगा, फिर भले ही वे किसी यूनियन के क्यों न हो. आनन-फानन में आरपीएफ थाने से इंजीनियरिंग और संबंधित विभागों से पत्राचार भी किया गया लेकिन सारी कार्रवाई ढाक के तीन पात साबित हुई और आरपीएफ का जोश भी ठंडा पड़ गया. 

    प्रवेश द्वार पर ही अव्यवस्था की छवि

    यूं तो नागपुर स्टेशन को हैरिटेज का दर्जा दिया गया है लेकिन पश्चिमी प्रवेश द्वार से ही लगी इमारत पर यूनियनों के बैनरों से सारी छवि धूमिल हो जाती है. प्रवेश करते ही यात्री के मन में स्टेशन के प्रति पहला विचार अव्यवस्था का बन जाता है. प्रवेश द्वार से शुरू हुआ बैनरों का दौर स्टेशन के अंतिम छोर तक दिखाई देता है. प्रवेश द्वार के एक ओर 100 फीट के तिरंगे के साथ सुंदर से हरा-भरा गार्डन बनाया गया है तो ठीक दूसरी तरफ अवैध बैनरों और होर्डिंग्स के कारण सारी मेहनत पर पानी फिरता दिखाई देता है. 

    …तो क्या कानून पर भारी पड़ा दबाव

    फरवरी में आरपीएफ ने मंडल प्रबंधक कार्यालय में यूनियनों के अवैध बैनरों को हटा दिया. इस दौरान आरपीएफ और मंडल की सभी रेल यूनियनें आमने-सामने आ गईं. आरपीएफ थाने के नये आईपीएफ मीना ने आते ही अपनी सख्ती का परिचय दिया. यूनियन लीडरों ने प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से आरपीएफ अधिकारियों को चेतावनी भी दी.

    इसके बाद आरपीएफ ने डीआरएम ऑफिस और स्टेशन परिसर में बैनरों के लिए यूनियनों को दी गई जगह की लिखित जानकारी मांगी ताकि अवैध बैनरों को हटा जा सके. पहली बार आरपीएफ द्वारा सीधे तौर पर यूनियनों की मनमानी पर कार्रवाई की तैयारी की गई थी. यह सबकुछ कानूनी रूप से सटीक था लेकिन 4 महीने बीतने के बाद भी अवैध बैनर और होर्डिंग्स बने हुए हैं. इससे लगता है कि आरपीएफ के कानून पर यूनियन का दबाव भारी पड़ गया और सारी कार्रवाई ठंडे बस्ते में चली गई.