Get this evening from Maharashtra Home Minister Satej Patil at 5:00 pm, on Navbharat's Facebook page

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नागपुर: कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए पुरे देश में  लगा हुआ हैं. कोरोना के इस काल में सरकारों के सामने कई प्रकार की समस्या खड़ी हो गई हैं. जिसका निजात करने और हल करने के लिए कई प्रकार के कदम उठाए जारहे हैं. इसी को लेकर नवभारत ने ‘e-चर्चा’ कार्यक्रम का आयोजन किया हैं. जिसमे ‘सरकार के सामने आई चुनौती और उसको किस तरह काम करना हैं’ विषय पर महाराष्ट्र के गृहराज्य मंत्री (शहरी) सतेज पाटिल नवभारत के फेसबुक पेज (facebook.com/enavabharat) पर शाम 5:00 बजे ऑनलाइन आकर चर्चा करेंगे। 

महाराष्ट्र में सतेज पाटिल वो नाम है जिसने अपने दम पर राजनीति और सामाजिक क्षेत्र में एक अलग मुकाम हासिल किया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता पाटिल का जन्म 12 अप्रैल 1972 को महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले में हुआ. उनके पिता डी. वाई. पाटिल राज्य के मशहूर शिक्षावादी और बिहार के पूर्व राज्यपाल रह चुके हैं. सतेज ने कोल्हापुर के शिवजी विश्विद्यालय से अपनी पढाई पूरी की हैं. 

सतेज उर्फ़ बंटी ने विश्वविद्यालय के छात्र संघ का चुनाव जीत कर अपना राजनीतिक जीवन शुरू किया। सन 1992-93 में शिवजी विश्वविद्यालय की एडल्ट एजुकेशन एंड कंटिन्यूइंग एजुकेशन के लिए समिति में चुनाव जीत कर सलाहकार बने. पाटिल ने 2004 विधानसभा चुनाव में कोल्हापुर जिले के करवीर सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा और 42 हज़ार से ज़्यादा वोटों से जीत कर विधायक निर्वाचित हुए. 2009 में कोल्हापुर दक्षिण सीट से कांग्रेस की टिकट पर चुनाव जीत कर फिर से विधानसभा पहुंचे और 2010-2014 तक तत्कालीन कांग्रेस- राष्ट्रवादी कांग्रेस गठबंधन सरकार में गृह राज्य मंत्री (शहरी और ग्रामीण), ग्रामीण विकास, खाद्य और औषधि प्रशासन मंत्री रहे.  लेकिन 2014 के विधानसभा चुनाव में उन्हें भाजपा के अमल महाडिक के हाथों हार का मुँह देखना पड़ा. वहीं 2019 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद राज्य में बनी महाराष्ट्र महाविकास अघाड़ी सरकार में पुनः गृह राज्य मंत्री (शहरी क्षेत्र) का प्रभार संभाला. 

सतेज राजनीति के साथ-साथ सामाजिक कार्यो के लिए भी जाने जाते हैं. 2007 में कोल्हापुर जिले के ग्रामीण क्षेत्रों के अपने दौरे के दौरान उन्होंने देखा की जिले के अंदर ऐसे कई छात्र थे जो नोटबुक का खर्च नहीं उठा सकते थे और इस प्रकार वे अपनी शिक्षा में बढ़ती प्रतिस्पर्धा का सामना करने में असमर्थ थे। जिसको देखते हुए उन्होंने लोगों से जन्मदिन की बधाई के समय फूल का बुके देने के जगह नोटबुक का दान देने की अपील किया. जिसके बाद से अब तक 65 लाख से अधिक नोटबुक एकत्र की जा चुकी हैं और 14 लाख से अधिक 69 हजार ज़रूरतमंद छात्रों को इस पहल से लाभ पहुंचाया गया हैं.