Students out of school-bells did not fare

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अभिभावकों एवं शिक्षकों में खौफ 

कोरोना के बढ़ते प्रकोप से दहशत का माहौल 

साक्री. राज्य सरकार का शिक्षा विभाग शिक्षा संस्थानों को खोलने के जुगाड़ में जुटा है.15 जून से शैक्षिक वर्ष शुरू होगा, ऐसे संकेत जिला शिक्षा अधिकारी की हाल ही में  आयोजित ई बैठक द्वारा मिल रहे हैं.वहीं शिक्षक व छात्रों के अभिभावक असमंजस की स्थिति में हैं.

कोरोना के चलते बंद किए गए शिक्षा संस्थान अब इसके बढ़ते प्रकोप में कैसे शुरू किए जाएंगे, इसको दुविधा बनी हुई है. तीन महीनों से शिक्षा संस्थान लाक डाउन के चलते बंद हैं. राज्य शिक्षा विभाग द्वारा 15 जून से इन्हें खोलने की तैयारी की जा रही है. राज्य शासन के अंतर्गत काम करनेवाले स्कूल व महाविद्यालयों के प्रधानाध्यापकों से शिक्षा विभाग के मंत्री वर्षा गायकवाड़ व शीर्ष अधिकारी ई- बैठकों द्वारा संपर्क कर रहे हैं. उनसे अनेक विषयों पर जानकारी मांगी जा रही है. जिसकी मदद से छात्रों को पढ़ाने के लिए मार्ग निकल सके. 

शिक्षक प्रतिनिधियाें ने जताई नाराजगी

वहीं कुछ शिक्षकों के प्रतिनिधि विधायकों द्वारा बगैर सोचे समझे या बगैर कोई रणनीति के स्कूल खोले जाने के शासन के विचारों पर नाराजगी व्य्क्त की है. कोरोना एक बेहद गतिशील संक्रामक रोग है. जिसके हल के लिए दुनियाभर में प्रयास हो रहे हैं. इसी के चलते स्कूलें बंद हैं. अब ये प्रकोप शिखर की ओर अग्रसर हो रहा है, जून-जुलाई में कोरोना के अपने चरम पर होने के आसार हैं. ऐसे में कोई अभिभावक बच्चों को स्कूल नहीं भेजना चाहेगा. शिक्षक भी शिक्षा विभाग के इस कदम से खौफ में हैं. सोशल डिस्टेंसिंग का अपना अलग मसला है.

मूलभूत सुविधाओं से जूझ रहे विद्यालय

पहले ही बच्चों को बैठने के लिए वर्ग छोटे पड़ रहे हैं, दो की जगह तीन बच्चें बेंचों पर बैठाए जा रहे हैं. अभी बरसात नहीं शुरू हुई, सभी ओर पानी की किल्लत है. कई स्कूलों में शौचालय, टॉयलेट की स्वतंत्र व्यवस्था नहीं, पानी के भंडारण के लिए सुविधा नहीं,ऐसे में स्वच्छता का आग्रह एवं अपेक्षा करना बेमानी सिद्ध होगा. पहले शिक्षक और बाद में बच्चों को किसी भी छूत की बीमारी से बचने हेतु अब प्रशिक्षित कराना होगा. शिक्षा विभाग द्वारा हाल ही में कंप्यूटर व स्मार्ट फोन द्वारा अध्ययन के लिए ऐप द्वारा सामग्री तैयार की गई है और दी भी जा रही है.लेकिन सवाल ये है कि कितने अभिभावक अपने बच्चों को फोन की सुविधा दे पाएंगे या देने में सक्षम हैं. मोटे तौर पर अभी इस व्यवस्था को जांचा नहीं गया है. स्मार्टफोन, कंप्यूटर आदि साधनों के अभाव में और क्या पर्याय होंगे इस पर भी विचार होना शेष है.  शहरों में काम करने वाले कई अभिभावक गांवों की ओर पलायन कर चुके हैं, जिन्हें अभी अपने भविष्य का पता नहीं है. 

कोरोना कार्य से मुक्त कर शिक्षकों को करें क्वारंटाइऩ

कई शहरों में, गांवों-कस्बों में रेड ज़ोन के चलते सभी व्यवहार बंद हैं. तालाबंदी शुरू होने के बाद से शिक्षक कोरोना से संबंधित सेवाएं दे रहे हैं. कई जगह शिक्षकों को कोरोना वारियर्स के तौर पर काम सौंपे गए हैं. जगह जगह सार्वजनिक परिवहन, रेल सेवा पर पाबंदी है.  राज्यों की सीमाएं, जिला तथा तहसील क्षेत्र में भी आवाजाही रोक रखी है. ऐसी कई अड़चनों की एक लंबी सूची है, जिस पर समाज में चर्चाएं हो रही हैं.  विधायक विक्रम काले की मानें तो,राजस्व मंत्री के परामर्श से, शिक्षकों को कोरोना कार्य से मुक्त किया जाना चाहिए. उन्हें घर जाने दो. उन्हें 14 दिनों के लिए अलग करना होगा और उसके बाद ही वे स्कूल आ सकते हैं. सरकार व्यापक तौर पर स्कूल आरंभ करने की समीक्षा करे और उसके पश्चात ही सुविधाओं से लैस होकर विद्यालय को शुरू करने की मांग भी अभिभावकों ने की है.