11 lakh orders for not providing 11 years electricity connection
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    सिन्नर. जवाहर योजना के तहत कुएं (Well) की खुदाई के लिए 60,000 रुपए का अनुदान मंजूर किया गया था, जिसके लिए बार-बार अनुरोध के बावजूद, बिजली वितरण कंपनी (Power Distribution Company) ने 11 वर्षों तक किसानों को बिजली की आपूर्ति प्रदान नहीं की है। इन दिनों में कनेक्शन ना होते हुए भी किसान (Farmer) ने अनमीटर्ड बिल (Unmetered Bill) भरे।

    बिजली कनेक्शन ना दिए जाने पर संबंधित किसानों को प्रति वर्ष एक लाख रुपए के हिसाब से 11 लाख रुपए और बिजली सप्लाई की मांग किए जाने के दिन 30 अगस्त 2004 से 11 लाख रुपए की रकम हाथ आने तक 9 प्रतिशत के हिसाब से हर साल का ब्याज अदा किए जाने व किसानों को हुई शारीरिक, मानसिक परेशानी के लिए 50 हजार रुपए व शिकायत और अपील के खर्च के लिए 20 हजार रुपए अदा किए जाने का आदेश नाशिक जिला ग्राहक तकरार निवारण आयोग ने महावितरण कंपनी को दिया है।

    सामने आई बिजली वितरण कंपनी की धांधली

    ज्ञात हो कि यह मामला सिन्नर तहसील के नांदुर शिंगोटे के किसान महेंद्र हरी रणशेवरे के साथ हुआ है। रणशेवरे ने महाराष्ट्र राज्य विद्युत वितरण कंपनी के उपअभियंता, सिन्नर उपविभाग, कंपनी के ग्रामीण मंडल कार्यालय के नोडल अधिकारी और विभागीय कार्यालय के कार्यकारी इंजीनियर के विरुद्ध जिला ग्राहक तकरार आयोग में शिकायत की थी। सुनवाई के बाद आयोग के अध्यक्ष मिलिंद सोनवणे, सदस्य प्रेरणा कालुंखे-कुलकर्णी और सचिन शिंपी ने फैसला दिया। इसके कारण बिजली वितरण कंपनी की धांधली एक बार फिर से सामने आई है। शिकायतकर्ता किसान की शिकायत के अनुसार, उसके पास गौंडे (सिन्नर) में कृषि भूमि है और 30 सितंबर 2003 को उसका 60000 रुपए का अनुदान मंजूर किया गया था। खुदाई के लिए किसान को बिजली की आवश्यकता थी, इसलिए उन्होंने 30 अगस्त 2004 और 13 अप्रैल 2005 को महाराष्ट्र राज्य बिजली वितरण कंपनी से आपूर्ति की मांग की, लेकिन कनेक्शन न होने के कारण कुएं की खुदाई अधूरी रह गई। योजना अनुदान के नियम और शर्तों के अनुसार, किसान रणशेवरे के भूमिअभिलेख पर उसका नाम चढ़ गया था। इसके बाद, 19 नवंबर 2010 को रणशेवरे ने डिमांड नोट भर कर फिर से बिजली की आपूर्ति की मांग की। जिला उपभोक्ता आयोग के पास शिकायत दर्ज होने तक किसान को कोई बिजली आपूर्ति नहीं की गई।

    बिजली की आपूर्ति प्रदान नहीं की गई थी

    गौरतलब है कि 15 नवंबर 2013 को 11660 रुपए और 31 जुलाई 2014 को 19350 रुपए का भुगतान भी रणशेवरे ने किया, जबकि बिजली की आपूर्ति प्रदान नहीं की गई थी। जिला उपभोक्ता आयोग ने भी इस पर संज्ञान लिया है और संबंधित किसान को 11 साल का मुआवजा देने का आदेश दिया है। इसमें चौंकाने वाला तथ्य शामिल है कि किसानों को कृषि पंपों को बिना बिल के भुगतान करना पड़ता है और वर्षों तक बिजली कनेक्शन नहीं मिल पाता है।