Nagpur High Court
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    • 3.47 करोड़ का था प्रस्ताव
    • 3.04 करोड़ का हो चुका भुगतान

    नागपुर. शहर में गत समय हुई भारी बारिश के चलते हाई कोर्ट के कामकाज पर भी संभवत: पहली बार इसका असर देखा गया. जिसमें हाई कोर्ट की छत टपकने का मामला उजागर होते ही अदालत ने इसे गंभीरता से लेते हुए राज्य सरकार को उचित कार्यवाही करने के निर्देश भी जारी कर दिए थे.

    हाई कोर्ट की नाराजगी का आलम यह रहा कि आनन-फानन में हरकत में आई सरकार की ओर से न केवल 3,47,43,600 रु. में से 3,04,59,900 रु. का भुगतान कर दिया. बल्कि बची निधि के लिए बजट में प्रावधान करने का प्रस्ताव भी तैयार कर लिया.

    इस संदर्भ में फाइल वित्त विभाग को भेजे जाने की जानकारी बुधवार को हाई कोर्ट में सरकारी वकील ने दी. साथ ही उचित जानकारी प्रेषित करने के लिए समय मांगे जाने के बाद न्यायाधीश सुनील शुक्रे और न्यायाधीश अनिल किल्लोर ने तीन सप्ताह का समय देकर सुनवाई स्थगित कर दी. याचिकाकर्ता की ओर से अधि. सुधीर पुराणिक और सरकार की ओर से सरकारी वकील केतकी जोशी ने पैरवी की.

    42.83 लाख बकाया

    सरकारी पक्ष की ओर से बताया गया कि बजट में इस निधि को समाहित करने तथा निधि का भुगतान सुनिश्चित करने के लिए सरकार की ओर से पूरक मांगों में इसका प्रावधान किया जा रहा है. जिसकी फाइल तैयार हो चुकी है. संबंधित प्राधिकरण की ओर से प्रशासकीय मंजूरी मिलते ही ठेकेदार को भुगतान की प्रक्रिया पूरी की जाएगी. बुधवार को सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से बताया गया कि निधि का आवंटन किया जा चुका है केवल 42 लाख रु. का बकाया है. गत सुनवाई के दौरान अदालत ने ठेकेदार का भुगतान सुनिश्चित करने के आदेश संबंधित विभागों के सचिव को दिए थे. 

    ठेकेदार ने रोक दिया था काम

    याचिका पर गत सुनवाई के दौरान अधि. सुधीर पुराणिक ने कहा था कि बारिश के कुछ दिन पहले तक सुधार कार्य चल रहा था. अब तक किए गए कार्यों का भुगतान नहीं होने के कारण संभवत: ठेकेदार ने कार्य रोक दिया है. जबकि सुधार कार्य को मंजूरी दी गई थी. ठेकेदार की ओर से अब तक अपनी ओर से करोड़ों रुपए खर्च कर लिए हैं. अधि.

    पुराणिक ने कहा कि इसके अलावा इलेक्ट्रिकल्स और अन्य सिविल वर्क का काम भी पूरा किया जा चुका है. लेकिन ठेकेदार को निधि उपलब्ध नहीं की गई है. राज्य सरकार की ओर से हाई कोर्ट में चल रहे कार्यों को तवज्जों नहीं दिए जाने की शिकायतें मिल रही है. यहीं कारण है कि जब इन कार्यों के लिए निधि का भुगतान करना होता है, तो राज्य सरकार हाथ खिंच लेती है.