Abhijeet Wanjari and Sandeep Joshi

Loading

नागपुर. नागपुर संभाग पदवीधर चुनाव में का जो चौंकाने वाला परिणाम आया है,उससे भाजपा खेमे में मायूसी छा गई हैं. दरअसल उनका अब तक यह अविजित किला ढह गया है. ऐसे परिणाम की कल्पना भाजपा का आम कार्यकर्ता भी नहीं कर रहा था क्योंकि वह भी इसी मुगालते में था कि दशकों से पार्टी का कब्जा रहा है तो इस बार भी बना ही रहेगा. आम कार्यकर्ता से लेकर भाजपा के पदाधिकारी भी शायद इसी मुगालते में रह गए और बाजी मार ली कांग्रेस के अभिजीत वंजारी ने. वे महाविकास आघाड़ी के उम्मीदवार के रूप में भाजपा के इस अविजित किले पर जबरदस्त सेंध लगाने में कामयाब हो गये. इस चुनाव में जैसे ही भाजपा ने संदीप जोशी को उम्मीदवारी दी, तभी से खुद पार्टी में ही अंदरूनी असंतोष झलकने लगा था. यह असंतोष विधान परिषद के सदस्य अनिल सोले की टिकट अकारण काट देने से उपजी थीं और कुछ ने इसे ब्राम्हण और ओबीसी का मुद्दा बना लिया था. कुछ फडणवीस और गडकरी गुट में इसे बांटकर देखने लगे थे.

फडणवीस की हार

संदीप जोशी पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस के बेहद करीबी मित्र हैं. समझा जा रहा है कि उन्होंने ही गडकरी खेमे के अनिल सोले की टिकट कटवाकर जोशी को उम्मीदवारी दिलाई थी. यह चुनाव भाजपा के साथ ही खासतौर पर फडणवीस के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया था. उन्होंने अपनी पूरी ताकत भी प्रचार में झोंकी. अब जोशी की हार को देवेन्द्र की हार बताया जा रहा है. चर्चा तो यह भी है कि जोशी को सोले की टिकट काटकर देने के चलते गडकरी गुट में नाराजी थी और गुट ने जोशी के लिए काम नहीं किया. हालांकि खुद गडकरी ने जोशी को विजयी बनाने के लिए प्रचार किया. बताते चलें कि देवेन्द्र फडणवीस के पिता गंगाधरराव फडणवीस से लेकर केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी भी नागपुर पदवीधर सीट से ही चुनाव जीतकर उच्च सदन में पहुंचते थे. गंगाधरराव फडणवीस 2 बार और गडकरी 3 बार इस सीट से विधान परिषद में पहुंचे. उसके बाद अनिल सोले इस सीट से भाजपा के खाते से सदन पहुंचे थे. उनके बाद चुनाव में भाजपा ने नागपुर के मेयर संदीप जोशी को मैदान में उतारा. लग तो यह रहा था कि जोशी भाजपा की इस सीट को भाजपा के कब्जे में बरकरार रखने में सफल होंगे, लेकिन मामला उलटा पड़ गया. 

अति आत्मविश्वास पड़ी भारी

दरअसल, अब तक इस सीट पर कांग्रेस व अन्य पार्टियों ने कभी दम ही नहीं लगाया था. कांग्रेस ने कभी अपने उम्मीदवार ही नहीं उतारे, वह मैदान में उतरे किसी समविचारी उम्मीदवार को समर्थन देती रही थी. कांग्रेस की यह उदासीनता भी इसे भाजपा का गढ़ बनाये रखने का कारण रहा. अब जब राज्य में भाजपा को सत्ता से बाहर करने लिए शिवसेना, कांग्रेस व राकां ने मिलकर महाविकास आघाड़ी बनाई तो इस पदवीधर चुनाव में वंजारी के लिए तीनों पार्टी के नेताओं, पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं ने अपनी एकजुटता की ताकत दिखा दी. वहीं भाजपा को यह आत्मविश्वास था कि यह सीट तो उनकी ही है. अब भाजपा के कार्यकर्ताओं में ही यह चर्चा चल रही है कि यही अति आत्मविश्वास भारी पड़ गया. 

मुंढे फैक्टर ले डूबा

इस चुनाव में ओबीसी कार्ड जमकर चलने की चर्चा है. मेयर जोशी के खिलाफ ओबीसी में गुस्सा उस वक्त से अधिक नजर आ रहा था जब ईमानदार आईएएस अधिकारी मनपा आयुक्त तुकाराम मुंढे को उन्होंने कई तरह से परेशान किया और नागपुर से हटवा दिया. मुंढे जब तक सिटी में थे उन्होंने कोरोना के कहर को नियंत्रित रखा हुआ था और जैसे ही उन्हें यहां से हटाया गया सिटी में कोरोना अनियंत्रित हो गई थी. जोशी के खिलाफ उस दौरान सोशल मीडिया में ओबीसी समाज में भारी नाराजगी दिख रही थी. जोशी की हार के बाद भाजपा के जमीन से जुड़े कार्यकर्ताओं में निराशा के साथ ही अपने सीनियर नेताओं के प्रति रोष देखा जा रहा है. सोशल मीडिया में तो कार्यकर्ता अपनी भड़ास निकाल रहे हैं. एक ने तो कहा है कि मुंढे को हटाया तो ‘इनसे’ नागपुर संभाला नहीं गया, डर के मारे ये खुद क्वारंटाइन हो गए. 

पार्टी विरोध की हार नहीं

भाजपा के अधिकतर कार्यकर्ता इसे पार्टी विरोध की जगह व्यक्तिगत विरोध की हार बता रहे हैं. उनका कहना है कि सिर्फ फोटो खींचकर व्हाट्सएप या फेसबुक में पोस्ट कर चुनाव नहीं जीता जा सकता. या फिर सिर्फ पीएम मोदी के नाम व काम गिनवाकर भी चुनाव नहीं जीत सकते, यह ध्यान रखना चाहिए. सोशल मीडिया में तो कुछ कार्यकर्ताओं ने भाजपा के सीनियरों पर गुटबाजी के आरोप भी लगाए हैं और लिखा है कि हम (कार्यकर्ता) इतनी मेहनत करते हैं और फिर हार मिलती है तो बुरा लगता है. दरअसल, हमेशा ही इस सीट को अपने कब्जे में रखने वाली भाजपा ने इस बार भी चुनाव को एक खेल की तरह लिया. एक कार्यकर्ता ने कहा कि, ऐसा लग रहा था कि हम सब चुनाव-चुनाव खेल रहे थे. कोई सीरियस तो दिखा ही नहीं. हर कोई यही कह रहा था कि हम तो जीत ही जाएंगे, मतलब अति आत्मविश्वास. इस हार से भाजपा कार्यकर्ताओं में निराशा दिख रही है. उनका कहना है कि अन्य किसी चुनाव में हार जाते तो गम नहीं था लेकिन वह सीट जो भाजपा की ही थी वह छिन गई. कुछ ने तो गुटबाजी को ही पश्चिम नागपुर विधानसभा सीट छिन जाने का कारण बताया.