नाशिक. कोरोना (Corona) की दूसरी लहर (Second Wave) में कोरोना मरीजों (Corona Patients) का इलाज करने के लिए बनाई नियमावली को नजर अंदाज करते हुए अपनी तिजोरी भरने वाले निजी अस्पतालों को उच्च न्यायालय ने झटका दिया है। महानगरपालिका (Municipal Corporation) के लेखा विभाग (Accounts Department) ने 53 निजी अस्पतालों (Private Hospitals) के बिलों की पूर्ण जांच और दिए गए नोटिस को उच्च न्यायालय ने योग्य बताया है। इसलिए इस कार्यवाई को उच्च न्यायालय में चुनौती देने वाले 8 निजी अस्पतालों की याचिका खारिज कर दी गई है। इसलिए लेखा विभाग के माध्यम से संबंधित कार्यवाई को फिर से तेज किया गया है।
कोरोना की दुसरी लहर कम होने के बाद निजी अस्पतालों के माध्यम से मरीजों की आर्थिक लूट करने की शिकायतों की जांच महानगरपालिका ने शुरू कर दी है। कोरोना के दौरान सरकार ने निजी अस्पताल के 80 प्रतिशत बेड कोरोना मरीजों के लिए आरक्षित रखने के निर्देश दिए थें। इस आरक्षित बेड के मरीजों पर इलाज के लिए सरकारी दर पत्रक भी जारी किया गया था, लेकिन निजी अस्पतालों ने इस दर पत्रक को कूड़े की टोकरी में फेंकते हुए मनमानी पद्धती से बिलों की वसूली कि थी। इस पार्श्वभूमी पर महानगरपालिका के लेखा परीक्षण विभाग ने शहर के दो बड़े कॉर्पोरेट अस्पताल सहित कुल 53 निजी अस्पतालों को नोटिस दिए।
मार्च से मई महिने में अस्पताल में दाखिल हुए 80 प्रतिशत और 20 प्रतिशत बेड के सभी मरीजों के बिल, प्रतिदिन होने वाले एडमिशन और डिस्चार्ज की सूची प्रस्तुत करने के आदेश दिए थे। इसके अनुसार 53 से 45 मरीजों ने बिल प्रस्तुत किए, लेकिन विजन अस्पताल, सिद्धिविनायक अस्पताल, सुदर्शन अस्पताल, न्यू मैट्रिक्स अस्पताल, देवलाली सुपर स्पेशालिटी अस्पताल, मानस अस्पताल, विघ्नहर्ता अस्पताल, सुश्रुत अस्पताल आदि 8 बड़े अस्पतालों ने इस नोटिस को उच्च न्यायालय में चुनौती दी। इस याचिका (रिट पिटीशन 2679 /2021) पर न्या. बी. जी. बिस्ट व न्या. सय्यद के सामने अंतिम सुनवाई हुई। इस मामले की पहली सुनवाई में न्यायालय ने अस्पतालों की कार्यवाई पर दो सप्ताह की रोक लगाई थी, लेकिन शुक्रवार कि सुनवाई में न्यायालय ने निजी अस्पतालों की याचिका को खारिज करते हुए लेखा विभाग की कार्यवाई को योग्य बताने से संबंधित अस्पतालों को बड़ा झटका लगा है।
लेखा विभाग के माध्यम जांच तेज
महानगरपालिका के लेखा विभाग ने 53 अस्पतालों को नोटिस देने के बाद 45 अस्पतालों ने बिल प्रस्तुत किए। जबकी, 8 अस्पतालों ने कार्यवाई को चुनौती दी थी। इन अस्पतालों ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने से कार्यवाई रूकी थी, लेकिन न्यायालय ने अब याचिका खारिज करने के बाद लेखा विभाग ने इस अस्पतालों के बिलों की जांच फिर से तेज कर दी है। बिल में अंतर मिलने पर रकम संबंधित मरीज के खाते पर अस्पताल प्रशासन को जमा करनी होगी।