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नागपुर. कोरोना के कारण लगे लाकडाउन ने हर व्यापार, हर व्यवसाय और कामधंधे की कमर तोड़ दी है. इनमें हर दिन कमाने, हर दिन खाने वालों के हाल बेहद खराब है. भले ही केन्द्र सरकार ने अनलॉक 1 की घोषणा कर दी हो लेकिन अब भी सार्वजनिक परिवहन पर लाकडाउन लगाकर रखा गया है. इससे सबसे अधिक नुकसान आटोचालकों का हो रहा है. हर दिन की कमाई पर अपना गुजरा करने वाले राज्य के 15 लाख आटोचालकों को पूरी भुखे मरने की नौबत आ गई है. हैरानी की बात है कि सरकार द्वारा भी इन्हें कोई सहायता मिली. अब तो आटोचालकों और उनके परिवारों ने स्वयं को बेसहारा समझाना शुरू कर दिया है.

… तो क्यों ना लगे मजमा
शहर में बर्डी हो या झांसी रानी चौक, या सदर या अन्य कोई भाग, अब आटोचालकों का मजमा नहीं दिखता. लेकिन स्टेशन पर इनका जमावड़ा देखते ही बन रहा है जहां दिनभर में 10 ट्रेनों के लिए 200 से अधिक आटोचालक अपने आटोरिक्शा के साथ खड़े रहते है. इन ट्रेनों से बमुश्किल 10 सवारी उतरती है लेकिन उनके लिए सभी आटोचालक भिड़ जाते हैं. जमावडे पर आटोचालकों एकस्वर में कहते हैं कि ऐसा क्यों नहीं होगा. आज हमारे घर में चुल्हा जलना मुश्किल हो गया है. पिछले 3 महीनों से एक पैसे की कमाई नहीं हुई है. सारी जमा पूंजी खाने और रहने में खर्च हो गई है. 10 सवारी में एक भी यदि किसी आटोचालक की किस्मत चमकने जैसी स्थिति होती है. 

सरकार से नाराज
आटोचालकों का कहना है कि अब परिवार पालना कठिन हो गया है. अब तो भुखे मरने की नौबत है. सरकार द्वारा समाज के हर वर्ग को सहायता दी जा रही है, पैकेज दिये गये लेकिनक आटोचालकों को बेसहारा छोड़ दिया गया. बच्चों के स्कूल की फीस, आटो लोन की किश्तें, घर किराया, बिजली बिल, पानी बिल, टूटा-फूटा घर तो भी मनपा में दिया जाने वाले टैक्स, यह सब कहां से भर पायेंगे. राज्य सरकार को कई बार अपनी परेशानी बताई लेकिन हमें कोई सहायता नहीं मिली.

किसान आत्महत्या जैसा माहौल हो रहा तैयार
विदर्भ आटोरिक्शा चालक-मालक फेडरेशन के अध्यक्ष विलास भालेकर ने बताया कि सरकार आटोचालकों के लिए किसान आत्महत्या जैसा माहौल तैयार कर रही है. हमने 25 मार्च से 6 मई तक मुख्यमंत्री उद्धव  ठाकरे से लेकर केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी तक गुहार लगा दी लेकिन किसी ने हमें सहायता तो दूर आश्वासन तक नहीं दिया.