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  • विभिन्न निगमों के करीब 5,000 अधिकारी-कर्मचारी होंगे शामिल

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नागपुर. राज्य के विभिन्न निगमों की कृति समिति द्वारा 7वें वेतन आयोग के लिए मुख्यमंत्री कार्यालय तक दौड़ लगाई गई थी लेकिन 2 वर्ष बीतने के बाद भी अभी तक हजारों कर्मचारी इससे वंचित हैं. ऐसे में राज्य के महाविद्युत महामंडल, वन विकास महामंडल, वखार महामंडल, पश्चिम महाराष्ट्र विकास महामंडल व मार्केटिंग फेडरेशन महामंडलों ने एकत्र आकर हड़ताल की तैयारी शुरू कर दी है. 16 जून से शुरू होने वाली इस हड़ताल में राज्य में करीब 4,000 से 5,000 कर्मचारी और अधिकारी शामिल होंगे. यह जानकारी महाराष्ट्र राज्य वन विकास महामंडल के केन्द्रीय अध्यक्ष अजय पाटिल ने दी. उन्होंने कहा कि 16 जून से पूरे राज्य में काम बंद कर दिया जायेगा.

ध्यानाकर्षण आंदोलन शुरू

पाटिल ने बताया कि 15 जून तक कर्मचारी और अधिकारी अपने काला फीता बांधकर ड्यूटी करते हुए ध्यानाकर्षण आंदोलन जारी रखा है. इस तारीख तक यदि राज्य सरकार ने 7वां वेतन आयोग लागू नहीं किया तो अगले ही दिन से कामबंद आंदोलन शुरू हो जायेगा. उन्होंने कहा कि राज्य के लगभग सभी महामंडल इस आंदोलन में सहभागी हो रहे हैं. ऐसे में खरीफ की फसल के समय महाबीज और वखार महामंडलों द्वारा बीज के वितरण को लेकर अनाज खरीदी पर बुरा असर पड़ेगा. वहीं राशन का भी वितरण नहीं हो सकेगा. कुछ ऐसे ही हाल वन विकास महामंडल, मार्केटिंग फेडरेशन आदि की हड़ताल के चलते भी होगा. इससे होने वाले नुकसान के लिए महामंडल नहीं बल्कि सरकार जिम्मेदार होगी. 

सिर्फ घोषणा कर थमाया झुनझुना

पाटिल ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार ने मार्च 2020 के बजट अधिवेशन में घोषणा की थी कि राज्य के सभी सार्वजनिक उपक्रमों के कर्मचारियों के लिए 7वां आयोग लागू किया जायेगा लेकिन अभी तक इस घोषणा पर अमल नहीं किया गया. यही वजह है कि अब कर्मचारियों को हड़ताल का रास्ता अपनाना पड़ रहा है. उन्होंने कहा कि 24 मार्च 2021 को मंत्रिमंडल के सामने सार्वजनिक उपक्रमों के कर्मचारियों को 7वें वेतन आयोग के लिए प्रस्ताव पेश किया जा चुका है लेकिन अभी तक मंत्रिमंडल ने मंजूरी नहीं दी. उन्होंने कहा कि हम केवल मंजूरी मांग रहे हैं. इससे सरकारी तिजोरी पर कोई भार नहीं पड़ेगा. कृति समिति में शामिल महामंडलों के संचालक मंडल ने प्रस्ताव पारित कर कर्मचारियों को 7वां वेतन आयोग देने के लिए बजट में प्रावधान किया हुआ है. उन्होंने कहा कि अब हमारे पास कामबंद के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा है.