नागपुर. कोरोन के लंबे संकटकाल के बाद अब बरिश के कारण शहर भर में कई तरह की परेशानियों के बावजूद आयुक्त की ओर से लगाए गए आर्थिक निर्बंध, वहीं दूसरी ओर बारिश के पूर्व उपाय करने में असमर्थता के बीच ही अब आम सभा के माध्यम से इन मुद्दों को सुलझाने के लिए भले ही 20 जून को आम सभा बुलाई गई, किंतु इस पर आयुक्त मुंढे का ग्रहण लगते ही महपौर के मुखर होने के बाद आयुक्त आम सभा क्यों नहीं लेना चाहते, इसे लेकर जनप्रतिनिधियों की ओर से भी आक्रोश जताया जा रहा है.
महापौर संदीप जोशी ने आयुक्त पर निशाना साधते हुए कहा कि जनवरी में पद संभालने के बाद फरवरी में तो सहमति से आम सभा टाल दी गई थी, किंतु उसके बाद से आयुक्त सभा लेने से क्यों कतरा रहे, यह समझ से परे हैं. हर समय कोई ना कोई कारण आगे कर सभा लेने से बचने का काम आयुक्त की ओर से किया जा रहा है.
‘रणछोडदास’ क्यों बन रहे तुकाराम : दयाशंकर
आयुक्त के फैसले पर तीखी टिप्पणी करते हुए भाजपा के वरिष्ठ पार्षद दयाशंकर तिवारी ने कहा कि यदि कोई व्यक्ति गलती ना करें, तो किसी का भी सामना करना का साहस उसमें होता है. किंतु यदि कोई गलती करें, तो उसे आत्मग्लानी होती है. जिससे वह सामना करने से डरता है. पुणें में 11 हजार कोरोना पाजिटिव होने के बावजूद वहां पर सभा ली जा रही है. लेकिन नागपुर शहर में केवल 1 हजार पाजिटिव होने का हवाला देकर सभा को रद्द करने का फैसला लिया जा रहा है. कहीं न कहीं यह पलायन की भूमिका दिखाई दे रही है. आश्चर्यजनक यह है कि रोखठोक की भूमिका उजागर करनेवाले तुकाराम, ‘रणछोडदास’ क्यों बन रहे, यह समझ में नहीं आ रहा है.
सभा लेने की हमारी तैयारी : प्रफुल्ल
कांग्रेस के वरिष्ठ पार्षद प्रफुल्ल गुड्धे ने आयुक्त की कार्यप्रणाली पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि महानगर पालिकाओँ में नियतकालिक बैठकें और सभाएं लेने के संदर्भ में सुस्पष्ट जीआर जारी किया है. जिसके अनुसार पुणे, पिंपरी चिचवड, नासिक और अन्य महानगर पालिकाओं में सभाओं का आयोजन हो रहा है. यहां तक कि सोशल डिस्टेन्सिंग का पालन करने के लिए भट सभागृह में सभा ली जा रही है. कानूनन प्रत्येक माह मनपा को आम सभा लेना जरूरी भी है. कोरोना के चलते लाकडाऊन के निर्देशों में सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक आयोजनों पर पाबंदी है. किंतु मनपा की सभा इन श्रेणियों में नहीं आती है. पूरी तरह संवैधानिक इकाई होने से सभी पहलुओं पर चर्चा के बाद सभा लेने का निर्णय सर्वदलिय बैठक में लिया गया. भले ही आयुक्त ने आपत्ति जताई हो, लेकिन सभा लेने की हमारी तैयारी है.
तो क्या अकेले आयुक्त समझते है जनहित : धर्मपाल
विधि समिति सभापति धर्मपाल मेश्राम ने आयुक्त पर निशाना साधते हुए कहा कि राज्य सरकार ने महानगर पालिकाओं को अपनी नियतकालिक सभाएं और बैठकें लेने का अधिकार प्रदान किया है. कानून के अनुसार महानगर पालिका का अर्थ चूने गए जनप्रतिनिधियों की सभा से हैं. जिससे चूने गए जनप्रतिनिधियों के प्रतिनिधि गुटनेताओं की सहमति से सभा बुलाने का निर्णय लिया गया. लोगों को सेवा और सुविधाओं देने में आ रही परेशानियों को सदन के माध्यम से हल करने के लिए ही सभा बुलाई जा रही है. लेकिन आयुक्त इसमें रोड़ा अटका रहे हैं. ऐसे में क्या अकेले आयुक्त ही जनहित समझते है?. इस तरह की सोच उजागर की जा रही है.