नागपुर. जिला मुख्यालय से चलने वाली ज्यादातर यात्री बसें जर्जर हो चुकी हैं. बस खराब होने की स्थिति में बसों से सफर करने वाले यात्रियों को खासी परेशानी का सामना करना पड़ता है. यात्रियों का कहना हैं लोकल रूट पर चलाई जाने वाली बसों की हालत अधिक ही खराब है. सफर के दौरान बसों में तेज अवाजें आती है, जिससे काफी दिक्कतें होती है. एसटी बसों का मेंटेनेंस की जरूरत है.
लॉकडाउन के दौरान एसटी बस स्टैंड से चलने वाली करीब 80 बसें स्टैंड पर कई दिनों से खड़ी रही लेकिन उस वक्त भी बसों के मेंटेनेंस पर ज्यादा फोकस नहीं किया गया. अब बसें वापस सड़कों पर दौड़ने लगी हैं. एसटी बस स्टैंड मैनेजमेंट जहां मैकेनिक के माध्यम से बसों की रूटीन मेंटेनेंस का दावा कर रहा है लेकिन बस स्टैंड पर खड़ी बसों की हालत देखने से ऐसा नजर नहीं आता. बसों का लगातार मेंटेन रखने की जरूरत है. ऐसे में यात्रियों को अभी भी बसों की स्थिति में कोई सुधार नजर नहीं आ रहा है.
घाटा होना भी एक वजह
एक स्टाफ ने बताया कि लगातार लॉकडाउन की वजह से एसटी पिछले डेढ़ साल से घाटे में चल रही है. ऐसे में अब एसटी को घाटे से उबरने में समय लग सकता है. इसके मेंटेनेंस के लिए हर महीने हजारों-लाखों रुपए की जरूरत पड़ती है. घाटे की वजह से बसों के मेंटेनेंस का खर्चा भी वहन करना मुश्किल हो जाएगा. पिछले साल ही एसटी बस स्टैंड 100 करोड़ से ज्यादा के नुकसान पर चल रहा था.
शोर के साथ करना पड़ता है सफर
एसटी की कई बसों की हालत खराब है. बसें जर्जर अवस्था में भी है. सीटें टूटी हैं तो कहीं पार्ट्स हिलते रहते हैं. कंडक्टरों ने बताया कि कभी-कभी रास्ते में बसों में खराबी आ जाती है. हालांकि समस्याएं छोटी आती है, लेकिन बसों की स्थिति ठीक करने की जरूरत महसूस होती है. यात्रियों को इससे भारी परेशानी उठानी पड़ती है. बसों की स्थिति खराब होने के कारण इन बसों पर सफर करने से भी दूसरे जिलों के यात्री संकोच करते हैं.
लॉकडाउन में मिला था मौका
बसों को अच्छी तरह मेंटेनेंस करने के लिए लॉकडाउन में एसटी मैनेजमेंट को काफी वक्त मिला था. लेकिन लॉकडाउन के बाद भी काफी बसों की स्थिति पहले जैसे ही हैं. वहीं इस बार कई बसों की सीटें बदली गई है. नए सीट कवर लगाए गए हैं. जिससे यात्रियों को बैठने में भी काफी आरामदायक महसूस हो रहा है. आम दिनों में ट्रैफिक के दवाब के कारण बसों को सही तरीके से मेंटेनेंस करने में समस्याएं आती है, लेकिन लॉकडाउन के वक्त अगर मैनेजमेंट चाहता तो ज्यादा खराब बसों को आसानी से ठीक कर सकता था.