Quarantine center in hostel, where to read students, demand for handing over to students before August
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  • किसी ने सराहना तो किसी ने गिनाई खामियां

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नागपुर. केंद्र सरकार ने देश के लिए नई शिक्षा नीति की घोषणा कर दी है. इसके साथ ही शिक्षा नीति को लेकर अलग-अलग राजनीतिक दलों सहित शिक्षाविदों की प्रतिक्रिया भी आने लगी है. एक तबका शिक्षा नीति को बेहतर भविष्य की तस्वीर मान रहा है तो वहीं दूसरा पक्ष इसमें तमाम तरह की खामियां भी निकाल रहा है. उक्त नीति को इसी सत्र से लागू कर दिया गया है. यानी इस सत्र में पहली कक्षा में पढ़ने वाला बच्चा इसी नीति के तहत भविष्य में अपनी शिक्षा पूर्ण करेगा.

महाविद्यालयों की स्वातत्ता पर जोर: माहेश्वरी
शिक्षा नीति के बारे में अपनी प्रतिक्रिया देते हुए जेडी अभियांत्रिकी महाविद्यालय के निदेशक प्रा प्रशांत माहेश्वरी ने बताया कि इस नीति के कारण शैक्षणिक व्यवस्था अब इनपुट-आऊटपुट की बजाय इनपुट-आऊटकम पर आधारित होगी. गुणवत्ता आधारित व्यवस्था को शिक्षा में प्राथमिकता मिलेगी. अब पाठ्यक्रम शिक्षक केंद्रीत न होकर छात्र केंद्रीत होगा. छात्रों को अपनी रुचि के अनुसार विषय व पाठ्यक्रम चुनने की स्वतंत्रता होगी. उच्च शिक्षा के नामांकित, तारांकित, स्वायत्त विद्यालय व विश्वविद्यालय के प्राध्यापकों द्वारा आन लाइन शिक्षक लेने की छूट मिल सकेगी. इस नीति में अधिकाधिक महाविद्यालयों को स्वायत्ता देने के लिए प्रावधान किया गया है, जो की योग्य है. इस नीति के प्रभावी होने के साथ ही छात्रों की सोचने की क्षमता, जान का स्तर व बुद्धिमत्ता सूचकांक में वृद्धि होगी. इससे रोजगार पाने की योग्यता का भी विकास होगा. 

एंट्री और एग्जिट स्किम अच्छी: प्रा उमरे
केडीके कालेज के प्राध्यापक महेंद्र उमरे मानते हैं कि नई शिक्षा नीति का इंतजार वर्षों से किया जा रहा था.  सरकार का यह एक अच्छा कदम है. इसमें जीडीपी का 6 फीसदी शिक्षा पर खर्च करने की बात कही गई है. लेकिन सरकार ने जो ग्रॉस एनरोलमेंट रेशियो (जीईआर) का 50 फीसदी टार्गेट रखा है उसके लिए नाकाफी लगता है. वैसे भी भारत दुनिया में वर्ष 2018-19 में शिक्षा के खर्च में जीडीपी के 3 फीसदी के साथ 62 वें  रॅंकिंग पर था. इसी वर्ष भारत का जीईआर 26.3 फीसदी, जिसके तुलना में अन्य  देश जैसे अमेरिका 88 फीसदी, जर्मनी 70 फीसदी, चाईना 51 फीसदी, इंग्लैंड 60 फीसदी आदि का था. साथ ही उसपर खर्च भी उनका ज्यादा था. यह देखना होगा कि 50 फीसदी जीईआर कैसे अचिव किया जा सकेगा. एंट्री और एग्जिट स्किम अच्छी है, लेकिन मेजर और माईनर विषय को कैसे लागू किया जायेगा. इसका कोई रोडमैप नहीं दिया गया है जो कि आने वाले समय में आसान नहीं होगा. 

निजीकरण का मार्ग खोलने वाली नीति : प्रा ढगे
नूटा सहित विवि की राजनीति से लंबे समय तक जुड़े रहने वाले प्रा अनिल ढगे मानते हैं कि नई शिक्षा नीति जनमत के संग्रहित विचारों पर आधारित नहीं है, न ही यह इसके सभी पक्षों के विचारों को प्रतिबिम्बित करती है. नई शिक्षा नीति के माध्यम से पूरी शिक्षा व्यवस्था के मुख्य क्षेत्रों के निजीकरण के लिए पूरे-पूरे अवसर तैयार हो जाएंगे. लोकतांत्रिक, सैकुलर, वैज्ञानिक और समग्र शिक्षा के लिए संघर्ष करना पड़ेगा. इस नई शिक्षा नीति से बाजार, कॉरपोरेट और कट्टरपंथी ताकतें परिस्थिति का फायदा उठाएंगी और शिक्षा व्यवस्था के संवैधानिक ढांचे को खत्म कर देंगी. इस शिक्षा नीति में ऑनलाइन पढ़ाई और परीक्षा पर जोर दिया गया है जिससे शिक्षा का व्यवसायीकरण बढ़ेगा और देश के विद्यार्थियों की बहुत बड़ी तादाद इक्कीसवी सदी की ज्ञान क्रांति से वंचित हो जाएगी. इस शिक्षा नीति में क्वालिटी एजुकेशन को लेकर जो कुछ बातें कही गई हैं उसमें करना कुछ भी नहीं है. 

मल्टीनेशनल कंपनियों को फायदा: प्रा डेकाटे
विवि के सीनेट सदस्य प्रा प्रशांत डेकाटे मानते हैं कि संविधान द्वारा दिया गया शिक्षा का अधिकार इस नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति से खतरे में आ गया है. साथ ही आरक्षण पर यह कुठाराघात है. नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति से शिक्षा का बाजारीकरण और निजीकरण करने का मार्ग खुलेगा जिसमें पिछड़े वर्ग के छात्रों की शिक्षा में बाधा आएगी. मूल्य शिक्षा के नाम पर शिक्षा का भगवाकरण करने का यह छिपा हुआ एजेंडा है. राष्ट्रीय शिक्षा नीति का यह 484 पन्नों का मसूदा कॉरपोरेटाइजेशन और कंजरवेटिव नीति की बात करता है. मल्टीनेशनल कंपनी को यह फायदा फायदा पहुंचने वाली नीति है. वहीं परंपरागत शिक्षा प्रणाली की हिमायत और मूल्य व्यवस्था से शिक्षा देने की बात करने वाली यह नीति क्या 21वीं सदी में सफल होगी. यह नीति बहुजन समाज के खिलाफ बड़ा षड्यंत्र है.  प्राइवेट पब्लिक पार्टनरशिप के नाम पर यह सभी बड़े औद्योगिक घराने को इस क्षेत्र में आने का मौका मिलेगी  और 2009 का आरटीई एक्ट भी धीरे-धीरे खत्म हो जाएगा.