आरोपों के घेरे में रहे अस्पताल को मिला पहला स्थान!

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सरकारी निर्णय को लेकर आश्चर्य में लोग 

मालेगांव. मालेगांव शहर का सिविल अस्पताल हमेशा से ही आरोपों के घेरे में रहा है. लोगों के इलाज, सुविधाओं एवं साफ-सफाई का अभाव रहता है. यही कारण है कि पिछले दिनों राज्य स्तर पर उसे पहला दर्जा मिलने के बाद जहां मालेगांव के नागरिक और सामाजिक संगठनों को गर्व होना चाहिये, वे यह विचार करने में लग गए हैं कि आखिर किस प्रकार शहर के सिविल अस्पताल ने राज्य स्तर के उत्कृष्ट अस्पतालों की सूची में अपना नाम दर्ज कर लिया है. मालेगांव के नागरिक जानते हैं कि सिविल अस्पताल में सामान्य दिनों को छोड़कर कोरोना संकट के दौरान भी इस अस्पताल में मरीजों को किसी भी प्रकार की कोई सुविधा नहीं मिल सकी है. 

समस्याओं को लेकर छपती रहती हैं खबरें

अस्पताल में कार्यरत स्टाफ के काम और सिविल अस्पताल की समस्याएं हर रोज़ अखबारों में छपती हैं. समय पर दवाओं का ना मिलना, गर्भवती महिलाओं को ऐन समय पर धुलिया भेज देना, डॉक्टरों के बीच विवाद और मारपीट के मामले, अस्पताल में गंदगी का ढेर, उपचार के लिये किसी भी प्रकार की कोई सहूलियत का ना होना और उपचार के लिये दवाओं या स्टाफ का समय पर ना मिलना और अन्य कई समस्याओं वाले अस्पताल को अव्वल दर्जा मिलने पर नागरिकों में आश्चर्य जताया जा रहा है. नागरिकों में सवाल उठाया जा रहा है कि टिप्पणियों का निशाना रहने वाले इस सिविल अस्पताल को राज्य सरकार ने किस बुनियाद पर पहला दर्जा दिया है. 

रिपोर्ट पर उठ रहे सवाल

इसके 2 कारण हो सकते हैं. पहला यह कि राज्य स्तर पर सर्वे करने वाली टीम या विभाग को नकली और झूठ पर आधारित रिपोर्ट पेश की गई. दूसरी यह कि महाराष्ट्र राज्य के दूसरे सिविल अस्पतालों की स्थिति मालेगांव सिविल अस्पताल से भी ज्यादा खराब होगी. सच्चाई क्या है यह प्रश्न नागरिकों में चर्चा का विषय बना है. लोगों का मानना है कि सिविल अस्पताल के अधिकतर मरीजों को धुलिया और नाशिक भेज दिया जाता है. इसका साफ अर्थ यह है कि जो सहूलियत मालेगांव सिविल अस्पताल में नहीं है, वह धुलिया और नाशिक के सिविल अस्पतालों में है तो मालेगांव सिविल अस्पताल को पहला दर्जा किस आधार पर दिया गया है.