धुलिया. कोरोना की वजह से लागू लॉकडाउन में अब तक धुलिया में 27 किसान आत्महत्या कर चुके हैं. इनमें से 5 मामलों में प्रशासन ने मुआवजा देने की घोषणा की है, जबकि 10 प्रस्तावों को खारिज कर दिया गया है. शेष 12 प्रकरण सरकारी मेजों पर निर्णय के इंतजार में लंबित पड़े हैं.
सूत्रों के मुताबिक जब से कोरोना की व्यापकता बढ़ी है, अर्थात मार्च के महीने में धुलिया जिले में आधा दर्जन किसानों ने खुदकुशी की. उनमें से दो मामलों में पीड़ित परिवारों को जिलाधिकारी कार्यालय ने मुआवजा देने की घोषणा की.
3 प्रस्ताव निरस्त किए गए
वहीं, 3 प्रस्ताव निरस्त किए गए और एक मामले की फिर से जांच की जा रही है. दूसरी ओर, अप्रैल के महीने में किसान आत्महत्या का एक मामला उजागर हुआ. संबंधित परिवार को मुआवजे के लिए पात्र माना गया है. मई के महीने में फिर 6 किसानों ने मौत को गले लगाया. उनमें से दो किसानों के परिवारों को मुआवजे देने की घोषणा के साथ प्रशासन ने 4 प्रकरणों को खारिज कर दिया.
जुलाई माह में 7 किसानों ने दी जान
इसी तरह, जून के महीने में 7 किसानों ने खुदकुशी की. उनमें से केवल एक ही प्रकरण में प्रशासन ने मुआवजा मंजूर किया है. 4 मामले खारिज किए गए और दो प्रस्तावों पर निर्णय होना शेष है. जुलाई की बात करें, तो इस महीने भी जिले में किसान आत्महत्याओं के 7 मामले प्रकाश में आए. पीड़ित परिवारों ने सरकारी मुआवजे की मांग को लेकर प्रस्ताव दाखिल किए हैं. इन सभी पर प्रशासनिक फैसला आना शेष है.
5 को मिला मुआवजा, 12 मामले विचाराधीन
सूत्रों ने बताया कि किसान आत्महत्या निर्मूलन व सहायता समिति की एक बैठक बीते माह जिलाधिकारी कार्यालय में हुई थी. उसी बैठक में उपरोक्त सात प्रस्तावों पर मुआवजा देने का निर्णय लिया गया, साथ ही 5 मामलों की पुनः जांच के निर्देश दिए गए हैं. बताया गया है कि किसान आत्महत्याओं के मामलों की जांच के पश्चात तहसील कार्यालयों के माध्यम से जुड़े प्रस्ताव उप विभागीय अधिकारी ने जिला अधिकारी कार्यालय में दाखिल किए थे. जिन सात मामलों में मुआवजा भुगतान का निर्णय लिया गया, उनमें धुलिया तहसील के 4 और दोंडाईचा से एक प्रस्ताव शामिल है.
पीड़ित परिवारों को मिलती है एक लाख की मदद
किसान आत्महत्या मामलों में जो प्रकरण सरकारी मानदंडों पर खरे पाए जाते हैं, उनमें मृत किसान के परिवारों को शासन की ओर से एक लाख रुपए की आर्थिक मदद मुहैया कराई जाती है. इसके लिए जिला प्रशासन की किसान आत्महत्या निर्मूलन व सहायता समिति के समक्ष प्रस्ताव रखे जाते हैं. यह समिति सम्बंधित मामलों की जांच करती है. किन मामलों में मुआवजा देना अथवा नहीं देना है, इसके निर्णय का अधिकार इसी समिति के पास रहता है. समिति में प्रशासनिक अधिकारियों सहित जनप्रतिनिधि भी शामिल रहते हैं.